वंचितों का आत्मसम्मान बढ़ाकर विफल किए जा सकते हैं कन्वर्जन के नए-नए षड़्यंत्र!  रवि पाराशर

भारत में कन्वर्जन को लेकर विश्व हिंदू परिषद और दूसरे समान विचारों वाले संगठनों के सतत प्रयासों के कारण बन रहे जागरूकता के वातावरण का प्रभाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है। ऐसे में मतांतरण को धार्मिक कर्तव्य मानते हुए हिंदू समाज को आक्रांत करने के लिए निंदनीय हथकंडे अपनाने वाले कट्टरपंथी जेहादियों ने भी षड्यंत्र तेज कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर के बर्रा थाना क्षेत्र में जो घटनाक्रम प्रकाश में आया है, उसे षड्यंत्र के कुछ-कुछ नए स्वरूप के तौर पर समझा जा सकता है।
कन्वर्जन के दुर्जन आमतौर पर दूरदराज के उन इलाकों में खुलकर साजिशें रचते रहे हैं, जहां हिंदुओं की अपेक्षा मुस्लिम आबादी अधिक है। ऐसे स्थानों पर वे सबसे पहले अशिक्षित, दलित और कमजोर वर्गों के परिवारों की लड़कियों को निशाना बनाते हैं। ऐसे परिवार भी उनके निशाने पर होते हैं, जिनके भरण-पोषण और सुरक्षा का दायित्व किसी कारणवश महिलाओं पर ही होता है। संबल नहीं होने के कारण महिलाएं डर कर झुक जाती हैं या बाल-बच्चों के साथ पलायन के लिए विवश हो जाती हैं। दोनों ही सूरतों में षड्यंत्रकारी सफल हो जाते हैं। दूरदराज के क्षेत्रों में घटित ऐसे मामले मीडिया की पहुंच से दूर रहते हैं या मीडिया उन तक नहीं पहुंचता। पुलिस भी अक्सर कमजोर की सहायता नहीं करती।
कानपुर के बर्रा थाना क्षेत्र में हुई घटना से अब यह स्पष्ट हो रहा है कि मतांतरण के षड्यंत्रकारियों का नया पैंतरा यह है कि अब वे शहरी क्षेत्रों में भी खुलेआम अपने काले मंसूबों को अंजाम देने में हिचक नहीं रहे हैं। एक दलित हिंदू महिला का आरोप है कि मुस्लिम समुदाय के लोग उस पर अपनी दो नाबालिग बेटियों समेत कन्वर्जन के लिए दबाव बना रहे हैं। उसे 20 हजार रुपये का लालच भी दिया गया। जब उसने साफ इनकार कर दिया तो, उसे परेशान किया जा रहा है, बेटियों से छेड़छाड़ की जा रही है।
पुलिस ने समय पर कार्रवाई नहीं की, तो बजरंग दल कार्यकर्ताओं ने पीड़ित की सहायता का प्रयास किया, किंतु इस दौरान एक मुस्लिम व्यक्ति के साथ हुई छिटपुट मारपीट के कारण कुछ युवाओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अब मूल मसला हाशिये पर है और बजरंग दल को हिंदू युवकों के लिए न्याय की मांग पर आंदोलन करना पड़ रहा है। अवसर देखकर मुस्लिम हितों की राजनीति का दम भरने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने गिरफ्तार किए गए युवाओं को कट्टरपंथी हिंसक अपराधियों की संज्ञा दी है। उधर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी इसे भारतीय जनता पार्टी के उकसावे में की गई कार्रवाई करार देते हुए लोकतंत्र के लिए शर्मनाक घटना बता दिया है। पूरे मामले में पक्ष-विपक्ष की राजनीति हावी हो गई है। जो पीड़ित महिला मतांतरण के लिए दबाव डालने का आरोप मीडिया के कैमरों के सामने लगा रही है, उसे न्याय मिलने की बात नेपथ्य में चली गई है।
कुल मिलाकर जिस पुलिस को महिला की सहायता नहीं करने पर फटकार लगनी चाहिए थी, वही पुलिस अब उसके समर्थन में खड़े हुए पक्ष पर कानूनी कार्रवाई कर रही है। यहां बड़ा प्रश्न यह है कि अगर बजरंग दल के कार्यकर्ता महिला के पक्ष में खड़े होने में विलंब करते और मतांतरण के लिए दबाव डालने वाले असामाजिक लोग उसके या उसकी नाबालिग बच्चियों को सबक सिखाने के लिए कोई जघन्य हिंसक वारदात कर डालते, तब क्या होता? और तब क्या होता, जब पुलिस और समाज से कोई सहायता न मिलने पर पीड़ित महिला दबाव में आकर मजबूरन कन्वर्जन कर लेती? दोनों प्रश्नों के उत्तर हमें अवश्य खोजने चाहिए।
प्रश्न यह भी बड़ा है कि क्या कानपुर की कच्ची बस्ती की पीड़ित दलित महिला का हश्र बिहार के बेगूसराय जिले के डंडारी थाना क्षेत्र में महादलित परिवार की नाबालिग बेटी के साथ हुए बलात्कार जैसा नहीं हो सकता था? बिल्कुल हो सकता था। बेगूसराय ज़िले में 8 अगस्त, 2021 को दो मुस्लिम युवकों ने महादलित परिवार की बेटी के साथ बलात्कार किया। रिपोर्ट दो दिन बाद लिखी गई। यह वारदात दूरदराज के इलाके में हुई। बजरंग दल के तत्काल पीड़ित के लिए न्याय की आवाज उठाई। न तो मीडिया में यह मामला सुर्खियां बना, न ही ओवैसी या अखिलेश यादव ने इसका विरोध किया। क्या यही अवसरवादी राजनैतिक संवेदनशीलता है?
कुल मिलाकर नया ट्रेंड यह है कि अब शहरी क्षेत्रों में भी कमजोरों पर मतांतरण के लिए दबाव डालो। मंसूबा पूरा हो जाए, तो ठीक और अगर फंस जाओ तो मुस्लिम हितों की राजनीति करने वाले बड़े नेता तो बचाव में आ ही जाएंगे। ओवैसी बिहार में महादलित नाबालिक लड़की से हुए रेप के मामले में कुछ इसलिए नहीं बोलेंगे, क्योंकि पीड़ित हिंदू लड़की है और वैसे भी वहां चुनाव हो चुके हैं। ओवैसी और अखिलेश यादव कानपुर के मामले में इसलिए बोलेंगे, क्योंकि यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं। महादलित हिंदू महिला को न्याय मिले, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं, हां, मुस्लिम आरोपितों का हर हाल में बचाव करना है, क्योंकि उनके वोट लेने हैं।
देश भर से ऐसे समाचार आने लगे हैं कि कन्वर्जन को जन्नत की सीढ़ियां मानने वाले कुत्सित वृत्ति के लोग आमतौर पर धोखे का आवरण तान कर भोली-भाली हिंदू लड़कियों को बहलाने-फुसलाने में लगे हैं। लेकिन क्योंकि अब विहिप जैसे संगठन के जन-जागरण अभियानों के कारण सनातन समाज अधिक चौकन्ना हो रहा है, इसलिए लव जेहाद के ऐसे बहुत से मामले अंजाम तक पहुंचने से पहले ही नाकाम हो रहे हैं। फिर भी इस दिशा में अभी बड़े पैमाने पर जन-जागरण और तेज करने की आवश्यकता है। दलित समुदाय और कमजोर वर्ग की नाबालिग लड़कियों को निशाना बनाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। नाबालिग लड़कियां अपना अच्छा-भला ठीक तरह से नहीं सोच सकतीं, उनके परिवारों को समुचित सामाजिक संरक्षण भी प्राप्त नहीं है, इसलिए उन्हें बरगलाना आसान है।
देखने में आ रहा है कि मतांतरण के लिए दबाव दो प्रकार से डाला जा रहा है। एक तो हिंदू लड़कियों को धोखे से बहला-फुसला कर शादी या शादी के झांसे के नाम पर उनसे यौन संबंध बना लो और फिर राज खुल जाने पर लोकलाज का भय दिखा कर उन्हें चुपचाप मतांतरण के लिए विवश कर दो। दूसरा तरीका यह भी है कि पहले बलात्कार करो और फिर इज्जत के नाम पर मतांतरण करा कर लड़की से शादी कर अपनी गर्दन बचा लो। ऐसे बहुत से मामलों की चर्चा व्यापक स्तर पर नहीं हो पाती। बहुत से ऐसे मामलों की शिकायत पुलिस से नहीं होती। होती है, तो शिकायतें दर्ज नहीं होतीं। कथित मुख्यधारा के मीडिया का दृष्टिकोण भी ‘सेलेक्टिव’ रहता है।
उत्तर प्रदेश के बरेली में बीए की एक हिंदू छात्रा के माता-पिता ने रिपोर्ट दर्ज कराई है कि उनकी बेटी का अपहरण 5 अगस्त, 2021 को मुस्लिम लड़के ने कर उसका जबरन कन्वर्जन करा दिया है। इतना ही नहीं, आरोपित उन पर भी कन्वर्जन के लिए दबाव डाल रहा है, डरा-धमका रहा है। यह तीसरा तरीका है। हो सकता है कि समाज से व्यापक समर्थन नहीं मिलने पर और बेटियों की जान की रक्षा के लिए ऐसे पीड़ित माता-पिता भी धर्म बदलने की सोचने लगें और एक दिन ऐसा करने को मजबूर हो जाएं। अभी तो पीड़ित और असहाय माता-पिता ने अपने घर पर ‘बिकाऊ है’ लिख दिया है।
सोचने वाली एक बात यह है कि हिंदू लड़कियों को धोखे से फंसा कर कोई मुस्लिम लड़का उनसे शादी कर लेता है, तो क्या ऐसा करना सामान्य प्रेम विवाह की श्रेणी में आ सकता है? न तो कानून के हिसाब से, न ही समाज के हिसाब से इसे मान्यता दी जा सकती है। ऐसा करना अपराध की श्रेणी में ही आएगा। लेकिन ऐसी शादियां होने के बाद लड़की पर मतांतरण के लिए दबाव बढ़ जाता है और लड़की या उसके परिवार की इच्छा के विरुद्ध होते हुए भी अधिकांश मामलों में ऐसा ही होता भी है। इस तरह के नियम विरुद्ध कथित विवाह मुस्लिम लड़के ही अधिक करते हैं। ऐसा कोई विरला मामला ही सामने आता है कि कोई हिंदू लड़का अपनी पहचान मुस्लिम बनाकर किसी मुस्लिम लड़की से धोखा देकर शादी रचाए। यदि भारतीय समाज में यह प्रचलित चलन होता, तो हिंदू लड़कों के मुस्लिम लड़कियों से शादी करने और उनका मतातंरण करने के मामले भी बहुतायत में सामने आने चाहिए थे। किंतु ऐसा नहीं होता, इसलिए यह स्पष्ट है कि ‘लव जेहाद’ बाकायदा छद्म धार्मिक कर्तव्य या कहा जाए कि षड्यंत्र के तौर पर किया जा रहा है। धोखा देना किसी धर्म की शिक्षा नहीं हो सकती है। अगर है, तो फिर ऐसे धर्म पर लानत है!
भारतीय संस्कृति नारी को पूज्य और आराध्य मानती है। नारी देवी है। नारी हिंदू समाज की मान-प्रतिष्ठा, आदर का प्रधान मानक होती है। सनातन परंपरा देव से पहले देवी का स्मरण करती है, पूजा करती है। पहले सीता फिर राम, पहले राधा फिर कृष्ण इत्यादि। हालांकि हिंदू समाज में भी महिलाओं के प्रति संकुचित विचार रखने वाले पथभ्रष्ट लोग हैं। किंतु आदर्श स्थिति यही कि सभी समाजों में नारी को सम्मान मिलना चाहिए। दुर्भाग्य से कट्टरपंथी मुस्लिम समाज में जेहादी मानसिकता के पथभ्रष्ट लोगों द्वारा हिंदू महिलाओं को निशाना बनाने के षड़्यंत्र अधिक रचे जा रहे हैं। विशेषकर गरीब, बेसहारा और कमजोर वर्ग की महिलाओं को निशाना बनाया जा रहा है। यह षड़्यंत्र मुद्दत से चला आ रहा है, लेकिन अब विहिप जैसे संगठनों की सक्रियता के कारण सनातन समाज जागरूक हुआ है और बहुत से मामले प्रकाश में आ रहे हैं, जिनका हरसंभव प्रतिकार किया जा रहा है।
हिंदू महिलाओं की अस्मिता तार-तार कर धार्मिक आधार पर आत्मतुष्टि की भावना से भरने की मानसिकता आज की बात नहीं है। वर्ष 1992 में राजस्थान के अजमेर में जो कांड सामने आया, वह आज भी रौंगटे खड़े कर देता है। अजमेर के एक स्कूल में पढ़ने वाली हिंदू लड़कियों को संगठित रूप से षड़्यंत्र रचकर जिस तरह सैक्स रैकेट में फंसाया गया, उसकी जितनी निंदा की जाए, कम है। पहले एक लड़की को धोखे से एक फार्म हाउस में बुलाकर उसे बेहोश कर अश्लील तस्वीरें खींची गईं। फिर उसे ब्लैकमेल कर उसके माध्यम से दूसरी लड़कियों के साथ भी यही किया गया।
अजमेर कांड में सैकड़ों हिंदू लड़कियों को षड़्यंत्र की श्रृंखला का शिकार बनाया गया। उनकी तस्वीरें और वीडियो आम करने की धमकियां देकर उन्हें बार-बार अनैतिक काम के लिए विवश किया गया। इस कांड में कांग्रेस के कई नेता, सरकारी अफसर और अजमेर दरगाह के कई खादिमों के लड़के शामिल थे। मुख्य कांड के मुख्य आरोपित थे यूथ कांग्रेस के तत्कालीन नेता फारूक चिस्ती, नफीस चिस्ती और अनवर चिस्ती। मामला प्रकाश में आने के बाद एक ही स्कूल की कई लड़कियों ने आत्महत्या कर ली थी। बहुत से परिवार अजमेर छोड़ कर चले गए थे, लेकिन बहुत से अपराधी पकड़े ही नहीं गए।
ऐतिहासिक संदर्भों में भी हमने पढ़ा है कि मुस्लिम आक्रांताओं का प्राथमिक उद्देश्य संपत्ति की लूटपाट और निरंकुश शासन के साथ सनातन हिंदू अस्मिता को तार-तार करना था। इसके लिए आक्रमणकारियों ने भारतीय स्त्रियों के अपमान को मुख्य माध्यम बनाया। यही कारण जौहर जैसी परंपराओं का जनक बना। यह षड़्यंत्र आज भी लव जेहाद जैसे दूसरे घ्रणित रूपों में जारी है, जिसका कड़ा प्रतिकार हमें सामाजिक विमर्श को प्रबल बनाकर विधिसम्मत माध्यमों से करना चाहिए।
अपराध के आंकड़े जुटाने वाली संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी ऐसी कोई सूची नहीं बनाती, जिससे यह पता चले कि देश में लव जेहाद के कितने केस हो रहे हैं। हालांकि सच्चाई है कि रेप के केस सभी धर्मों की महिलाओं के साथ होते हैं और किसी भी ऐसी वारदात को धर्म के आधार पर गंभीर और कम गंभीर की श्रेणी में नहीं रखा जाना चाहिए। सभी धर्मों की बेटियां भारत की बेटियां हैं। लेकिन अगर एनसीआरबी जाति और धर्म के आधार पर ऐसे आंकड़े जुटाए, तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ सकते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं। अब यदि कुछ राजनैतिक पार्टियां जाति आधारित जनगणना की पुरजोर हिमायत करती हैं, तो फिर अपराध के आंकड़े भी जाति और धर्म के आधार पर जुटाए जाएं, क्या परेशानी है? ऐसा होने पर वस्तुस्थिति स्पष्ट तौर पर सामने आ सकती है।
वस्तिस्थिति कितनी भयावह है, यह सामने आना ही चाहिए। जबरन कन्वर्जन, लव जेहाद, हिंसा के माध्यम से दहशत फैलाकर बहुत से क्षेत्रों से अल्पसंख्यक हिंदुओं को पलायन के लिए विवश कर क्षेत्रों का आबादी संतुलन बदलने की साजिशें बड़े स्तर पर हो रही हैं। ऐसी सारी कारगुजारियां अपराध की श्रेणी में आती हैं। बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को अगर धार्मिक या सामुदायिक कृत्य या कर्तव्य मान लिया जाएगा, तो इससे अधिक भयावह क्या होगा? यदि ऐसे निंदनीय कृत्य सामुदायिक दबदबा बढ़ा कर देश में राज करने के किसी दीर्घकालीन षड़यंत्र का हिस्सा हैं, तब तो यह बेहद चिंता की बात है।
धोखे से हिंदू लड़कियों से शादी के बहुत से मामले लोकलाज के डर से पुलिस के पास नहीं पहुंचते। ऐसी शादियों के बाद बनाए गए यौन संबंध भी बलात्कार ही हैं, जिनका मुखर विरोध अक्सर नहीं होता। ऐसे रेप की शिकार बहुत सी लड़कियां मन ही मन तड़पती रहती हैं। उनकी पीड़ा का अनुभव क्या कोई कर सकता है? सच्चाई सामने आने पर हिंदू लड़कियां भले ही शादियां तोड़ दें, गर्दनें झुका कर भले ही चुपचाप अपने घरों को लौट आएं, लेकिन अपने स्वत्व, अपनी अस्मिता, अपने अस्तित्व के साथ हुए बलात्कार का घिनौना दंश आजीवन भूल नहीं सकतीं।
माना जाता है कि लव जेहाद शब्दयुग्म का प्रयोग पहली बार वर्ष 2009 में केरल में इस तरह के कई मामले सामने आने के बाद हुआ। फिर कर्नाटक में भी ऐसा होता दिखाई दिया, तो इसका उल्लेख देश भर में होने लगा। वर्ष 2017 में केरल हाई कोर्ट ने (लव जेहाद के आधार पर) एक मुस्लिम पुरुष का हिंदू युवती से हुआ विवाद अमान्य करार दिया था। पुरुष ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। तब कोर्ट ने नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी यानी एनआईए को यह जांच करने का निर्देश दिया था कि क्या भारत में लव जेहाद का कोई पैटर्न स्थापित किया जा रहा है? इस मामले में एनआईए की जांच कहां तक पहुंची, पता नहीं।
बहुत से मामलों के बहुआयामी दृष्टिकोण से अध्ययन के बाद कहा जा सकता है कि भारत में लव जेहाद मतांतरण के व्यापक षड़्यंत्र से ही जुड़ा एक आयाम है। इस असामाजिक प्रवृत्ति का व्यापक विरोध होना ही चाहिए। लव जेहाद के माध्यम से किए जाने वाले बलात्कार सामान्य तौर पर अनायास हो जाने वाले अमानवीय जघन्य अपराध नहीं, बल्कि अधिक जघन्य अपराध की श्रेणी में रखे जाने चाहिए। क्योंकि अपराधी बाकायदा शिकार चुन कर संगठित और योजनाबद्ध तरीके से अपराध को अंजाम देते हैं। कर्तव्य मानते हुए वे लगातार अपराध करने की मानसिकता में जीते हैं।
दुर्भाग्य की बात है कि भारतीय राजनैतिक दल ऐसे मामलों में भी सिर्फ राजनीति ही करते हैं। पीड़ित लड़कियों को न्याय दिलाना उनका अंतिम उद्देश्य नहीं होता। वे जातियों और धार्मिक चश्मे पहन कर ऐसी वारदात को देखते हैं और उनमें फर्क करते हैं। दलित हितों की राजनीति करने वाले कथित नेता बलात्कारियों में हिंदू और मुस्लिम के आधार पर विभेद करते हैं। जम्मू-कश्मीर के दूरदराज के क्षेत्र कठुआ में किसी मुस्लिम बच्ची से रेप का आरोप किसी पुजारी पर लगता है, तो संयुक्त राष्ट्र के महासचिव तक को पीड़ा होने लगती है। बहुत सी हिंदू लड़कियों पर लव जेहाद के अंतर्गत होने वाले जघन्य अपराधों पर वे मानवाधिकार की रक्षा की दुहाई देना उचित नहीं समझते।
तुष्टीकरण की राजनीति ने हालांकि अभी तक मुस्लिम समुदाय का कुछ भी भला नहीं किया है, फिर भी कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, वामपंथी दल और सिर्फ मुस्लिम हितों की राजनीति करने वाले अददुद्दीन ओवैसी जैसे नेता उन्हें भरमाने में लगे हैं। वोट बैंक की राजनीति की चरम अवसरवादिता है कि मुसलमान लड़कों पर रेप के आरोप लगने पर मुलायम सिंह यादव जैसे वरिष्ठ नेता मंच से कहते हैं कि वे तो लड़के हैं और लड़कों से गलतियां हो जाती हैं। अब उनकी पार्टी उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों को रिझाने में लगी है, तो दलित हितों की राजनीति करने वाली मायावती को भी ब्राह्मणों के बीच से ही सत्ता की राह दिखाई दे रही है, क्योंकि 2022 में ओवैसी उत्तर प्रदेश के चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसी राजनीति की भर्त्सना की जानी चाहिए।
जहां तक सनातन समाज की महिलाओं के सम्मान का प्रश्न है, तो समाज को ही कानून के दायरे में एकजुट होकर प्रतिकार करना होगा। सनातन समाज को महिला सशक्तीकरण की गति बढ़ानी होगी। कमजोर वर्गों के साथ खड़ा होना होगा। दहेज जैसी कुरीतियों को जड़ से समाप्त करना होगा। संपन्न सनातन वर्ग को सामाजिक समरसता के कर्तव्य का प्रभावी निर्वाह करना होगा। समाज की दलित, वंचित, गरीब और दूसरे स्तरों पर कमजोर कड़ियों के मन में यह विश्वास जगाना होगा कि अधिकार, शक्ति और साधन संपन्न सनातन समाज उनके साथ है।
साथ ही यूपी के कानपुर में बर्रा थाना क्षेत्र की घटना से सीख भी लेनी होगी कि किसी पीड़ित महिला को न्याय दिलाने का अभियान अवश्य चलाएं, लेकिन आवेश में आकर देश का कानून हाथ में लेने का प्रयास न करें। ऐसा करेंगे, तो हम अपने उद्देश्य से भटकेंगे और अत्याचार करने वालों को ही इसका लाभ मिलेगा।

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