हम भारत को त्याग और सेवा से बदल सकते हैं – डॉ. एच.आर. नागेन्द्र

नई दिल्ली, 28 अगस्त. अनुसंधान के माध्यम से चीजें आसान होती हैं और तथ्यपरक होती हैं. हमारे वेद उपनिषद, सभी वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित हैं. जो बातें आज अनुसंधान के बाद कही जा रही हैं वो हमारे वेदों में कई सौ साल पहले लिखी गयीं थीं. हमारे वेद ने सब कुछ दिया है बस उसे पढ़ने की जरूरत है. हमारी बुद्धि एक ऐसा स्वामित्व है जिससे हम अपने विचारों को बदल सकते हैं. त्याग और सेवा से भारत को बदल सकते हैं. स्वामी विवेकानंद योग अनुसंधान संस्थान के कुलाधिपति डॉ. एच. आर नागेन्द्र ने यह विचार इंडिया हैबिटेट सेंटर में दिए.

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय एवं भारतीय शिक्षण मंडल के भारत बोध केन्द्रित संवाद-व्याख्यान श्रंखला में बोलते हुए डॉ. नागेन्द्र ने कहा कि हमारे पास ज्ञान का भंडार हैं. अपने ज्ञान को समझने की जरूरत हैं. न्यूटन के सिद्धांत को समझने से पहले हमे अपने ज्ञान-विज्ञान को समझना होगा. क्योंकि न्यूटन से सैकड़ों साल पहले हमारे यहां गुरुत्वाकर्षण की बारे में बताया गया है. हमें अपना विश्वास पुनः जागृत करने के लिए अपने वेदों का गहन अध्ययन करना होगा.

इस मौके पर अखिल भारतीय शिक्षण मंडल के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्री मुकुल कानिटकर ने कहा कि भारत बोध व्याख्यान श्रंखला को न सिर्फ पूरे देश में बल्कि दूसरे देशों में भी ले जाने का लक्ष्य है, हम इसे अकादमी, कॉलेजों के बाहर आम लोगों तक ले जाएंगे ताकि व्याख्यान के जरिये भारत का सम्पूर्ण बोध हो. लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी के शिकागो से आने के बाद कोलम्बो से लेकर अल्मोड़ा तक जोरदार स्वागत हुआ था. स्वयं स्वामी विवेकानंद ने रामेश्वरम से लाहोर के अपने भाषण में राष्ट्र बोध की ही बात बार-बार दोहराई. 1897 के ब्रिटेन, अमेरिका को देखने के बाद उन्होंने कहा था कि ब्रिटेन पूरे विश्व में राजनीतिक रूप से साम्राज्य स्थापित कर रहा है. वहीं अमेरिका को देखने के बाद ऐसा लगता है कि वो व्यापार के जरिये पूरे विश्व में अपना आधिपत्य स्थापित करना चाहता है और 1991 में उनकी बात सच साबित हुई. लेकिन वो भारत को लेकर बार-बार कहते थे कि भारत को खुद को पहचानना होगा.

श्री कानिटकर ने कहा कि प्रारम्भ में जिस संस्कृति को दबाया जाता है वह बाद में उभर कर पुनः स्थापित होती है. अंग्रेजों ने भी भारतीय संस्कृति को दबाने का भरपूर प्रयत्न किया, लेकिन एक पीढ़ी के बाद सभी इस बात को समझ गए कि और आत्म निरीक्षण के बाद पुनः जागरण हुआ. पश्चिमीकरण का प्रभाव प्रथम पीढ़ी पर पढ़ता है लेकिन दूसरी पीढ़ी उस पर विचार करती है. स्टालिन, हिटलर सभी ने देशवासियों में राष्ट्रभाव जागृत करने के लिए अपनी जड़ों में जाकर चर्च का सहारा लिया.

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर ने इग्नू डिजिटल पाठ्यक्रम का उदघाटन उदघाटन करते हुए कहा कि दुनिया को याद करते समय भारत को जरूर याद रखें. उन्होंने राजस्थान का उदाहरण देते हुए कहा कि राजस्थान में पहले जिले का भूगोल व इतिहास पढ़ाया जाता है फिर क्रमशः प्रांत, देश तथा दुनिया का इतिहास-भूगोल पढ़ाया जाता है. हमारे पास अनुपम राशि है जिसे हमें समझना होगा.

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