भोपाल में भारतीय चित्र साधना की फिल्मों का मेला

 

सिनेमाई दुनिया में भारतीय फिल्मों की सार्थक उपस्थिति को समझना हो तो हाल ही में आयोजित चित्र भारती लघु फिल्मोत्सव की उत्सवी बानगी से साक्षात्कार करने का अनुभव भारतीयता की भावना के कितने ही रंगों से आपको जोड़ देगा। इस कदर कि आप भारतवासी होने पर गर्व महसूस करेंगे। देश के ह्रदय प्रदेश यानी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भारतीय चित्र साधना ने चित्र भारती लघु फिल्म उत्सव का तीन दिवसीय (25-27 मार्च) चौथा संस्करण पत्रकारिता के सुप्रसिद्ध विश्वविद्यालय की मेजबानी में कुछ इस अंदाज में आयोजित किया मानो सिने प्रेमियों को एक ऐसा सिने नगर मिल गया हो। यहां निरंतर तीन दिन के उत्सवी माहौल में ऐसा प्रतीत हो रहा था कि सिने प्रेमी दर्शक, सिने जगत के दिग्गज सितारे, अवॉर्डी लेखक, निर्देशक और आवाज़ के दम पर दिलों पर राज करने वाले अद्भुत व्यक्तित्व आसमान से उतर कर भोपाल की सरज़मी पर उतार दिए गए।
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय का नवनिर्मित विशाल परिसर बाहें फैलाए सबका स्वागत और अभिनन्दन कर रहा था। विश्वविद्यालय परिसर में शिक्षक और छात्र समुदाय की जगह फिल्मी हस्तियों की मास्टर क्लासेज ने ले ली। प्रभावशाली मास्टर क्लासेज में फिल्म निर्माण के विभिन्न आयामों पर सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता विवेकरंजन अग्निहोत्री ने स्क्रीनप्ले राइटिंग पर क्लास ली। तीनों दिन चलने वाली मास्टर क्लासेज में फिल्म मेकिंग और उसके महत्व पर सुप्रसिद्ध संगीतकार और साउंड इंजीनियर सुभाष साहू और कन्नड़ फिल्म निर्देशक टीएस नागभरणा, सुविख्यात रेडियो उद्घोषक हरीश भिमानी, जानेमाने रेडियो प्रोफेशनल शरत भट्टात्रिपाद, वरिष्ठ पत्रकार अनंतविजय, सुविख्यात थिएटर निर्देशक और शिक्षाविद् वामन केन्द्रे तथा दबंग, बेशर्म जैसी फिल्मों के जाने पहचाने फिल्म निर्देशक, लेखक और अभिनेता अभिनव कश्यप एवं लोकप्रिय धारावाहिक महाभारत में युधिष्ठिर के शानदार अभिनय के लिए विख्यात गजेंद्र चौहान ने ऐसा प्रेरक वातावरण बना दिया कि विशाल सभागार देशभक्ति के नारों से गूंजता रहा। ऐसा लगा जैसे जागरूक दर्शकों में शामिल अपार दर्शक शक्ति ने भारतीय होने के गर्व के साथ भारतीयता से ओतप्रोत डॉक्यूमेंट्री और फिल्म निर्माण में अपना भविष्य ढूंढ लिया हो! सिनेमा की ताकत और दर्शकों के रूझान ने मिलकर संयुक्त रुप से लघु फिल्मोत्सव को सशक्त कर इतना बड़ा बना दिया कि यह समझने में देर नहीं लगी कि 3 घंटे की फिल्मों को बनाने देखने में लगने वाले समय को चंद मिनटों में समेट कर अद्भुत प्रेरक संदेशों के साथ बहुत ही शानदार और संप्रेषणीय बनाया जा सकता है। भारतीय चित्र साधना के लघु फिल्म उत्सव में अखिल भारतीय स्तर पर युवाओं ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की।
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष, आज़ाद भारत के 75 साल, अनलाकडाउन, लोकल फोर लोकल खुशहाल गांव, खुशहाल देश, भारतीय संस्कृति और मूल्य, इनोवेशन- क्रिएटिव कार्य, परिवार, पर्यावरण और ऊर्जा एवं शिक्षा व कौशल विकास -इन दस विषयों के अंतर्गत 712 लघु फिल्में, डाक्यूमेंटरी, एनीमेशन और कैंपस फिल्मों की प्रविष्टियां चित्र भारती फिल्म फेस्टिवल के लिए प्राप्त हुईं। 15 भाषाओं और 22 राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाली इन प्रविष्टियों में से 120 को फेस्टिवल में दिखाया गया। इस बीच एक शाम कश्मीर फाइल्स भी दिखाई गई। फिल्म प्रदर्शन के तुरंत बाद निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री और पल्लवी जोशी ने खचाखच भरे आडिटोरियम में ओपन फोरम पर दर्शकों के साथ संवाद किया। वर्तमान समय की इस चर्चित फिल्म को बनाने में क्या क्या और कैसे रिसर्च की गई-यह बताते हुए विवेक अग्निहोत्री ने कहा कि जो लोग आज़ादी का नारा लगाते हैं, अब वह इस नारे को लगाने से पहले सौ बार सोचेंगे।
अभिनेता अक्षय कुमार ने कश्मीर फाइल्स की सराहना की और कहा कि इस फिल्म ने देश को झकझोर दिया है। अक्षय कुमार ने सभागार में आह्वान किया कि ऐसी फिल्में बनाएं जो देश निर्माण में सहयोगी बनें, यह विचार चित्र भारती के माध्यम से देश के कोने कोने में पंहुचे। साथ ही फिल्म फेस्टिवल के पांच श्रेणियों के सभी तीस विजेताओं को पुरस्कार में एक-एक लाख रुपए अतिरिक्त राशि अपनी ओर से दी। विवेक रंजन अग्निहोत्री ने भारतीय साहित्य, सभ्यता, सिनेमा पर काम करने के लिए तीन छात्राओं और दो छात्रों को 51-51 हजार की स्कालरशिप दिये जाने की घोषणा की। विवेक रंजन अग्निहोत्री ने भोपाल से अपने जुड़ाव को याद करते हुए अपने मिशन को भी स्पष्ट किया और कहा कि हिंदुओं के जीनोसाइड को उजागर करना हमारा मिशन है और हमारी लंबी योजना है। विश्व का पहला नरसंहार संग्रहालय भोपाल में बनाए जाने के उनके आग्रह को मुख्यमंत्री ने सहमति भी दे दी।
नई सोच और समाज को नयी दिशा देने वाली लघु फिल्मों को तीन दिन अलग अलग सभागारों में यथा गुरुदत्त सभागार, राजकपूर सभागार, वी शांताराम सभागार और सत्यजीत रे सभागारों में दिखाया गया। खूब सराहे जाने वाले विषयों में भावुक कर देने वाले, संवेदनशील सरोकारों को झिंझोड़ने वाले पात्रों के अभिनय सोच पर गहरी चोट के साथ आत्ममंथन के लिए विवश कर देने वाले दिखे। एक समय में चार सभागारों में एक साथ दर्शकों ने इन प्रस्तुतियों को देखा, सराहा।
भारतीय चित्र साधना द्वारा विभिन्न विषयों के अंतर्गत जूरी की अनुशंसा के आधार पर पुरस्कृत फिल्मों से जुड़े युवा लेखकों, निर्देशकों, कलाकारों को पुरस्कृत करने के अलावा प्रस्तावित अतिरिक्त राशि और छात्रवृत्ति की घोषणाओं ने तो युवा दर्शकों को नवीन ऊर्जा और जोश से भर दिया। वे इस प्रोत्साहन के लिए भारतीय चित्र साधना के आभारी होते हुए और नारे लगाते हुए दिखे।
प्रेरणा, उत्साह, जोश और नई उमंग के साथ दर्शक प्रेरित हो रहे थे कि विषयों की कोई कमी नहीं बस आपकी पारखी नजर ऐसी होनी चाहिए- मेरे सीने में ना सही, हो आग कहीं भी जलनी चाहिए।
फिल्मोत्सव में मास्टर क्लास के प्रावधान ने देश भर से भागीदारी कर रहे विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों, मीडिया शिक्षकों सिने प्रेमियों, फिल्म समीक्षकों,लेखकों के रुझान को ऐसी दिशा दी कि सचमुच विविधता में एकता से सराबोर आयोजन स्थल एक ऐसा प्रेरक स्थल बन गया जो भारतीय युवाओं, फिल्म निर्माताओं को भारतीय मूल्य, भारतीय संस्कृति से जुड़े विषयों के फिल्मांकन के लिए उत्साहित और प्रेरित कर रहा था।
जहां अक्षय कुमार की उपस्थिति ने युवाओं में नया जोश भर दिया वहीं अपने देश के प्रति समर्पण भाव को उभारने वाले अनेक विषयों के प्रस्ताव उमड़ पड़े। माहौल ऐसा बन गया और ऐसा लगा कि सामाजिक समस्याओं के कितने ही आयाम, कितने ही विषय नये उभरते युवा फिल्म निर्माताओं की राह देख रहे हैं, कब कौन आए और इन विषयों को छूए और समाज में संवेदनशील के भाव को बढ़ाए।
सुंदर स्वस्थ वातावरण में ऐसा कौन सा व्यक्ति होगा जो सुकून और सहजता से रहना नहीं चाहता? ऐसे भाव अगर सिनेमा में भले ही चंद मिनटों की शॉर्ट फिल्म में भी सशक्तता से उभर आते हैं तो पूरे समाज के सरोकार सशक्त होते हैं संवेदनशील होते हैं। दर्शक के सरोकारों में एक दूसरे से जुड़ने की सार्थकता की समझ पैदा करता है सिनेमा। कहते हैं ना कि समाज का आईना है सिनेमा। तो एक सूत्र में बंधी सामाजिक व्यवस्था और जोड़ने की सार्थक अवस्था अगर फिल्म में उतरते ही दिल को झंझोड़ जाती है तो वह दिन दूर नहीं कि सचमुच आईने से बाहर की वास्तविकता भी खूबसूरत होगी।
घरों में घुसपैठ कर चुका सिनेमा इतना प्रभावशाली माध्यम है जो सचमुच कल्पना से परे है। इसी बात को आधार बनाते हुए सभी सुप्रसिद्ध सिने हस्तियों ने प्रेरक प्रसंगों के साथ संवाद का ऐसा समा बांधा कि फिल्मोत्सव से जुड़े हर शख्स, हर व्यक्ति को यह भरोसा हो रहा था कि हौसले बुलंद हो तो कश्मीर फाइल्स को 2 मिनट भी देख लेना जबरदस्त अपेक्षित प्रभाव पैदा कर सकता है। यह बात भारतीय सिनेमा जगत के साउंड डिजाइनर और प्रख्यात वक्ता सुभाष साहू ने भी कही कि करोड़ों की कमाई की बात नहीं है कश्मीर फाइल्स का दो मिनट का प्रभाव बहुत गहरा है। इस फिल्म ने राष्ट्र भाषा हिंदी के माध्यम से हम सबको एक कर दिया है। प्रख्यात कन्नड़ फिल्म निर्देशक टी एस नागाभरण ने कहा कि फाल्के के समय के सिनेमा की दुनिया आज की सिनेमाई दुनिया से एकदम अलग है। दस राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाले नागाभरणजी ने यह भी कहा कि चित्र भारती के हाउसफुल शो को देखकर मैं स्तब्ध और मंत्रमुग्ध हूं युवा मस्तिष्क दृश्य माध्यम से प्रबोधित होने को तैयार हैं। आज सिनेमा को पुनः परिभाषित करने की जरुरत है। स्वर कोकिला लता मंगेशकर को याद करते हुए मास्टर क्लास में हरीश धामी ने अपने दमदार आवाज से जब दर्शकों को टीवी पर महाभारत प्रदर्शन काल से बांध दिया तो यह एहसास भी भर दिया कि हर शख्स में ऐसी ना कोई ना कोई प्रतिभा है जो सृजनात्मकता का जामा पहनते ही हमारे आसपास, हमारे समाज, हमारे देश, हमारे राष्ट्र को विश्व का सिरमौर बनाने के लिए काफी है। बूंद बूंद से घड़ा भरता है। बूंद बूंद का फिल्म निर्माण में योगदान पुण्य प्राप्ति के बड़े दान से कम नहीं है। बस जरूरत है खुद को पहचानने की, खुद के भीतर झांकने की, छिपी शक्तियों को उभारने की। अक्षय जैसा अभिनेता तो क्या मध्य प्रदेश के लाडले विवेक अग्निहोत्री को भारतवर्ष के नक्शे पर ऊंचाइयों पर स्थापित कर सकती है। बस यह अनुभव करके कुछ कर गुजरने का समय है। यही भाव निरंतर फिल्मोत्सव के आखिरी दिन आखिरी पल तक बना रहा कि अगर मन से जुड़कर फिल्म निर्माण करते हैं और सामाजिक दायित्व बोध के साथ,पूरी रिसर्च के साथ विषय को प्रस्तुत करते हैं, सत्य से जोड़ते हैं और अपने देश के इतिहास को,अतीत के पन्नों से बखूबी फिल्म में उतार कर लक्ष्य समूह को जोड़ लेते हैं तो धीरे-धीरे क्रांति आ सकती है। जो बिंदु आजादी प्राप्त करने के बाद की यात्रा में उभरने से छूट गए उनसे वर्तमान पीढ़ी को सही और वास्तविक संदर्भ के साथ सार्थकता प्रदान करते हैं तो हमारी बौद्धिक संपदा समृद्ध होगी और आने वाली पीढ़ियां गर्व से कहेंगी कि हम भारतीय हैं।

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