अविश्वसनीय लेकिन मनोरंजक, दृश्यम -२

 

अतुल गंगवार

‘दृश्यम २’, अजय देवगन की ही २०१४ में प्रदर्शित  फिल्म ‘दृश्यम’ का दूसरा भाग है.बड़ा मुश्किल होता है किसी सस्पेंस थ्रिलर फिल्म, जिसकी कहानी दर्शकों को पता हो उसके दूसरे भाग में भी रोचकता बनाएं रखना. दृश्यम २ के निर्देशक अभिषेक पाठक इस परीक्षा में तो सफल हुए हैं. यहाँ हम इस सत्य तो एक बार दरकिनार कर ही सकते हैं कि ये दक्षिण की सफल फिल्म ‘दृश्यम २’का रीमेक है. इसकी कहानी वही है, लेकिन पटकथा लेखक और निर्देशक अभिषेक पाठक ने इसे जिस तरह से प्रस्तुत किया है वह उसमें रोचकता  बनी रहती है.

फिल्म की कहानी अविश्वसनीय होते हुए भी दर्शकों को बांधे रहती है. तर्क की कसौटी पर अगर कसने लगे तो शायद सुधि दर्शकों के हाथ निराशा ही लगेगी. लेकिन यहाँ बात सिनेमाई मनोरंजन की हो रही है तो इसको मनोरंजन की कसौटी पर ही कसना उचित होगा. फिल्म का पहला भाग धीमा है. उसमें जो घटनाएं घट रही हैं वह आगे फिल्म को क्या मोड़ देंगी ये स्पष्ट नहीं होता. लेकिन जिस तरह से दूसरे हिस्से में फिल्म गति पकडती है तो दर्शक मंत्र मुग्ध होकर फिल्म के कथानक में डूब जाता है. कहानी अजब ग़जब मोड़ लेकर जिस तरह से अंत होती है उसको देखकर दर्शक सिर्फ ये कह पाता है… कमाल है ये तो सोचा ही ना था. अब कहानी को यहाँ खोलना तो संभव नहीं है. क्योंकि ये आपके साथ अन्याय होगा.

फिल्म के सभी पात्र अपनी भूमिका के साथ न्याय करते नज़र आते है. अजय देवगन, अक्षय खन्ना, श्रेया शरण, तब्बू, रजत कपूर ,ईशिता दत्ता, मृणाल जाधव अपनी भूमिकाओं में विश्वसनीय लगे हैं. शायद इसी वजह से एक अविश्वसनीय कहानी भी विश्वसनीय बन सकी है.

फिल्म का तकनीकी पक्ष भी मजबूत है. फोटोग्राफी, बैकग्राउंड संगीत और फिल्म के गीत भी. हालाँकि गीत सिनेमा के बाहर आकर याद नहीं रह पाते हैं लेकिन फिल्म देखते समय आपको हल्का होने जाने की अनुमति नहीं देते.

जो लोग फिल्मों से प्रेरित होकर अपराध को अंजाम देते हैं वो एक बात तो समझ लें कि दृश्यम २ से प्रेरणा लेकर कोई अपराध करने की गलती न करें. क्योंकि ये सिनेमा है इसलिए नायक गलत होते हुए भी सही सिद्ध होता है. क्योंकि दर्शक नायक को जेल जाते नहीं देखना चाहते है (इसी फिल्म से). लेकिन सच में अपराध अपराध होता है, चाहें वो किसी भी नीयत से किया गया हो. मनोरंजन के लिए दृश्यम २ देखी जा सकती है.

 

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