त्याग और बलिदान के प्रतीक -सिद्ध पुरुष गोगाजी चौहान

शिवकुमार, वरिष्ठ लेखक

मृत्यु और पराजय को समक्ष देखकर भी गोगाजी चौहान ने महमूद गजनवी की विशाल सेना का मुकाबला इसलिए किया क्योंकि वह थानेसर में भगवान चक्रपाणि के मंदिर पर हमला करना चाहता था। बलिदानी, तेजस्वी गोगाजी चौहान के जीवन, व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालता लेख।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि यानी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी से अगले दिन गुग्गा नवमी मनाई जाती है । यह दिन अब से एक हजार वर्ष पहले हुए भारत के एक महान शूरवीर गोगादेव चौहान के बलिदान की स्मृति में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में हिंदू, सिख और मुसलमान सभी द्वारा मनाया जाता है । इन राज्यों के लगभग सभी गांवों में गोगादेव के पूजा स्थल बने हुए हैं जिन्हें गुग्गामेड़ी कहा जाता है । पूजा के दौरान एक विशेष तरह का डमरू जैसा वाद्य बजाया जाता है जिसे डेरू कहते हैं । सभी घरों में एक विशेष तरह का मीठा पकवान बनता है जिसे “फल” कहते हैं । सायंकाल को पूजा के समय फल गोगा देव को समर्पित किए जाते हैं तथा डेरू बजाने वाले समैये युद्ध में उनकी तथा उनके साथियों की वीरता के गीत गाते हैं।

गोगा जी की माता का नाम बाछल तथा पिता का नाम जेवर सिंह था जो पूर्वी राजस्थान में ददरेवा के शासक थे। गोगा वीर की मुसलमानों में भी मान्यता रही है इस कारण से हिन्दू पूजा और मुस्लिम रिवाज दोनों मिल गए हैं और उनकी पूजा मुसलमान पीर की तरह होने लगी। कहीं-कहीं उनकी कहानियों में यह भी जोड़ दिया गया है कि वे मुसलमान बन गए थे जो सच्चाई नहीं है। यूँ भी उस समय तक भारत में मुसलमान नहीं के बराबर थे और जो थोड़े बहुत थे भी वे केवल सिंध तक सीमित थे।

गोगादेव जी को गुग्गा, गोगाजी, गोगा जी चौहान या गोगावीर कहा जाता है। मुसलमान उन्हें पीर की तरह पूजते हैं । उत्तर-पश्चिमी भारत में उनके बारे में अनेक तरह की लोककथाएँ प्रचलित हैं।
कर्नल जेम्स टॉड की प्रसिद्ध पुस्तक ‘एन्नलस एण्ड एण्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान ‘ के अनुसार गोगा जी का राज्य सतलुज से पश्चिमी हरियाणा और पूर्वी राजस्थान तक था। महमूद गजनवी के हमले में उसकी फौजों से लड़ते हुए गोगा जी चौहान ने अपने 45 बेटों और 60 भतीजों के साथ वीरगति पाई थी। यह घटना भाद्रपद कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को रविवार के दिन सन् 1024 ईस्वी के आसपास हुई थी।

डॉ. बिन्ध्य राज चौहान ने चौहान राजपूतों का इतिहास सूर्यवंश महाप्रकाश लिखा है और गोगा देव जी पर भी गहन शोध करके एक ग्रन्थ लिखा है। उनके अनुसार महमूद गजनवी थानेसर (आज का कुरुक्षेत्र ) में स्थित भगवान चक्रपाणि जी के मन्दिर पर हमला करने जा रहा था तो उसकी सेना को गोगा जी के राज्य से होकर गुजरना था। उसने रास्ता देने की प्रार्थना करते हुए दूत भेजे और गोगा जी पर हमला न करने का आश्वासन भी दिया। गोगा जी ने यह जानते हुए भी कि गजनवी की विशाल सेना को रोकना मुश्किल है, पराजय और मृत्यु दोनों निश्चित हैं, फिर भी जवाब दिया कि वे अपने जीते जी उसे थानेसर पर हमला करने की इजाजत नहीं दे सकते। उन्होंने अत्यंत वीरता से गज़नवी की सेना का सामना किया और वीरगति पाई। उस समय वे वृद्ध हो चुके थे। यह घटना 1012 ईस्वी में हुई थी तथा उन्होंने नोहर नामक स्थान पर वीरगति पाई थी। उन्होंने गुग्गा को मुसलमान पीर कहे जाने के कारण पर लिखा है कि हिसार और सिरसा की सीमा का इलाका चाहिलवाड़ा कहलाता है जहाँ चौहान राजपूतों का ही राज्य था और वहां के चौहान “चाहिल चौहान” कहलाते हैं जो फ़िरोज तुग़लक़ (1351-1385 ईस्वी) के समय मुसलमान बने थे। उन चाहिल चौहानों ने ही यह प्रचार किया कि गोगा जी मुसलमान बन गए थे। गोगा जी के मुसलमान बनने की बात पूरी तरह से झूठ है और चाहिल चौहानों ने खुद मुसलमान बन कर अपने पूर्वज के भी मुसलमान बनने का झूठ फैला दिया। डॉ. विंध्यराज ने महमूद गजनवी के समकालीन फारसी इतिहासकार अल गर्देजी का भी हवाला दिया है जिसने लिखा था कि गोगा जी मरते दम तक मूर्तिपूजक हिन्दू थे।
यदि वे मुसलमान रहे होते तो वे मन्दिर के लिए गजनवी का सामना नहीं करते । अतः यही वर्णन मान्य है।
गोगा जी को राजस्थान में सिद्धपुरुष माना जाता है तथा साँपों का जहर उतारने और उनसे रक्षा करने वाले देवपुरुष के रूप में भी उनकी मान्यता है।
पश्चिमोत्तर भारत में अनेक स्थानों पर तथा विशेष रूप से राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में नोहर-गोगामेड़ी में इस दिन मेले लगते हैं जिनमें लाखों श्रद्धालु आते हैं। आज देश के युवाओं को सिद्ध पुरुष गोगाजी चौहान से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्रभाव के साथ अपने देश की रक्षा करने का प्रण लेना चाहिए। हमारे पूर्वज जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया ऐसे महापुरुषों से प्रेरणा लेकर हम भी देश हित में कार्य करें । गोगाजी चौहान को हम सभी की यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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