गायिका मैथिली ठाकुर बनीं ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान’ की ब्रांड एंबेसडर

दीपक दुआ

छोटी-सी उम्र में ही अपनी गायिकी से करोड़ों दिलों को भावविभोर करने वाली प्रख्यात लोक-गायिका मैथिली ठाकुर की सुर-यात्रा में एक और उपलब्धि जुड़ गई है। भारत के गृह मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान’ (एन आई डी एम) ने मैथिली को अपने पहले ब्रांड एंबेसडर के तौर पर चुना है। मैथिली पहले से ही पूरे विश्व में भारत की युवा व सांस्कृतिक आइकॉन के तौर पर जानी जाती हैं। मात्र 23 वर्ष की आयु में मैथिली अपनी लोक-गायिकी व भक्ति-गायन से भारत के अलावा विदेशों में भी खासा नाम कमा चुकी हैं। बहुत छोटी उम्र से ही उन्होंने अपने पिता रमेश ठाकुर के मार्गदर्शन में गायन व संगीत की शिक्षा लेकर गाना शुरू कर दिया था। देश-विदेश के तमाम प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुकीं मैथिली की सादगी और विनम्रता भी दर्शनीय व अनुकरणीय है। उनके दोनों छोटे भाई ऋषभ व अयाची भी उनके कार्यक्रमों में उनका साथ देते हैं।

नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में रक्षाबंधन के दिन आयोजित एक कार्यक्रम में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिसास्टर मैनेजमेंट के कार्यकारी निदेशक राजेंद्र रत्नू ने इस अवसर पर कहा कि मैथिली अपनी आवाज व संगीत के द्वारा पहले से ही न सिर्फ भारत की सांस्कृतिक धरोहर को सहेज रही हैं बल्कि करोड़ों लोगों को राहत भी पहुंचा रही हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अब मैथिली के गायन के जरिए आपदा नियंत्रण के प्रति दूरदराज के लोगों को उनकी अपनी भाषा में ही जागरूक किया जा सकेगा। राजेंद्र रत्नू ने कहा कि हम प्राकृतिक खतरों को तो नहीं रोक सकते लेकिन उन्हें आपदा बनने से जरूर रोका जा सकता है और एन आई डी एम इसी दिशा में काम कर रहा है। अक्टूबर में इस संस्थान को 20 वर्ष पूरे हो जाएंगे और इस अवसर पर युवाओं के बीच बेहद लोकप्रिय व खुद भी बहुत युवा मैथिली का जुड़ना एक शुभ संकेत है।
मैथिली ठाकुर ने कहा कि उनके पिता 1995 में बिहार की बाढ़ से पीड़ित होकर दिल्ली आए थे और कुछ समय पहले पूरे विश्व ने कोरोना की आपदा भी देखी है, इसलिए वह समझती हैं कि आपदा नियंत्रण या प्रबंधन के प्रति लोगों में चेतना जगाना कितना आवश्यक है। मैथिली ने यह भी कहा कि मैं खुद को इस कार्य के लिए सक्षम पाती हूं कि भारत के कोने-कोने में जाकर वहां की भाषा में गाकर उनसे जुड़ सकूं। मैथिली ने इस अवसर पर गुजराती भक्ति साहित्य के श्रेष्ठ संत कवि नरसी मेहता के भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जे पीड़ पराई जाने रे…’ गाकर अपनी यह मंशा भी जाहिर की कि वह संगीत के द्वारा दूसरों के दुख हरने का इरादा रखती हैं।

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