नीतीश ने तीसरी बार पकड़ी अलग राह, भाजपा से बढ़ती नजदीकी की अटकलें तेज

Bihar CM meets PM Modi

बिहार के राजनीतिक गलियारे में चल रही हलचल पर यह उक्ति बिल्कुल सटीक बैठती है- ‘लीक-लीक चींटी चलें, लीकहिं चले कपूत. लीक छोड़ तीनों चलें- शायर, शेर, सपूत…” जी हां! बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का स्टैंड कुछ ऐसा ही है, जो लीक पर नहीं चलते और अपनी अलग राह बनाते चलते हैं.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का मोदी सरकार के नोटबंदी समर्थन से शुरू हुआ यह सिलसिला महागठबंधन से इतर स्टैंड लेकर एनडीए के राष्ट्रपति उम्मीदवार को समर्थन देने तक जारी है. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार हैं और उनका स्टैंड पूरी पार्टी को मंजूर होता है. नोटबंदी का विरोध सामान्यतया सभी एंटी एनडीए फ्रंट में शामिल दलों ने किया, लेकिन नीतीश कुमार का स्टैंड अलग रहा और उन्होंने कहा कि यह कदम उचित है. साथ ही, उन्होंने बेनामी संपत्ति पर भी नोटबंदी की तरह प्रहार करने की बात कही. हाल के दिनों में केंद्र सरकार ने बेनामी संपत्ति पर भी प्रहार करना शुरू कर ही दिया है. नोटबंदी के बाद एंटी एनडीए फ्रंट के लिए एकजुट होने का एक और मसला सामने आया, राष्ट्रपति चुनाव, इसमें भी नीतीश कुमार ने अपने मन की सुनी और एनडीए के उम्मीदवार को समर्थन करने की घोषणा कर दी. अब एक बार फिर नीतीश कुमार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मामले पर महागठबंधन से अलग धारा में जाते हुए दिख रहे हैं.

जानकारी के मुताबिक, शुक्रवार यानी आज आधी रात को जीएसटी के लांचिंग समारोह में विपक्षी पार्टियों के भाग लेने की संभावना कम है. इधर, जीएसटी लांचिंग समारोह का कांग्रेस और राजद द्वारा बहिष्कार करने के एलान के बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक कार्यक्रम में भाग लेते वक्त गुरुवार को कहा कि जीएसटी का सभी दलों को समर्थन करना चाहिए और लांचिंग समारोह में भाग लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि उनका दल तो शुरू से ही जीएसटी का समर्थन करता रहा है़. उन्होंने जोर देकर कहा कि अब तो यह संवैधानिक चीज है़, फिर इसका विरोध क्यों? उन्होंने कहा कि वे जीएसटी का समर्थन करते हैं और जीएसटी लांचिंग को लेकर संसद में शुक्रवार की रात आयोजित होनेवाले समारोह में हिस्सा लेंगे. उन्होंने कहा कि पहले तो जीएसटी का प्रस्ताव कांग्रेस के मनमोहन सिंह ने ही दिया था़, फिर इसका विरोध करने का क्या औचित्य है ?

उधर, राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने कहा है कि राजद जीएसटी समारोह का विरोध करेगा. उन्होंने कहा कि यूपीए द्वारा जीएसटी को पास किया गया. मोदी सरकार इसका दुरुपयोग कर रही है. एनडीए वाले इंडिया शाइनिंग का जश्न मना रहे हैं. अब ये लोग हुआं-हुआं करेंगे. ऐसे में राजद इस समारोह में शामिल नहीं होगा. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि नीतीश ने एंटी एनडीए फ्रंट के विपरीत जाकर एनडीए के फैसलों का समर्थन किया है. मात्र छह महीने के अंदर उन्होंने तीसरी बार अपने अलग स्टैंड पर कायम रहने जैसा कदम उठाया है. महागठबंधन में शामिल दलों द्वारा जीएसटी का विरोध के बावजूद, वह अपने समर्थन की बात पर कायम हैं. राजनीतिक जानकारों की मानें, तो अब एक बार फिर नीतीश के दिल्ली पहुंचने को भाजपा से बढ़ती नजदीकी की अटकलें तेज हो गयी हैं. इतना ही नहीं, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि बिहार में महागठबंधन की एकता को लेकर एक बार फिर राजनीति गरमाने के आसार दिखने लगे हैं.

इन सारी सियासी कवायदों के बीच, उस दिन को भी याद करना जरूरी है, जब नोटबंदी के खिलाफ लगातार लालू यादव आग उगल रहे थे और नीतीश कुमार नोटबंदी का समर्थन कर रहे थे. बात आयी- गयी हो गयी. हाल में नीतीश कुमार की पीएम मोदी से मुलाकात और उसके एक दिन पहले सोनिया गांधी द्वारा आयोजित लंच में नीतीश का शामिल नहीं होना, उन इशारों को हवा दे गया, जिसमें यह कहा जा रहा था कि नजदीकी बढ़ रही है. उस मुलाकात के बाद राजनीतिक हवा का रुख ऐसा बदला कि लालू ने ट्वीट कर लिखा कि भाजपा को नया पार्टनर मुबारक हो. विपक्ष द्वारा राष्ट्रपति चुनाव में मीरा कुमार को खड़ा करने पर नीतीश ने कहा कि क्या बिहार की बेटी को हारने के लिए चुना गया है? उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि क्या यह वही रणनीति है, जो विपक्ष 2019 के चुनावों के लिए अख्तियार करेगा. इतना ही नहीं, नीतीश ने कोविंद के समर्थन की वजह बताते हुए कहा कि बिहार के राज्यपाल के रूप में उन्होंने बिना किसी पक्षपात के काम किया. उन्होंने कहा कि एक ऐसे व्यक्ति का समर्थन करने में उन्हें गर्व महसूस हो रहा है, जिसका बिहार से गहरा नाता रहा है.

वैसे भी राजनीतिक पंडित मानते हैं कि राजनीति में अपने अलग सिद्धांत, नैतिकता और स्टैंड के लिए नीतीश कुमार को जाना जाता है. वह सियासी मुद्दों को आम लोगों के हितों से जोड़कर देखते हैं और इसलिए उनका फैसला कई बार खुद के एक खास लॉजिक पर आधारित होता है. नोटबंदी, राष्ट्रपति चुनाव और अब जीएसटी का खुलकर समर्थन करना, यह प्रमाणित करता है कि वह राजनीति में दलीय स्वार्थ से ऊपर उठकर कई फैसले लेते हैं. फिलहाल, कुछ वक्त के लिए ठंडी पड़ी बिहार की राजनीति नीतीश के इस फैसले से एक बार फिर गरमाएगी, लेकिन इससे कोई खास फर्क नीतीश के फैसले पर नहीं दिखने जा रहा है.

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