आसपास से उठाता हूं किरदार- गोविंद नामदेव

दीपक दुआ आज देश के जाने माने फिल्म पत्रकारों में से एक हैं। स्वभाव से घुमंतु दीपक एक कामयाब लेखक,स्तंभकार भी हैं।

मध्यप्रदेश के सागर में जन्मे और दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में एक लंबा समय बिताने के बाद मुंबई की रंग- बिरंगी दुनिया में नाम कमाने वाले अभिनेता गोविंद नामदेव का ध्यान अब फिल्मों में अभिनय करने से ज्यादा अभिनय सिखाने पर है। उनका कहना है कि मैंने जो कुछ अर्जित किया है उसे बांट देना चाहता हूं।


__ पर्दे पर आपके निभाए किरदार काफी वास्तविक – से लगते हैं। कैसे आप इतनी गहराई तक जाकर इन्हें पकड़ पाते हैं?

__ मुझे जब कोई किरदार सुनाया जाता है तो वहीं से मेरे मन में उसकी एक छवि आकार लेनी लगती है। उसके बाद मेरा अपना रिसर्च वर्क भी रहता है। अपने आसपास के लोगों को जब मैं देखता हूं तो उनमें उन किरदारों -सजयूं-सजयता हूं। जैसे ‘ओह माई गॉड’ का जो मेरा किरदार था वो एक ऐसे साधु से प्रेरित था जो मैंने अपने बचपन में देखा था। सागर में वो हमारे पड़ोस के एक मंदिर में रहते थे। हम बच्चे उन्हें सताते थे तो वह हम पर खूब गुस्सा करते थे। इसी तरह से अपने आसपास के लोगों को देखता रहता हूं।

__ कभी कोई किरदार शूटिंग के बाद घर तक भी जाता है ?
__ वो किरदार जाता है जिसके लिए मैंने खूब मेहनत की हो। जैसे ‘विरासत’ का किरदार था जिसमें मेरा मुंह टेढ़ा था। इसकी शूटिंग के बाद कई बार खाना खाते – खाते या बात करते – करते मेरा मुंह टेढ़ा हो जाता था।

__ आपने काम काफी कम ही किया है। इसकी क्या वजह रही ?
__ वजह यही थी कि मुझे सिर्फ अच्छा काम करना था। ऐसा काम करना था जिसमें मैं अपनी ओर से कुछ नया दे सकूं। अगर मैं अपने पास आने वाला हर काम करता चला जाता तो अब तक खत्म हो चुका होता।
__ आप अभिनय पढाते भी हैं। वे कौन – सी चीजें हैं जो आप अपने विद्यार्थियों को सबसे ज्यादा सिखाते हैं?
__ ऑब्जर्वेशन और रिसर्च – वर्क। इन दो चीजों के बिना आप अपने काम में नयापन नहीं ला सकते।


__ आपका कभी मन नहीं हुआ डायरेक्टर बनने का ?
__ नहीं, कभी सोचा ही नहीं कि एक्टिंग से हट कर भी कुछ करना है। हां, यह भी है कि जीवन भर एक्टिंग भी नहीं करनी है। जल्द ही ऐसा वक्त आएगा जब मैं अभिनय को थोड़ा किनारे करके अभिनय सिखाने पर ज्यादा ध्यान देने लगूंगा। मेरा मन है कि जो ज्ञान मैंने अर्जित किया है, उसे मैं बांट कर जाऊं।
__ इस दिशा में प्रयास भी हो रहे हैं ?
__ बिल्कुल हो रहे हैं। हर साल दिल्ली जाकर एन.एस. डी. में एक हफ्ते के लिए नई पीढ़ी से रूबरू होना भी इसी का हिस्सा है। अपनी छोटी बेटी की शादी के बाद मैं सक्रिय एक्टिंग को छोड़ कर अपने गृह-प्रदेश मध्यप्रदेश में एक एक्टिंग स्कूल खोलने का इरादा रखता हूं। जमीन वगैरह ले ली है और बहुत जल्द बाकी काम भी हो जाएंगे।


__ इन दिनों कौन – सी फिल्में कर रहे हैं ?
__ काफी सारी फिल्में फ्लोर पर हैं लेकिन दो उल्लेखनीय फिल्में जो हैं उनमें से पहली है ‘काशी – इन सर्च ऑफ गंगा’ जिसमें शरमन जोशी हीरो हैं और मेरा एकदम निगेटिव किरदार है। दूसरी फिल्म है ‘जंक्शन वाराणसी’ जिसमें एक बहुत ही पॉजिटिव डॉक्टर का किरदार है जो शहर की चकाचौंध और पैसा – वैसा छोड़ कर एक गांव में बस जाता है और गांव वालों का फ्री में इलाज करता है। उसका एक बेटा है जो मानसिक रूप से कमजोर है और वह अपने बेटे के लिए रोता रहता है। इसमें जरीना वहाब मेरी पत्नी बनी हैं।

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