अभिव्यक्ति की आजादी – शरत सांकृत्यायन की कलम से

 

 

 

 

 

 

 

शरत सांकृत्यायन

 

कल देर शाम JNU कैंपस में एक बार फिर दो विपरीत विचारधाराएं आपस में टकरा गयीं… जमकर लात घूंसे चले…कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रही विरांगनाओं ने भी युद्धभूमि का स्वाद चखा…चीखपुकार सुन मौके पर पहुंची पुलिस को विवि प्रशासन ने यह कहकर कैंपस के बाहर ही रोक दिया कि यह विचारधाराओं का टकराव है और इसमें आपके हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है…इन्हें आपस में ही तय कर लेने दें कि वर्तमान में किसकी विचारधारा मजबूत है….अब ये तो सब जानते ही हैं कि एक बूढ़ी, जर्जर, लड़खड़ाती, मृतप्राय विचारधारा तरुनाई से भरपूर, जोश और जज्बे से लबालब दूसरी विचारधारा के सामने कबतक टिक पाएगी…. सो अब लाल सलाम करने वाली हथेलियां, लात घूसों से लाल हुए अपने पिछवाड़े को सहलाती भागी फिर रही है….दरअसल सारी बदमाशी इस अभिव्यक्ति की आजादी का है….वामी ये मानकर चल रहे थे कि JNU के अंदर भारत के टुकड़े करने, आतंकियों-नक्सलियों का महिमामंडन करने, सेना को बलात्कारी बताने, हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करने की उन्हें खुली आजादी मिली हुई है लेकिन दक्षिणपंथियों को यहां अपनी बात कहने की कोई आजादी नहीं है….लेकिन वे यह याद रखना भूल गये कि उनका वामपंथ अब बूढ़ा और कमजोर हो चुका है और कल का बच्चा दक्षिणपंथ आज कड़क जवान है, उसके पीछे सत्ता की ताकत है….वो अब आपकी गीदड़ भभकियों पर चुप नहीं बैठेगा और किसी भी उलटी सीधी हरकत का मुंहतोड़ जवाब देगा….और वही हुआ….देश के विभिन्न हिस्सों में जबरन धर्म परिवर्तन की बढ़ती घटनाओं पर बनी एक फिल्म का कैंपस में प्रदर्शन चल रहा था….वाम संगठनों को ये पसंद नहीं आया और वे जबरन फिल्म को रोकने चले आये….फिर क्या….जम कर कूटे लतियाये गये और अब टेसुआ बहाते हुए घूम रहे हैं….सारे इंकलाब वगैरह इधर उधर कोनों में पड़े कराह रहे हैं….अब शुरू हो जाएगा विधवा विलाप।

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