बुक रिव्यू- उठापटक वाली भारतीय राजनीति में क्षेत्रिय दलों का सेंसेक्स- संजय पाण्डेय

लेखक-अकु श्रीवास्तव

विविधिता भरे भारत की राजनीति को समझना टेढ़ी खीर है। धर्म, जात, पंथ, क्षेत्र, भाषा और राजनीतिक वरियताओं में उलझी भारतीय राजनीति की कई परतें हैं। इन परतों को खोलने से पहले क्षेत्रिय दलों के राजनीतिक चरित्र को समझना अत्यंत आवश्यक है। कुछ क्षेत्रिय दल ने अपने हलकों में प्रभुत्व जमाने में सफल रहे तो कुछ ने राष्ट्रीय फलक पर अपने निशान उकेर दिए। अपनी पहचान बनाने को उनकी छटपटाहट आज भी उतनी ही गहरी है। क्षेत्रिय दलों के इतिहास, वर्तमान और भविष्य के साथ उनकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं को अगर समझना है तो अकु श्रीवास्तव की नई किताब “सेंसेक्स क्षेत्रिय दलों का” आपके लिए है।

किताब क्षेत्रीय दलों की पैदाइश को नए नजरिए से देखती है। यह जानना दिलचस्प है कि कुछ क्षेत्रीय दल आजादी से पहले या उसके आस पास जन्म ले चुके थे। दक्षिण में द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम और पंजाब में अकाली दल इसका उदाहरण हैं। ये दल बेशक कांग्रेस से ज्यादा पुराने न हों पर समकक्ष जरूर कहे जा सकते हैं। आजादी के बाद और नेहरू युग की समाप्ति के उपरांत कांग्रेस जरूर अमीबा की तरह बंटती चली गई, पर वह अकेली इन क्षेत्रीय दलों को बनाने का सेहरा अपने सिर नही बांध सकती। किताब उन कारणों पर भी नजर डालती है जो इन दलों के कोर वोटरों को कहीं अंदर तक छूता है। क्षेत्रिय दलों के वजूद को बनाए रखने में मददगार नेताओं और वंशवाद  के साथ कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी किताब फोकस करती है।

पुस्तक मूल्य -४०० रुपये

राजनीति में धर्म का छौंक कोई नया शिगूफा नहीं है। हिंदू- मुसलमान के नाम पर देश के बंटवारे के बावजूद धर्म आधारित पार्टियों ने किस कदर और किस तेजी से सत्ता की सीढ़ियां चढ़ी यह समझना महत्वपूर्ण है। अपना प्रभुत्व जमाने के लिए स्थानीय पार्टियों ने कई दांव खेले। किसी ने भाषाई प्रेम को राजनीतिक हथियार में बदल कर नए राज्य की मांग की तो किसीने सामाजिक चेतना के आंदोलनों को राजनीति के केंद्र में लाने की कोशिश। जातीय समीकरणों के जरिए सत्ता का स्वाद चखने जैसे अनेकों फॉर्मूलों और क्षेत्रिय दलों के हर दांव को बारीकी से समझने में यह किताब मदद करती है।

यह किताब करीब 375 पन्नों की है और हर पन्ने पर प्रादेशिक पार्टियों का भूत भविष्य और वर्तमान बिखरा मिलेगा। तीसरे मोर्चे की जान कही जाने वाली राज्य स्तर की इन पार्टियों ने राजनीतिक सौदेबाजी कर केंद्र में कई सरकारें बनाई और गिराई हैं। खाटी हिंदी बेल्ट की पार्टियां हो या पश्चिम के ताकतवर छत्रपों के दल, भाषाई और क्षेत्रिय आधार पर बनी दक्षिण की क्षेत्रिय पार्टियां हो या सुदूर उत्तर पूर्व के छोटे दल, देश के करीब सभी कोनों की स्थानीय पार्टियों को किताब में अलग से स्थान मिला है। उनकी राज्य स्तरीय व राष्ट्रीय आकांक्षाएं और उनका केंद्रीय राजनीति पर पड़ने वाले असर को भी समझने की एक कोशिश, किताब में दिखाई देती है।

लेखक अकु श्रीवास्तव दशकों से देश की राजनीति पर गहरी नजर रखते हैं। उनकी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, उनकी किताब “मोदी 2.0” ने तो सफलता के कई नए प्रतिमान स्थापित किए हैं। अकु श्रीवास्तव की नई किताब “सेंसेक्स क्षेत्रिय दलों का” में राजनीति में रूचि रखने के वालों के साथ साथ राजनीतिक पंडितों, जननेताओं, ट्विटर वीरों, सोशल मीडिया एक्टिविस्टों, पार्टी वर्कर्स, सोशल, लिबरल, वाम व दक्षिण पंथियों और राजनीति के मझें हुए खिलाड़ियों तक सभी के लिए कुछ न कुछ है।

समीक्षा-  संजय पाण्डेय

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