बिहार में चुनाव है पर कहां गायब हैं चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ?

मनीष वत्स

बिहार चुनाव में राजनैतिक समीकरण बन बिगड़ रहे हैं। एक तरफ मांझी महागठबंधन से बाहर हो गए वहीं दूसरी तरफ चिराग पासवान एनडीए में दबाव की राजनीति कर रहे हैं। बिहार चुनाव में राजद ने अपनी रणनीति पूरी तरह बदल ली, अब पोस्टरों में सिर्फ तेजस्वी यादव नजर आ रहे हैं, दशकों तक बिहार की राजनीति के स्तम्भ रहे लालू यादव पोस्टरों से भी गायब हैं। बात अगर गायब होने की है तो बिहार की राजनीति से कई लोग गायब हैं, लालू अगर पोस्टरों से गायब हैं तो एक समय नरेंद्र मोदी और 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश के खासमखास रहे प्रशांत किशोर तो इस बार पूरी सीन से ही गायब हैं, उनकी कोई चर्चा भी नहीं कर रहा।

कहते हैं कि जब 2014 में जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आ गए तो प्रशांत किशोर चाहते थे कि उन्हें पीएमओ में जगह मिले। सूत्रों के हवाले से एक रिपोर्ट में दावा किया गया कि पीके अपनी टीम के साथ पीएमओ में एक टीम का नेतृत्व करना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारतीय जनता पार्टी की गुजरात इकाई के एक वरिष्ठ नेता ने किशोर को महत्वाकांक्षी बताते हुए अवसरवादी तक कहा । बीजेपी नेता ने बताया – साल 2011 में एक रियल स्टेट कारोबारी ने नरेंद्र मोदी से किशोर की मुलाकात कराई थी, तब उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि किशोर की महत्वाकांक्षा है कि वह राजनीति में आगे बढ़ें । किशोर लंबे समय तक लोगों से चुनावी रणनीतिकार और एक कंपनी चलाने वाले शख्स के तौर पर मुलाकात करते हैं । उनका कोई सिद्धांत नहीं है, वह सिर्फ अवसरवादी हैं’


जब पीके को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ज्यादा भाव नहीं दिया तो बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में वो महागठबंधन के सारथी बन गए। संयोग की बात है कि बिहार में समीकरण महागठबंधन के पक्ष में था। नीतीश और लालू यादव की जोड़ी को जातिगत समीकरण ने सत्ता की कुर्सी दे दी, बाद में पीके पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह, महाराष्ट्र में शिवसेना और आंध्रा में जगनमोहन रेड्डी के चुनावी मैनेजर बने।

यहां देखने वाली बात यह है कि चाहे 2014 का लोकसभा इलेक्शन हो, 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव या पंजाब और आंध्रा का चुनाव, इन तमाम चुनावों में पहले दिन से गणित जीतने वाली पार्टी के पक्ष में था। जनता की पसंद हो या जातिगत समीकरण, ये पहले दिन से तय था कि अमुक पार्टी ही चुनाव जीत रही है, अगर प्रशांत किशोर राजनीति के इतने बड़े ही सूरमा थे तो 2017 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कांग्रेस को क्यों नहीं जितवा दिया?

नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को बहुत सम्मान दिया। यहां तक कि तमाम वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं को अनदेखा करके उन्हें पार्टी उपाध्यक्ष का पद दिया। कहा तो यहां तक जाने लगा कि जदयू में प्रशांत नम्बर 2 की हैसियत रख रहे हैं। राजनैतिक भविष्यवक्ता तो प्रशांत को नीतीश के उत्तराधिकारी के रूप में भी देखने लगे थे। बिहार के युवाओं में भी पीके अपना क्रेज बनाने लगे तभी ऐसा क्या हुआ कि प्रशांत अपनी पार्टी और गठबंधन के खिलाफ आग उगलने लगे? उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी बुरा भला कहा फलस्वरूप उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया।
जदयू से निकाले जाने के बाद प्रशांत किशोर ने 18 फरवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस कर ‘बात बिहार की’ नाम से एक कैंपेन शुरू करने की घोषणा की थी।

तब उन्होंने कहा था, ‘मैं अगले सौ दिन तक केवल बिहार की हर पंचायत, प्रखंड और गांव में जाऊंगा। बिहार की 8800 पंचायतों में से एक हजार ऐसे लोगों को चुनूंगा, उनसे जुड़ूंगा जो यह समझते हैं कि अगले दस सालों में बिहार को देश के अग्रणी राज्यों में खड़ा होना चाहिए।’

लेकिन, सौ दिन तो बड़ी बात है प्रशांत किशोर तीस दिन भी बिहार में नहीं रुके। पटना का दफ्तर मार्च के आखिर तक बंद हो गया। भीड़ गायब हो गई। प्रशांत किशोर खुद पटना से बाहर चले गए। पटना में जो लोग उनके और उनकी कंपनी आइ-पैक के लिए काम कर रहे थे वे ‘मिशन बंगाल’ में लग गए। सवाल उठता है कि एकदम से ऐसा क्यों हुआ? फरवरी में पूरे जोश के साथ एक मुहिम की लॉन्चिंग करने वाले प्रशांत किशोर एक महीने बाद ही ठंडे क्यों पड़ गए?

पीके बिहार को एक नया भविष्य देने की बात कर रहे थे, पर अपने भविष्य की तलाश में लग गए। दैनिक भास्कर में छपी खबर के अनुसार प्रशांत की पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर से बात हुई है और कैप्टन उन्हें बड़ा पद देने वाले हैं। भास्कर को कांग्रेस नेता शाश्वत गौतम ने बताया है कि उन्होंने प्रशांत पर कंटेंट चोरी का केस दर्ज किया है। उनका कहना है कि प्रशांत महाफर्जी आदमी है और घोर जातिवादी है।

बिहार की राजनीति को समझने वाले लोगों का एक वर्ग पीके को सिर्फ बिजनेस मैन मानते हैं। वो मानते हैं कि पीके बिहार को समझ नहीं पाए और जब सबकुछ बिगड़ने लगा तो बोरिया-बिस्तर उठाकर निकल लिए।
कारण जो भी हो पर प्रशांत किशोर ने बिहार के युवाओं के साथ छल किया है। उन्हें राजनीति के सपने दिखाकर खुद भाग खड़े हुए । मुश्किल है कि इस विधानसभा चुनाव में प्रशांत बिहार में दिखें।

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