भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ़ अप्लाइड साइंसेज ने किया अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार

भास्कराचार्य कॉलेज ऑफ एप्लाइड साइंसेज ने 07 से 08 मार्च, 2022 तक अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर 2 दिवसीय राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन किया। कार्यशाला का शीर्षक महिला सशक्तिकरण: चुनौतियां, जरूरत और मुद्दे रहा। कॉलेज के कार्यवाहक प्राचार्य प्रो अवनीश मित्तल जी ने बताया कि महिलाये किस तरह समाज का एक अभिन्न अंग है। उनके बिना घर व समाज की उन्नति मुमकिन नहीं है। कार्यकर्म के प्रथम दिन उद्घाटन सत्र में कॉलेज की गोवर्निंग बॉडी चेरपर्सन श्रीमती माधुरी वारशने ने अपने अध्यक्षीय भाषण में पुरातन काल से लेकर अब तक महिलाओं की स्तिथि के बारे में बताया। उन्होंने बताया की किस तरह हमारी दिनचर्या में होने वाले प्रत्येक कार्य में महिला की जरूरत व भूमिका रहती है। कार्यकर्म के मुख्य भाषण के रूप में डॉ रंजना अग्रवाल, निर्देशक, सीएसआईआर-निसटडस, दिल्ली, ने सप्तऋषी तारों के बारे में बताया की वो सात नहीं अपितु आठ तारों का समूह है, जिसमे सातवाँ तारा महर्षि वशिष्ठ व उनकी पत्नी अरुंधति 2 तारों का एक समूह है और दोनों तारे एक दूसरे के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं। उन्होंने विज्ञान की भाषा में भी बताया कि किस तरह क्रोमोसोम अलग होने से लड़का और लड़की में भेद मिलता है। उन्होंने बताया कि अध्यात्म काल से ही नारी को देवत्व प्राप्त हैं. नारियों का स्थान वैदिक काल से ही देव तुल्य हैं इसलिए नारियों की तुलना देवी देवताओं और भगवान से की जाती हैं। प्रथम दिवस की मुख्य वक्ता के रूप में आरती जैमन जोगीरा सामुदायिक रेडियो की सीनियर एडिटर है उन्होंने आज की महिलाओं को अपने हक के लिए किस तरह सामाजिक बुराइयों और हर मुद्दे पर खुलकर बात करनी होगी। उन्होंने बताया कि घर की महिलाएं और बच्चियां सामाजिक बुराइयों का हल निकालने और समस्याओं से जूझने में अपना योगदान किस तरह कर सकती है। कार्यक्रम के सह-संयोजक डॉ. मनजीत सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया व अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत कब हुई और इसे क्यों शुरू किया गया उन्होंने महिला सशक्तिकरण को कैसे मजबूत किया जाए और उसके मुख्य शीर्षक क्या क्या है उनके बारे में विस्तार से बताया।
सेमिनार के दूसरे दिन सम्मानीय अतिथि के रूप में प्रो. बलराम पाणि, कॉलेज ऑफ डीन, दिल्ली विश्वविद्यालय ने अपने भाषण में महिलाओं की पुरातन काल से लेकर अब तक की स्थिति और उस पर होने वाले नए-नए कार्यों के बारे में विस्तार से बताया। दूसरे वक्ता के रूप में डॉ प्रीतम सांगवान, साइंटिस्ट-ई और ज्वाइंट डायरेक्टर, सीएफईईएस, डीआरडीओ, दिल्ली ने महिलाओं की विज्ञान में भागीदारी और किस तरह उन्होंने नए-नए अनुसंधान करके भारत ही नहीं अपितु विश्व को नई-नई खोजों से नवाजा है। उन्होंने बताया कि किस तरह राजा राममोहन राय ने सती प्रथा को लेकर विरोध किया और महिलाओं पर होने वाली इस कुप्रथा को खत्म किया। कार्यक्रम की दूसरी वक्ता के रूप में श्रीमती भावना गुप्ता, एडवोकेट, पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने कानून की धाराओं में किस तरह महिलाओं को सुरक्षित और संरक्षित बनाने के लिए प्रावधान है, उनको बच्चों के साथ साझा किया उन्होंने अपने इंटरएक्टिव सेशन में बच्चों के साथ बातचीत की। कार्यक्रम की अंतिम वक्ता के रूप में डॉ सुनीता सहरावत, प्राध्यापक, जी डी गोयंका यूनिवर्सिटी, गुड़गांव ने बताया कि किस तरह परिवार में ही महिलाओं के साथ बचपन से ही भेदभाव शुरू हो जाता है और उस भेदभाव के कारण लड़कियों में होने वाली कुंठा और नकारात्मकता उत्पन्न होती है और उसको कैसे खत्म किया जा सकता है। बेटों को बेटियों की तरफ पालना और उनको घर के काम सिखाया जाना चाहिए इस बात पर उन्होंने जोर दिया। कॉलेज प्रांगण में दोनों दिन महिला शिल्पकारो ने अपने छोटे-छोटे स्टार्टअप्स के रूप में अपनी प्रदर्शनी भी वहां पर लगाई जिसमें से हाथ से बनाने वाली चीजों पर जोर दिया गया। महिला कलाकारों ने बताया कि किस तरह उन्होंने अपने आप को स्वावलंबी बनाकर अपने परिवार, अपने समाज, व अपने देश के रूप में योगदान किया। कार्यक्रम के अंत में संयोजिका डॉ वंदना बत्रा ने बताया कि किस तरह आज के आधुनिक युग में हम सबको चार मुख्य बिंदुओं पर कार्य करना चाहिए, स्वयं को लेकर, परिवार को लेकर, समाज को लेकर, सार्वजनिक व्यवस्था को कैसे सुधार करके हम अपने आसपास के वातावरण को और ज्यादा सुदृढ़ कर सकते हैं। जिसमें महिलाओं को फिर से देव तुल्य स्थान दोबारा प्राप्त हो सके। उन्होंने इस दो दिवसीय सेमिनार में आए हुए सभी अतिथियों का, वक्ताओं का, आयोजन समिति व छात्रों का धन्यवाद किया, जिनकी वजह से यह कार्यक्रम सुचारू रूप से संपन्न हो सका। दोनों दिन कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रगान हुआ।

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