मिलिए ‘बैंक चोर’ भुवन अरोड़ा से

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दीपक दुआ
लेखक वरिष्ठ फिल्म समीक्षक व पत्रकार हैं। 1993 से फिल्म–पत्रकारिता में सक्रिय। मिजाज से घुमक्कड़। सिनेमा विषयक लेख, साक्षात्कार, समीक्षाएं व रिपोर्ताज लिखने वाले दीपक कई समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, न्यूज़ पोर्टल आदि के लिए नियमित लिखते हैं और रेडियो व टी.वी. से भी जुड़े हुए हैं।

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आर्मी अफसर पिता के बेटे भुवन अरोड़ा अब तक ‘शुद्ध देसी रोमांस’, ‘डेढ़ इश्किया’, ‘तेवर’ और ‘नाम शबाना’ जैसी फिल्मों में आ चुके हैं। अब यशराज से उनकी फिल्म ‘बैंक चोर’ आने को है जिसमें वह एक बैंक को लूटने पहुंचे तीन चोरों में से एक गुलाब का किरदार निभा रहे हैं। भुवन से उनके कैरियर को लेकर हाल ही में लंबी बातचीत हुई।
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-पहली बार कब महसूस हुआ कि एक्टिंग जैसी चीज को अपनाना है?

-सच कहूं तो बहुत छोटी उम्र में ही यह तय हो गया था। असल में मुझे अपने स्कूल की असेंबली में रोजाना ‘आज का विचार’ बोलना होता था जो टीचर लिख कर देते थे और सब बच्चों को यह आदेश था कि विचार सुनने के बाद ताली जरूर बजानी है। बस, वहीं से मन में आ गया कि ऐसा ही काम करना है जिस पर तालियां मिल सकें। फिर स्कूल में थिएटर वगैरह करने लगा और बारहवीं क्लास तक आते-आते तय कर लिया कि एक्टिंग ही करनी है। उन्हीं दिनों स्कूल में एक काउंसलर आए थे जो हमें बता रहे थे कि हमें बारहवीं के बाद क्या करना चाहिए। जब मैंने उन्हें बताया कि मैं एक्टर बनना चाहता हूं तो उन्होंने सीधे-सीधे बोल दिया कि अगर मेरी फैमिली में कोई एक्टर नहीं है तो मैं एक्टर बन ही नहीं सकता। बस, यह बात मेरे दिल को लग गई और मैंने ठान लिया कि अब तो एक्टर बन कर ही दिखाना है।

-और स्कूल के बाद आपने यह राह पकड़ ली?

-अजी कहां, हमारे घरों में होता है न कि पहले पढ़ाई पूरी करो, बाद में इन सब बातों के बारे में सोचना। तो मैं दिल्ली के पीजीडीएवी काॅलेज में बी.काॅम करने लगा लेकिन साथ ही साथ थिएटर लगातार चल रहा था और उसमें मैं राष्ट्रीय स्तर तक काम करने लगा था। उसके बाद मैंने हालांकि एक छोटी-मोटी नौकरी भी की लेकिन मेरा मन एक्टिंग में था तो यार-दोस्तों ने समझाया कि देख, थिएटर करनी है तो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में जा और अगर फिल्में करनी है तो पुणे फिल्म इंस्टिट्यूट जा। तो बस, मैं वहां से सीधा पुणे आ गया जहां मैंने नसीरुद्दीन शाह, कमल हासन, सौरभ शुक्ला, ओम पुरी जैसे दिग्गज लोगों से सीखा और फिर मुंबई आ पहुंचा।

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-एक्टिंग में जाने को लेकर घर वालों का कैसा रिएक्शन था?

-मेरे पेरेंट्स ने मुझे अगर बढ़ावा नहीं दिया तो निराश भी नहीं किया। उनका कहना था कि जिसमें तेरा मन है वह कर, लेकिन जो भी कर उसे पूरे समर्पण से कर।

-मुंबई क्या सोच कर गए थे कि इंडस्ट्री खुश होगी, जाते ही शाबाशी देगी?

-और कोई रास्ता भी तो नहीं था। इतना दूर आने के बाद कहीं और तो जा नहीं सकता था सो यहां आ गया और मेरी खुशकिस्मती ही कह लीजिए कि आते ही मुझे एक महीने के अंदर काम मिलने लगा था। टी.वी. के लिए काफी कुछ किया, विज्ञापनों में काफी काम किया और इस बीच धीरे-धीरे लोगों से संपर्क बनते गए और काम भी बढ़ता गया।

-पहली फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’ कैसे मिली?

-असल में मैंने ऑडिशन दिया था यशराज की ‘जब तक हैं जान’ के लिए लेकिन शाहरुख खान के रूममेट के उस रोल के लिए मैं उन्हें थोड़ा छोटा लग रहा था। पर मेरा ऑडिशन उन लोगों को पसंद आया और उसी के बेस पर मुझे यशराज की ही ‘शुद्ध देसी रोमांस’ में ले लिया गया।

-अभी तक आपने सारी फिल्में बड़े बैनरों की ही कीं लेकिन कोई भी आपको एक जबर्दस्त पहचान नहीं दे पाई। ऐसा क्यों?

-इसका कारण मुझे यह लगता है कि अपनी इन फिल्मों में मैं फिजिकली काफी अलग दिखता हूं। लेकिन मुझे इन फिल्मों से फायदा यह हुआ कि इंडस्ट्री के अंदर के लोग मुझे जान गए और इसी वजह से मुझे लगातार काम भी मिल रहा है। हां, पब्लिक में वह पहचान अभी तक नहीं बन पाई है पर मुझे यकीन है कि ‘बैंक चोर’ यह कमी भी पूरी कर देगी।
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-‘बैंक चोर’ के बारे में बताएं?

-पहली बार मैं एक लीड रोल कर रहा हूं। यह तीन ऐसे लोगों गुलाब, गेंदा और चंपक की कहानी है जो एक बैंक लूटने के लिए पहुंचे हैं और हद दर्जे के बेवकूफ हैं। मैं इसमें गुलाब हूं, चंपक रितेश देशमुख हैं और गेंदा का किरदार विक्रम थापा कर रहे हैं।
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-आगे आप किस तरह के किरदारों को करने की इच्छा रखते हैं?

-मैंने अपने लिए ऐसी कोई लाइन नहीं खींची है। अभी मैं फिल्में कर रहा हूं, कुछ वेब-सीरिज कर रहा हूं और मेरा सिर्फ यह मानना है कि जो भी रोल मैं करूं, चाहे वह पॉजिटिव हो, निगेटिव हो, कॉमिक हो या कैसा भी हो, उसे अलग तरह से करूं। मैं हर वह किरदार निभाना चाहूंगा, जिसे करके मुझे मजा आए और उसे मैं इस तरह से करना चाहूंगा कि दर्शकों को उसे देख कर मजा आए।

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