सांस्कृतिक वैभव की प्रतीक राम की अयोध्‍या में अंततः आ ही गये स्वर्णाक्षरों मे लिखे जाने वाले ऐतिहासिक पल-अनीता चौधरी

अनीता चौधरी

500 वर्षों के संघर्ष के बाद आखिरकार वो दिन आ गया जब अयोध्‍या में राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण की शुरुआत होने जा रही है। बुधवार यानी स्वर्णाक्षरों मे लिखे जाने वाले ऐतिहासिक दिवस 5 अगस्त को मंदिर निर्माण के लिए चांदी की ईट से दोपहर 12 बज कर 15 मिनट 15 सेकेंड पर मोदी जी के हाथों नींव रखी जाएगी। इस ईट से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है, लेकिन सच पूछिए तो राम मंदिर का शिलान्यास केवल आस्‍था से नहीं बल्कि अयोध्‍या के अस्तित्व से भी जुड़ा है, जिसे प्राचीन काल से ही मिटाने के हर संभव प्रयास किए गए। अयोध्‍या वह प्राचीन संस्कृति है जिसने प्राणियों में सद्भावना-हो और विश्व का कल्याण-हो कहकर लोकमंगल की कामना की है। यह शरणागत को आश्रय देने वाली और वसुधैव कुटुम्बकम की बात करने वाली सभ्यता है।

अयोध्‍या के इतिहास और लंबी लड़ाई पर यह कहना गलत नहीं होगा कि अपनी संस्कृति का संरक्षण और संवर्धन प्रत्येक नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है। विडंबना यह है कि वोटबैंक के लिए राम को भी पार्टी और विचारधारा से जोड़कर विवाद खड़े किये जाते रहे हैं। इस बात पर प्रत्येक भारतवासी को गर्व होना चाहिए कि केवल हमी ऐसे देश हैं जिसके पास अपने पूर्वजों की हजारों वर्ष पुरानी गौरवमयी वंशावली सुरक्षति है। रामायण काल के भूगोल पर भी अनेक अनुसंधान हुए हैं। कनिंघम की एन्शेन्टिक डिक्शनरी से लेकर पंडित गिरीशचंद्र “लन्दन के एशियाटिक सोसाइटी जनरल” तक लेखों की एक लम्बी श्रृंखला है। मगर अपने ही देश में रामराज्य स्थापित करने वाले राम का संघर्ष कलयुग में भी अस्तित्व को लेकर जारी रहा ।

मगर कलयुग में भी रामभक्त हनुमान बन कर राम के साथ रहे कालांतर से शुरू हुई ये लड़ाई जारी रही फिर तमाम सबूतों के साथ रामभक्तों ने अपने भगवान मर्यादा पुरुषोत्तम राम की लड़ाई आखिर जीत ली । 5 अगस्त से भव्य मंदिर निर्माण की शुरुआत हो जाएगी । अयोध्या नगरी एक बार फिर रंग-रोगन ,दीप माला के साथ दीपावली सा दृश्य उपस्थित करती हुई सज-धज कर तैयार है ।

खुद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संघ प्रमुख मोहन भागवत, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, ट्रस्ट के मुखिया महन्त नृत्य गोपाल दास के अलावा विश्व हिंदू परिषद से कई विशिष्ट गण धरती माता से नींव पूजन के साथ भवन निर्माण की आज्ञा मागेंगे । राम धरती की इजाज़त के साथ ही निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा और इसके साथ ही वर्षों की तपस्या पर भी पूर्ण विराम लग जायेगा ।

रामराज्य की उस प्रजातांत्रिक विरासत को याद रखते हुए सबसे पहला निमंत्रण कार्ड , इकबाल अंसारी को, जो बाबरी मस्जिद विवादित ढांचे की मुख्य पैरोकार थे, दिया गया है । जो राम के मूल्यों में समाहित भारत की सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है ।

संस्कृति किसी भी देश का प्राण होती है, वह हजारों-लाखों वर्षों की संचित पूँजी होती है। कहा जाता है कि यदि किसी देश का अस्तित्व समाप्त करना हो तो उसकी भाषा और संस्कृति को समाप्त कर दो। प्रत्येक देश के पूर्वजों के साथ उस देश का इतिहास और संस्कृति भी जुड़ी होती है। राम भारत की संस्कृति, सभ्यता और इतिहास के प्रतीक हैं। भारत की पहचान राम से है, बुद्ध, कृष्ण, महावीर आदि अवतारी पुरुषों से है। यदि इन देवतुल्य महापुरुषों/ भगवानों को जनमानस की स्मृति से मिटा दिया जाये तो शेष भारत के पास अपनी पहचान के नाम पर बचेगा क्या? महर्षि वाल्मीकि भारत के ही नहीं मानव इतिहास में आदि कवि हैं और रामायण प्राचीन ग्रंथों में से एक है। रामायण जिसमें 24 हजार श्लोक, पांच सौ सर्ग और सात कांड के बारे में कहा जाता है “काव्यबीजं सनातनम” अर्थात रामायण समस्त काव्यों का बीज है। महर्षि वाल्मीकि जी के समय सम्पूर्ण संसार में और कौन-कौन ऐसे कवि हुए हैं। भगवान राम के समय संसार के अन्य देशों में भी कोई ऐसा प्रतापी राजा हुआ है, यदि नहीं तो राम जी को संसार का पहला महान राजा माना जाना चाहिये। जिन्होंने सर्वप्रथम मानव जाति के लिए उच्च मूल्यों की स्थापना की। लंका विजय के पश्चात् न राज्य छीना, न नगर लूटा और न वहाँ की धरोहरें नष्ट कीं अपितु राज्य रावण के भाई को ही दे दिया। बाली का वध किया, राज्य सुग्रीव को दे दिया और अंगद को युवराज बना दिया। भगवान राम ने समाज के वंचित वर्ग और निर्धन वनवासी तक को अपने परिवार का अंग माना। माता शबरी हों (जनजाति) हो या मित्र निषाद राजा राम ने न कोई भेद किया न ही कोई अहंकार। राम की अयोध्या में कोई निर्धन नहीं, कोई ऊँच-नीच नहीं, कोई प्रताड़ित नहीं, असत्य और अन्याय का कोई स्थान नहीं। क्या संसार के किसी भी देश या जनसमूह के पास ऐसे उच्च आदर्श वाले चरित्र, राज्य और नगर हैं? ये ऐसा सवाल है रामराज्य और राम के आदर्श को समझने के लिए जिस पर चर्चा जरूरी है ।

वैसे राम की भव्यता को समझने के लिए चर्चा तो इसकी भी होनी चाहिए कि बाकी देशों में उस युग में लोग क्या करते थे, उनके जीवन मूल्य और जीवन स्तर क्या था? उनकी आर्थिक ,सामाजिक और राजनीतिक नीति क्या थी ? उनके व्यावसायिक बाजार कैसे थे? महर्षि वाल्मीकि रामायण में व्याख्या की गई है कि दशरथ जी का दरबार धन-धान्य और विलक्षण प्रतिभाओं से परिपूर्ण था , अयोध्या बारह योजन लम्बी और तीन योजन चौड़ी थी। उन्नत इतनी कि उसके राजमार्ग पर पुष्प बिखेरे जाते थे और नित्य जल छिड़का जाता था (मुक्तपुष्पावकीर्णेन जल सिक्तेन नित्यशः)। वहाँ व्यवस्थित विस्तृत बाजार जो सभी कलाओं के शिल्पी से परिपूर्ण थीं , नगर के चारों ओर सैकड़ों शतघ्नी (तोपें) भी लगी हुई हैं। वाल्मीकि जी ने अयोध्या का जो वर्णन किया है वह एक अति उन्नत, समृद्ध अन्तरराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र भी है। कालान्तर में यह केंद्र दुर्बल होता गया, मुग़लकाल में इसे पूर्णतः ध्वस्त कर दिया गया। आज उसी सांस्कृतिक केंद्र का पुनर्निर्माण होने जा रहा है। यह क्षण केवल हिन्दुओं के लिए ही नहीं अपितु प्रत्येक भारतवासी के लिए गौरवपूर्ण है, क्योकि अपने पूर्वजों की धरोहर को संजोना हमारा कर्तव्य है और उनका यशगान हमारी शान।

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