शहाबुद्दीन पर नकेल कसने वाले IAS सीके अनिल फंसे BSSC पेपर लीक मामले में, हुआ वारंट जारी

पटना : भारतीय प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी सीके अनिल एक बार फिर चर्चा में आ गये है. बीएसएससी पेपर लीक मामले में आयोग के अध्यक्ष सुधीर कुमार की गिरफ्तारी के बाद अब आइएएस अधिकारी सीके अनिल के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी हुआ है. वह बीएसएससी के ओएसडी हैं. इससे पहले सीके अनिल बारह साल पहले सीवान में डीएम पद पर रहने के दौरान सुर्खियाें में आये थे. सीके अनिल ने तत्कालीन सांसद मो. शहाबुद्दीन के राज को तहस नहस कर दिया था. हालांकि पेपर लीक मामले में अब वे खुद फंसते दिख रहे हैं.

1991 बैच के आइएएस अफसर सीके अनिल 2005 में सीवान के डीएम पद पर रहने के दौरान तत्कालीन सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन के साथ हुए विवादों काे लेकर प्रकाश में आये थे. 2005-06 में सीके अनिल ने शहाबुद्दीन का नाम वोटर लिस्ट से खारिज कर दिया था. इतना ही नहीं अनिल ने शहाबुद्दीन को जिला बदर करने का आदेश भी दिया था. सीके अनिल इसके बाद कई और जगहों पर भी रहे और वहां भी चर्चा में बने रहे है.
एक वक्त में दो सगे भाइयों को तेजाब से नहालकर मौत के घाट उतारने वाले राजद के पूर्व सांसद मो. शहाबुद्दीन के नाम मात्र से पूरा सीवान कांप जाता था. ऐसे वक्त में इस बाहुबली नेता को आइएएस अधिकारी सीके अनिल ने काबू में लिया था और इस गंभीर वारदात में आरोपी बनाने की हिम्‍मत जुटाई थी. शहाबुद्दीन के भय के साम्राज्‍य को तहस-नहस करने का श्रेय आइएएस सीके अनिल और आइपीएएस रत्‍न संजय को जाता है.

तेजाब कांड की वारदात के समय सीके अनिल सीवान के डीएम थे और रत्‍न संजय कटियार एसपी थी. इन्‍हीं दो जांबाज अधिकारियों ने भारी पुलिस बल के साथ शहाबुद्दीन के प्रतापपुर स्‍थित घर पर छापेमारी की थी. एसपी रत्न संजय और डीएम सीके अनिल की संयुक्‍त छापेमारी में शहाबुद्दीन के घर से पाकिस्‍तान में बने हथियार बरामद हुए थे. इतना ही नहीं उसके घर से बरामद एके-47 राइफल पर पाकिस्‍तानी ऑर्डिनेंस फैक्‍ट्री के छाप (मुहर) लगे थे. ये हथियार केवल पाकिस्‍तानी सेना के लिए होते हैं. इस बाहुबली नेता के घर से अकूत जेवरात और नकदी के अलावा जंगली जानवरों शेर और हिरण के खाल भी बरामद हुए थे.

इस छापेमारी के बाद उस वक्‍त के डीजीपी डीपी ओझा ने शहाबुद्दीन के पाकिस्‍तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ से संबंध होने की बात स्‍वीकारी थी. साथ ही इसे साबित करने के लिए सौ पेज की रिपोर्ट पेश की थी. शहाबुद्दीन के इस काले कारनामे पर से पर्दा हटाने वाले ओझा का तत्‍कालीन बिहार सरकार ने तुरंत से तबादला कर दिया था.

गौर हो कि 2001 में भी बिहार पुलिस शहाबुद्दीन के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश में उसके प्रतापपुर वाले घर पर छापेमारी की थी, लेकिन अंजाम बेहद दुखद हुआ था. शहाबुद्दीन के गुर्गों ने बेखौफ होकर पुलिस पर फायरिंग की थी. करीब तीन घंटे तक दोनों तरफ से हुई इस गोलीबारी में तीन पुलिस वाले मारे गये थे. इसके बाद पुलिस को खाली हाथ बैरंग लौटना पड़ा था. इस संगीन वारदात के बाद भी शहाबुद्दीन के खिलाफ कोई मजबूत केस नहीं बनाया गया था.

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