मिशन 2019- संघ मुक्त भारत

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शरत सांकृत्यायन

बीएसपी प्रमुख मायावती ने कहा है कि वे किसी भी दल के साथ गठजोड़ के लिए तैयार हैं। हाल के दिनों में आए चुनाव परिणामों और बीजेपी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता ने सभी दलों को परेशान कर रखा है। नरेन्द्र मोदी के विजयरथ को रोकने के लिए अब गैर बीजेपी दलों में आत्ममंथन का दौर शुरू हो चुका है। मायावती ने शुक्रवार को अंबेडकर जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि बीजेपी और ईवीएम से छेड़छाड़ के खिलाफ संघर्ष के लिए बीएसपी को बीजेपी विरोधी दलों की मदद लेने में कोई आपत्ति नहीं है।
दरअसल, यूपी विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद तमाम नेता, विपक्षी दलों को एकजुट करने की कवायद में जुट गये हैं। जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस मामले में सबसे मुखर रहे हैं। उन्होंने बार बार कहा है कि संघमुक्त भारत के लिए सभी गैर बीजेपी दलों को एक मंच पर आना ही होगा। इसको लेकर नीतीश कुमार और एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, क्षेत्रीय नेताओं से लगातार बात भी करते रहे हैं। अखिलेश यादव ने भी UP चुनाव के परिणाम आने से पहले ही अपनी संभावित हार को देखते हुए, जरूरत पड़ने पर मायावती से हाथ मिलाने से परहेज न करने के संकेत दे दिये थे।
विपक्ष को एकजुट करने की कोशिश में TMC सुप्रीमो ममता बनर्जी ने भी कई बार पहल की है। इसको लेकर कांग्रेस के सीनियर नेताओं के साथ ममता बनर्जी की बैठक भी हो चुकी है। कांग्रेस के सीनियर नेता गुलाम नबी आजाद और अहमद पटेल से ममता की मुलाकात हुई। ममता बनर्जी ने अखिलेश यादव से भी मुलाकात की थी। माना जाता है कि विपक्षी एकता के लिए उन्होंने अखिलेश को मायावती से भी बात करने का सुझाव दिया था। ममता ने इससे पहले एनसीपी नेता प्रफुल्ल पटेल और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से भी मुलाकात की थी। नवीन पटनायक ने पहली बार दिल्ली में विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात की थी। ममता बनर्जी, लालू यादव, नीतीश कुमार और अरविंद केजरीवाल से भी मिल चुकी हैं। ममता बनर्जी ने UP चुनाव परिणाम के बाद भी विपक्षी एकता की वकालत की थी।
यह बात तो साफ है कि हर किसी को यह अहसास है कि बिना एकजुट हुए बीजेपी का सामना करना संभव नहीं है। 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में यह दिख भी चुका है। लेकिन सारी कवायद एक ही सवाल पर आकर ठहर जाती है। गठबंधन का नेतृत्त्व कौन करेगा? मोदी के खिलाफ विपक्ष का चेहरा कौन होगा? यह एक ऐसा यक्ष प्रश्न है, जिसपर आकर सभी बगलें झांकने लगते हैं। कांग्रेस, बीजेपी के खिलाफ किसी भी गठबंधन का साथ देने को तैयार है, लेकिन पहली और आखरी शर्त है कि नेता राहुल गांधी ही होंगे। नीतीश कुमार खुद नेतृत्त्व का दावा तो नहीं करते, लेकिन विपक्षी एकता के पीछे उनकी सारी कवायद का मतलब ही यही होता है कि विपक्ष उन्हें नेता स्वीकार करे। नेता बनने की हसरत मुलायम में भी है, ममता और मायावती में भी है। मौका मिले तो शरद पवार, अजीत सिंह और देवगौड़ा भी पीछे नहीं रहेंगे। सवाल सिर्फ एक नेता का नहीं है। उससे बड़ा सवाल यह है कि क्या इनमें से किसी एक के अंदर बाकी सारे नेता काम करने को तैयार हैं? जिस दिन इस सवाल का जवाब मिल गया, बीजेपी के लिए परेशानी का सबब होगा।

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