टूटना एक ख्वाब का-मुझे ‘आप’ से उम्मीद थी-अतुल गंगवार

बिहार अपडेट

देश की जनता ने बहुत सालों बाद एक ख़्वाब देखा था. एक सुनहरे भविष्य का ख़्वाब, उसकी आने वाली पीढ़ियों के सुंदर,सुखद भविष्य का ख़्वाब. आज उसका ख़्वाब टूट गया. आंख खुली तो उसके सामने अंधेरा था. सामने सत्ता के भूखे कुछ लोगों के बीच चल रही वर्चस्व की जंग थी. आरोप-प्रत्यारोप का दौर था. बिल्लियां रोटी के टुकड़ों के लिए लड़ रही थी. बंदर शांत बैठा वक्त का इंतज़ार कर रहा था और हम माथा पकड़े अपने हाल पर रो रहे थे.

अभी ज़्यादा वक्त नही हुआ था जब एक फकीर अन्ना के आह्वान पर देश की जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़को पर उतर आयी थी. क्या बच्चा, क्या जवान, छोटा-बड़ा, गरीब-अमीर, सब एक साथ मिलकर सड़क पर थे भ्रष्टाचार के खिलाफ. आप भी तो वहीं से निकले थे. आप ने बीड़ा उठाया था हमारे ख्वाबों को पूरा करने का. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को लड़ने का. हमने आप को पूरा समर्थन दिया.

बुरा तो लगा जब दिल्ली में आपकी कुछ सीटें कम रह गयीं और आपने सत्ता के लिए उसी पार्टी का दामन थाम लिया जिसके भ्रष्टाचार के खिलाफ हमने जंग शुरू की थी. ज़्यादा वक्त आपका गठबंधन नही चला और एक बार फिर चुनाव हुए. हमने फिर कोई कसर बाकी ना रहे जाये, कोई कमी ना रह जाये, आपको किसी के साथ अनैतिक समझौता ना करना पड़ जाये इसलिए प्रचंड बहुमत से आपको विजयी बनाया. 70 में से 67 सीटें . पर बुरा लगा… जब आपने काम करने की जगह आरोप प्रत्यारोप का दौर शुरू कर दिया. समन्वय की जगह हर जगह हक के नाम पर लड़ना शुरू कर दिया. दिल्ली को संभालते इससे पहले अपने ख्वाबों- महत्वकाक्षांओं को पूरा करने के लिए बनारस चले गए. वहां हारे. पर फिर भी समझ ना पाये. अच्छे मुख्यमंत्री बन कर दिखाते फिर जनता आपको प्रधानमंत्री भी बना देती. लगा शायद समझ जाओ, दिल्ली के बन जाओ.

आप के चुने साथी नित नये विवादों में फंसते रहे. कभी डिग्री, कभी राशनकार्ड (सैक्स स्केंडल) कभी जनता के साथ तो कभी पत्नी के साथ दुर्व्यवहार में, तो कभी ज़मीन, हवाला आदि के स्कैंडल में. हमें उम्मीद थी कि आप चाल चरित्र से कुछ अलग व्यवहार करोंगे लेकिन आप तो सबके जैसे ही निकले. किसी को बचाया, किसी को निकाला, हर वो काम जो चाहा वो आपने किया लेकिन जनता के दिमाग को नही समझा.

पंजाब, गोवा और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में हार के बाद उम्मीद थी कि आप को कुछ सद्बुद्धि आयेगी. लेकिन यहां भी आपने हार का ठीकरा बेजुबान EVM पर फोड़ दिया. साहब मैने आपसे पहले भी कहा था कि अपने कर्म ठीक कर लो, जनता EVM ठीक कर देगी. लेकिन अफसोस आप को कोई सद्बुद्धि नही आयी. आज आपकी पार्टी एक ऐसे दौर से गुज़र रही है कि बाहर के लोग तो छोड़िए आपके अपने आप पर आरोप लगा रहें है. आपके साथी कपिल मिश्रा का आप पर लगाया गया आरोप कि आपने उनके सामने अपने एक ओर साथी से 2 करोड़ रुपये नकद लिए हैं, मुझे विचलित कर गया. मुझे लगा मैं अपने ईमानदार मन की जो छवि आप मे देखता था वो क्या इतनी कमज़ोर थी. मुझे आप पर शक नही है लेकिन जिस तरह से सत्येन्द्र जैन जैसे भ्रष्टाचार के आरोपों में घिर व्यक्ति को आप बचा रहे हो, संदेह होता है कि क्या सब ठीक है?

अपनो की इस लड़ाई में आप जीतो या हारो लेकिन वो आम आदमी जिसके नाम पर आपने पार्टी बनाई थी वो आज हार गया है. अब शायद बरसों लगेेगे उसे किसी पर विश्वास करने में. आज आपकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने आज पार्टी को इस हालत में ला पंहुचाया है. अगर कुछ स्वाभिमान, आत्मसम्मान, नैतिकता बची हो आपमें तो सभी पदों से त्यागपत्र दो. अपनी पार्टी के साथियों को स्वतंत्र रुप से जांच करने दो. फिर सभी आरोपों से मुक्त होकर पार्टी का नेतृत्व करों. ये आरोप आप पर नही है, ये हर उस आम आदमी पर हैं जिसने आप पर विश्वास किया था. तुम्हारा निष्कलंक होना उसके सम्मान के लिए ज़रूरी है. मुझे आपसे आज भी उम्मीद है.

अतुल गंगवार

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