धूल चेहरे पर थी आईना साफ करता रहा…

बिहार में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों ने विपक्ष को सरकार और हमलावर होने का अवसर दे दिया है। एक तरफ कोरोना और दूसरी तरफ बाढ़ ने प्रदेश के प्रदेश के लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त कर रखा है।

इस बीच प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से स्वास्थ्य सचिव की शिकायत कर दी कि वे उनकी बात नहीं सुनते, मंत्री की शिकायत पर मुख्यमंत्री ने तत्काल एक्शन लेते हुए स्वास्थ्य सचिव का तबादला कर दिया।

इन तमाम विषयों पर चर्चा की है, बिहार अपडेट के अतुल गंगवार ने वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर, अमिताभ भूषण और सोशल मीडिया एक्सपर्ट मनीष वत्स से।

विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव आजकल सरकार पर पूरी तरह से हमलावर हो रहे हैं, हालांकि जमीन पर उनकी उपस्थिति नगण्य है परंतु ट्विटर पर वे लगातार हमलावर हैं। उन्होंने ना केवल बिहार के लचर स्वास्थ्य व्यवस्था पर उंगली उठाई है बल्कि स्वास्थ्य सचिव के तबादले पर भी चुटकी लिया है। कोरोना संक्रमितों के इलाज में हो रही कोताही और बढ़ते मामले पर तेजस्वी ने सरकार को ट्विटर पर शायराना अंदाज में घेरा है।

हालांकि बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी भी लालू राज के 15 साल को लेकर राजद पर निशाना साध रहे हैं परंतु 15 सालों से सत्ता पक्ष में उपमुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने वाले सुशील मोदी को जनता जनार्दन उनके ही ट्वीट्स पर उन्हें घेर रही है।

बिहार में ना केवल कोरोना बल्कि बाढ़ के कारण भी स्थिति भयावह है। हर साल बाढ़ आती है और हर साल कमोबेश यही स्थिति होती है, सरकारें कभी भी बाढ़ को लेकर सम्वेदनशील नहीं हुई जिसका परिणाम यह है कि प्रत्येक वर्ष बड़ी मात्रा में जान माल की हानि होती है।

यह बिहार का चुनावी साल है पर सत्ता पक्ष जिस आश्वस्त भाव से प्रचार-प्रसार में लगा है और विपक्ष जिस अकर्मण्य भाव से चुनावी तैयारी कर रहा है, कुल मिलाकर यही लगता है कि नुकसान जनता-जनार्दन का ही होने वाला है। बिहार की जनता राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय रहती है पर जब चुनने की बारी आती है तो जाति गत भाव हावी हो जाता है, ऐसे में सालों तक एक ही पक्ष सत्ता में रहने का अधिकारी हो जाता है, जिसके परिणाम स्वरूप विकास कार्यों और जनहित के कार्यों को हानि होती है, वर्तमान स्थिति में बिहार में नए विकल्प की जरूरत तो महसूस होती है परंतु जो विकल्प देने की बात कर रहे वो जनता को विश्वास दिलाने में असमर्थ दिख रहे हैं।

कुल मिलाकर इस चुनावी साल में सत्ता पक्ष की जड़ता और विपक्ष की निष्क्रियता के बीच कोरोना और बाढ़ की भयावह स्थिति ने बिहार को मझधार में खड़ा कर दिया है। आगे क्या होगा ? जनता किस पर कितना विश्वास करेगी ? कोरोना को सम्भालने में सत्ता पक्ष किस मजबूती से काम करेगा ? या फिर विपक्ष सरकार को कठघरे में खड़ा कर पाने में सक्षम हो पाएगी ? बिहार की जनता किसी नए विकल्प पर भी विचार करेगी ?

ये सारे प्रश्न भविष्य की गर्भ में है।

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