‘तबलीगी’ और ‘तलब लगी’ से ज़्यादा खतरनाक है ‘भागन लगी’ जमात…

डॉ. शैलेश श्रीवास्तव

तबलीगी जमात और तलब लगी जमात से ज़्यादा खतरनाक है भागन लगी जमात कथित मज़दूर जमात

मेरे इस लेख को पढ़ कर अधिकतर लोग यही कहेंगे कि मुझे क्या मालूम गरीब की भूख , गरीब का दुख दर्द, जी मै बताता चलूं की जितने नजदीक से मैने गरीबी देखी है उतनी तो आप सोच भी नहीं सकते, मैने लोहे की खदानों में दलमा के पहाड़ों पर काम करते मजदूरों को पेट भरने के लिए जमीन पर चलते चींटों को पत्थर से पीस कर खाते देखा है, मैने पेट पालने की खातिर एक टपकती झोपड़ी में कारखानों में दस दस लोगों को सिमट कर सोते देखा है, फिर मैं यह लेख लिख रहा हूँ तो बड़ी जिम्मेदारी के साथ लिख रहा हूँ।
अमूमन राजस्थान, गुजरात, पंजाब का आदमी काम करने जाता है तो जिस धरती पर जाता है उसे मातृभूमि से ज्यादा मान देता है ।इसकी इज्जत करता है। अपनी सारी कमाई उस जगह लगाता है, वह आपदा में चाहे निज पर हो या देश पर पलायन नहीं करता।
सूरत में प्लेग का प्रकोप हुआ सबसे पहले उस भूमि को छोड़ कर कौन भागे जो उस भूमि से अपनी जीविका चलाते थे क्योंकि उन्हें अपनी मातृभूमि स्वर्ग नजर आयी,ज्योंहि प्रकोप समाप्त हुआ वही स्वर्ग छोड़ कर नर्क में भाग आये, यही हाल अभी कोरोना काल में हो रहा है, मैंने आर्थिक अवस्था पर एक लेख लिखा, उसमे लिखा की पूरे देश में 20 करोड़ मजदूर होंगे तो केवल एक डेढ़ करोड़ मजदूर ही क्यों पलायन करके 135 करोड़ जनता को कोरोना के प्रकोप में डाल रहे हैं। अगर ये गुनाहगार नहीं हैं तो तब्लीगी क्यों गुनाहगार हैं , कोरोना की दृष्टि से देखें तो दोनों कोरोना कैरियर हैं और यह काम दोनों अनजाने में कर रहे हैं। जबकि दोनों को ही चेताया गया।
मजदूरों को प्रधान मंत्री से लेकर हर तबके के अधिकारियों ने आश्वासन दिया की आप जहां हैं वहीं रहें, आपके रहने का खाने का प्रबंध अगर नहीं है तो सरकार करेगी। पर ये कहाँ मानने वाले इन्हें तो घर जाना जरूरी है, क्या सीमा पर डटा सैनिक भी ऐसी जिद कर सकता है कदपि नहीं , किस लिए इनसे सहानभूति हो, क्या ये समझते हैं की महीने दो महीने में जब कारखाने पुनः खुलेंगे तो इन्हें नौकरी में प्राथमिकता मिलेगी, नहीं जो मजदूर इस कठिनाई में भी स्थान पर रह गए उन्हें प्राथमिकता मिलेगी ।
अब इन पलायन करने वाले मजदूरों के बारे में विश्लेषण करें, इनमें ज्यादातर छोटे मोटे लोहे के कारखानों में काम करने वाले, कपड़ा रंगाई में, हीरा कटाई में, कंस्ट्रक्शन में और कंस्ट्रक्शन संबंधी उद्योग में काम करने वाले हैं , इनमें जो कारखानों में सीधे काम करते हैं उन मजदूरों के पलायन की संख्या बहुत कम है। ज्यादातर पलायन करने वाले मजदूर ठेकेदार के अंतर्गत काम करते हैं जो की किसी भी लेबर लॉ को नहीं मानते और उनकी धज्जियाँ उड़ाते हैं,अगर सरकार को इन 4 से 5 करोड़ मजदूरों की चिंता है तो उन नियमों का सख्ती से पालन करवाना होगा जिनमे सबसे मुख्य समस्या है, pf और esi साथ ही रहने की सुविधा और मिनिमम वेजेज, जिस दिन ये सुविधा मिलेगी ये मजदूर भी नहीं भागेंगे। त्योहार शादी विवाह की बात अलग है। परंतु इन मजदूरों को क्या लगता है इनके ऐसे जाने से इनकी समस्या दूर हो जायेगी, कोई मजदूर पंजाब में है 700 किलोमीटर दूर घर के लिए निकल पड़ा पैदल, वह भी रेल पटरियों पर जबकि सरकार कह रही है सबको उनके घर पहुंचाया जायेगा, सिलसिलेवार पर ये नहीं सुनते।इनको लगता है वे आज नहीं गए तो सरकार उन्हें पहुंचने का काम बन्द कर देगी।
क्या तो वे नासमझ है, या उन्हें बरगलाया जा रहा है, या उन्हें सरकार के खिलाफ उकसाया जा रहा है कि वे सरकार की बातों पर विश्वास न करें।
छोटे छोटे बच्चे सर पर सामान लिए महिलाएं क्या दारुण दृश्य देखने को मिलता है अंदर से मन कांप जाता है फिर सोचता हूँ यह निरी मूर्खता है और कुछ नहीं।
सरकार को इस कोरोना समस्या से झूझने के बाद इनकी समस्या का परमानेंट हल निकालना होगा और मजदूर भाईयों आप न केवल मूर्खता कर रहे हैं बल्कि देश की 135 करोड़ जनता को भी मुसीबत में डाल रहे हैं। जहां तक भूख का सवाल है मैं नहीं मानता कोई इक्का दुक्का उदाहरण मिल जाये तो अलग वरन देश व्यापी सहायता शिविर सरकार द्वारा स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा चलाये जा रहे हैं। यहां तक हेल्प लाइन नंबर भी दिए गए हैं ,वहां बोलने से तुरंत सहायता मिलती है, सभी मकान मालिकों को साफ साफ शब्दों ने कहा गया है की भाड़े के लिए किसी को न निकाले नहीं तो सख्त कानूनी करवाई होगी।
अंत में इतना कहूंगा की मजदूरों से लाख गुना ज्यादा बुरी हालात छोटे दुकानदारों व्यवसायियों और उद्योगों की है जहां वे न रो सकते हैं न चुप रह सकते हैं। उनको बैंक का भी ब्याज देना है नौकरी भी देनी है भाड़ा भी देना है टैक्स भी देना है मानो उनके पास कारूँ का खजाना हो और सरकार फक्कड़ की उनको सैलरी देने के लिए भी राजस्व बढ़ाना है इसलिए शराब की दुकान तक खोलनी है। इस क्षेत्र को नहीं संभालेंगे तो न ये व्यवसायी रहेंगे न ये मजदूर क्योंकि पलायन करने वाले मजदूर ज्यादातर इस क्षेत्र से ही हैं।

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