संसद में माननीयों का तांडव-संजय स्वामी

संसद के मानसून सत्र का अवसान तो हो गया परन्तु विपक्ष का रुदन जारी है, क्रंदन अभी भी चल रहा है। अब हंगामेंबाज पूछ रहे हैं- हंगामा है क्यूँ बरपा। पूरा देश आजादी का अमृत-महोत्सव मनाने की तैयारी में जुटा है। लोकतंत्र प्रौढता की ओर बढ़ रहा है और कुछ बुढ़ियाए सांसद बचकानी हरकतें कर लोकतंत्र के मंदिर की गरिमा को तार-तार करने में लगे हुए हैं। बेहूदगी की नई-नई इबारतें लिखी जा रही हैं। संविधान को बचाने की दुहाई देने वाले संविधान को ध्वस्त करने पर उतारू हैं। खेलों का ओलम्पिक तो जापान में चला परंतु बदतमीजी का ओलम्पिक रायसीना हिल्स में खेला गया।

जब बाड़ ही खेत को खाने लगे तो कौन बचाए! दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का मंदिर भारत की संसद अपनी अस्मिता की छीछालेदर होते देख रही है। उसकी अस्मिता का चीरहरण कोई और नहीं देश के नागरिकों की एक-एक वोट से चुने हुए माननीय सांसद ही कर रहे हैं। नियमों की पुस्तिका को उछाला जा रहा है। संसद-सदस्यों द्वारा ही चुने गए सभापति की गरिमा को बेशर्मी और निर्लज्जता के साथ तार-तार किया जा रहा है। सदन में कुछ सांसदों का आचरण राजनीति न होकर बेहद ओछी हरकतें प्रतीत होता हैं। आज 21वीं सदी में समझदार हो चुकी युवा पीढ़ी को यह निर्णय करना होगा कि देश को चंद सिरफिरे चलाएंगे या कुछ विवेकशून्य मवाली किस्म के नमूने कहीं भी सड़क जाम करेंगे, देश के खिलाफ नारे लगाएंगे।पढ़ते-पढ़ते बुढ़िया गये भाड़े के कथित विद्यार्थी विश्वविद्यालयों में माहौल खराब करेंगे, भटके हुए युवा कहला कानून की आँखों में धूल झोंकने में माहिर देश के महापुरुषों की प्रतिमा को गंदा करेंगे। लालकिले की प्राचीर पर जूतों सहित चढ़ देश की आन बान शान का अपमान करेंगे? आखिर सज्जनशक्ति की उदासीनता कब तक चलेगी?
देश की अवाम ने आम चुनाव में जिस दल को बहुमत दे सत्ता सौंपी, शासन-प्रशासन चलाने का दायित्व सौंपा, क्या उसको थके हुए दल और लँगड़ाते नेता बताएंगे कि देश किस प्रकार चलेगा? केवल मेरी ही बात सही है उसे मानो अन्यथा हम कुछ नहीं होने देंगे, यह गुंडागर्दी नहीं तो और क्या है? लोकतंत्र में मनमाना व्यवहार, हुडदंगबाजी को कभी कोई स्थान नहीं दिया जा सकता। समय रहते विपक्षी दलों के प्रमुख नेता इन बातों को समझ ले। लोकतंत्र में साथ मिलकर चलना होता है। सत्ता पक्ष हो अथवा विपक्ष किसी की मनमर्जी,धींगामुश्ती नहीं चलती। सत्ता पक्ष की तानाशाही 1975 में चली और 1977 में जनता ने जवाब दिया। इसी प्रकार विपक्ष यदि लोकतंत्र की धज्जियां उखाड़ने की,संसदीय ताने- बाने को नष्ट करने की कोशिश करेगा तो वह भुलावे में है लोकतंत्र तो वट वृक्ष है मजबूत होगा, हां वे जरूर नेस्तनाबूद हो जाएंगे। प्रधानमंत्री को बोलने नहीं दिया जा रहा, नए मंत्रियों का परिचय भी गवारा नहीं! संसद संवाद का मंच है आखिर संवाद होगा कहां सिंघु या टिकरी बॉर्डर पर ?जहां आंदोलन के नाम पर मानवता शर्मसार हो रही है।
वर्तमान माहौल में विपक्ष के शौर्य को ये नारा चरितार्थ करता है “न काम करेंगे न करने देंगे”।

सांसद मंझे हुए राजनीतिज्ञ हैं सियासत के गलियारों से दिन प्रतिदिन का वास्ता है। दशकों से राजनीतिक आकाओं की छत्रछाया में कीर्तिमान स्थापित करते रहे हैं। शब्दों के जादूगर हैं, कथनी और करनी में जमीन आसमान का अंतर है। संसद के भीतर व्यवहार अलग और बाहर अलग। विभिन्न समाचार चैनलों के माध्यम से अपनी उलूल-जलूल हरकतों को शब्दों के बाण में पिरो जनता को भ्रमित करना उनके लिए सहज स्वाभाविक कार्य है।
देश की भोली-भाली जनता की मेहनत की कमाई से विभिन्न प्रकार के वेतन-भत्ते, पेंशन पाने वाले किस बेशर्मी से लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे थे, यह देश-दुनियां ने देखा। यह भी सच है कि देश की अधिसंख्य जनता उनकी ओछी हरकतों को नहीं जान पाती क्योंकि संसद की कार्यवाही को देश की अधिसंख्य जनता देख ही नहीं पाती, उसे अपनी रोजी-रोटी से फुर्सत भी कहां?
अपनी ओछी हरकतों को विभिन्न तकरीरों के द्वारा सही सिद्ध करना तथा तथ्य को घुमाना ये लोग बड़ी आसानी से कर लेते हैं। जनता को बेवकूफ बनाकर ही तो सत्ता का सुख भोग रहे हैं। जब तक देश की जनता जागरूक नहीं होगी इनको इनका स्थान तथा आईना नहीं दिखाएगी अर्थात चुनाव में हराकर बाहर का रास्ता नहीं दिखाएगी तब तक इन्हें अपने पद की गरिमा का महत्व समझ में नहीं आएगा। संसद में श्रेष्ठ आचरण व राष्ट्र सेवा की शपथ लेने वाले आखिर कैसे अपनी सौगंध को भूल जाते हैं! यह न केवल विचारणीय है अपितु चिंतनीय भी है।भारत के चौहत्तरवें स्वतंत्रता दिवस पर मां भारती इनकी भ्रमित मति को शांत कर विवेक का जागरण करे।

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