ISI एजेंट का खुलासा, मलेशिया में रची गयी थी कानपुर ट्रेन हादसे की साजिश

मोतिहारी : नेपाल पुलिस की गिरफ्त में आये आइएसआइ एजेंट शमसुल होदा ने पाकिस्तान व मलेशिया कनेक्शन का खुलासा किया है. उसने बताया है कि भारत में आतंक फैलाने के लिए मलेशिया में बैठक हुई थी. पाकिस्तान का मो शफी उसको अप्रैल 2016 में मलेशिया बुला कर ले गया था. एक वीआइपी होटल में दोनों ठहरे थे.

मलेशिया पहुंचने के तीन दिन बाद कुछ लोग मो शफी से मिलने होटल आये थे. उनकी घंटों तक आपस में बातचीत हुई. उनके जाने पर शफी ने बताया कि भारत में इन लोगों का कुछ काम अटका हुआ है. उनके साथ पांच-छह महीना काम करने पर आठ-दस करोड़ मुनाफा होगा. शफी ने उनकी सारी प्लानिंग बतायी. कहा कि इसके लिए कुछ लड़कों की जरूरत पड़ेगी. पैसे की लालच में आकर शमसुल भारत में आतंक फैलाने की साजिश का हिस्सा बन गया. अगले दिन वही अंजान चेहरे फिर होटल में शफी से मिलने पहुंचे.

दूसरी बार की मीटिंग में शफी ने उनलोगों की शमसुल से पहचान करायी. उन्हें बताया कि यह बंदा हमारा विश्वासी है. आपलोगों का काम हो जायेगा. लगभग 12-15 दिनों तक मलेशिया में रहने के बाद शमसुल व शफी दुबई पहुंचे. शफी दुबई से पाकिस्तान चला गया. उसके बाद शमसुल ने ब्रजकिशोर से संपर्क कर भारत-नेपाल के सीमावर्ती जिलों में आतंक का जाल बुनने लगा.

हालांकि ब्रजकिशोर ने जिन लड़कों को तबाही मचाने के लिए तैयार किया, वे शमसुल के काम लायक नहीं निकले. एक अक्तूबर की रात घोड़ासहन रेलवे ट्रैक पर बम प्लांट कर विस्फोट कराने में असफल हो गये, जबकि दूसरी घटना आदापुर-नकरदेई के बीच रेल पटरी पर बम ब्लास्ट कराया, लेकिन बम शक्तिशाली नहीं था. इसके कारण एक बड़ा हादसा टल गया. इन दोनों घटनाओं में असफल होने की कीमत दीपक व अरुण राम को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी थी.

डी-कंपनी का खास है शमसुल
पटना. रेल हादसे का मुख्य अभियुक्त शमसुल होदा और उसका साथी मुजाहिर अंसारी वास्तव में डी-कंपनी का गुर्गा है. सालों से देश के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बना दाउद इब्राहिम की डी-कंपनी का शमसुल प्रमुख गुर्गा है, जबकि मुजाहिर उसका सहयोगी है. इन दोनों ने ही कानपुर रेल हादसे की पूरी प्लानिंग तैयार करके इसे मोती पासवान समेत अन्य छह आरोपितों के जरिये अंजाम दिलवाया था. शमसुल, मुजाहिर समेत सभी चार संदिग्धों से राष्ट्रीय जांच एजेंसियों एनआइए, आइबी और रॉ के अधिकारी गहन पूछताछ कर रहे हैं.

इस पूछताछ में कई बेहद अहम जानकारी जांच एजेंसियों के हाथ लगी है. इसके आधार पर आगे की जांच चल रही है. सबसे अहम जानकारी मिली है कि देश में इस तरह के ‘टेरर मॉड्यूल’ के आधार पर अन्य कई रेल हादसों को अंजाम देने की तैयारी थी. लेकिन, कानपुर रेल हादसे के बाद जांच एजेंसियों की सतर्कता बढ़ने और कुछ ही दिनों बाद मोती पासवान समेत अन्य की गिरफ्तारी होने से ये लोग अपने प्लान को अमलीजामा नहीं पहना सके. इसमें नेपाल से सटे राज्यों बिहार और यूपी में ही ज्यादा घटनाओं को अंजाम देने की साजिश थी.

डी-कंपनी से मिले तमाम निर्देशों और पैसों को शमसुल ही मोती पासवान और उसके संदिग्ध साथियों मुकेश, उमाशंकर समेत अन्य तक पहुंचाने का काम करता था. रेल हादसे से पहले तक नेपाल में बैठ कर शमसुल ही मोती और उसके साथियों को निर्देश देता रहता था. इसके इशारों पर ही इस रेल हादसे को अंजाम दिया गया. इस हादसे के बाद जब जांच की रफ्तार बढ़ी, तो शमसुल दुबई और मोती समेत अन्य संदिग्ध नेपाल भाग गये. हालांकि जांच का दायरा जैसे-जैसे बढ़ता गया, ये सभी संदिग्ध चपेट में आते गये.

मोती समेत अन्य सभी संदिग्धों ने पैसे और धमकी की वजह से इस घटना को अंजाम दिया था. मोती, मुकेश, उमाशंकर समेत अन्य मुख्य रूप से भाड़े के टट्टू हैं. इनकी ललक डी-कंपनी से जुड़ने और करोड़पति बनने की थी. इसका फायदा शमसुल और मुजाहिर उठा रहे थे.

कम प्रयास में ज्यादा दहशत फैलाने की फिराक में डी-कंपनी
पिछले कुछ सालों से डी-कंपनी ने भारत में अपने दहशत फैलाने के तरीके में बदलाव लाया है. मुंबई, वाराणसी, नई दिल्ली समेत अन्य शहरों में हुए सीरियल ब्लास्ट जैसी घटनाओं को अंजाम देने के बजाये, अब ये कम प्रयास में ज्यादा नुकसान करने वाले वारदातों पर ज्यादा फोकस करने लगे हैं. इसमें सबसे सॉफ्ट टारगेट भारतीय रेल रूट हैं. देश में रोजाना 12 हजार से ज्यादा सवारी गाड़ियां चलती है, जिनमें करीब ढाई करोड़ लोग यात्रा करते हैं. दहशतगर्दों के लिए यह सबसे सॉफ्ट टारगेट है.

इसमें चुनिंदा ट्रैकों को निशाना बनाते हुए इन पर गुजरने वाली ट्रेन को टारगेट करके ये कंपनी भाड़े के अपराधियों या अपने तैयार किये ‘स्लीपर सेल’ के जरिये ट्रैक को क्षति पहुंचा कर बड़ा ट्रेन हादसों को अंजाम देने की फिराक में रहते हैं. इसके लिए ये लोग आरडीएक्स या टीएनटी जैसे बेहद शक्तिशाली विस्फोटकों के स्थान पर कम क्षमता वाले छोटे विस्फोटकों का इस्तेमाल इन दिनों कर रहे हैं. बड़े विस्फोटकों को रखना और छिपाना मुश्किल होता है और तमाम सुरक्षा एजेंसियां इसे लेकर बेहद सतर्क रहती हैं. इस वजह से छोटे विस्फोटकों का सहारा लिया जा रहा है. इसे छिपाना और लाना ले जाना आसान होता है. कई स्थानों पर मशीन से जांच में यह पकड़ में नहीं आते हैं.

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