क्या नारियल तेल स्वास्थ्य के लिए जहर है – इस नये शोध का पूरा सच।

शरत सांकृत्यायन

सावधान, प्राचीन काल से इस्तेमाल होने वाला नारियल तेल भी जहर साबित हो गया है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में टीएच चैन स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के प्रोफ़ेसर कैरिन मिशेल्स ने दावा किया है कि नारियल तेल खाने में इस्तेमाल होने वाली सबसे बुरी चीज़ों में से एक है। “कोकोनट ऑयल एंड न्यूट्रीशनल एरर” पर एक लेक्चर देते हुए हार्वर्ड के प्रोफ़ेसर मिशेल्स ने नारियल तेल को पूरी तरह ज़हर बताया है। उन्होंने कहा, इस तेल में सेच्युरेटेड फ़ैट की मात्रा बहुत अधिक होती है जो सेहत के लिए हानिकारक है। मिशेल्स का कहना है कि सेच्युरेटेड फ़ैट की इतनी अधिक मात्रा हमारी धमनियों में खून का प्रवाह रोक सकती हैं। इससे दिल संबंधित बीमारियों का ख़तरा बढ़ जाता है। दुनिया के इतने प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के इतने बड़े वैज्ञानिक ने जब दावा कर दिया है तो फिर शक की गुंजाइश कहां रह जाती है। अब सोचने वाली बात यह है कि इस दावे के हिसाब से तो दक्षिण भारत की आबादी अबतक शून्य हो जानी चाहिए थी। लेकिन यहां के लोग हजारों साल से ये जहर लगातार खाने के बाद भी जिंदा हैं। खैर अबतक बचे सो बचे, अब जब इतने बड़े वैज्ञानिक ने ये खुलासा कर दिया है तब तो बचने की कोई उम्मीद ही नहीं है इसलिए तत्त्काल करोड़ों की जनसंख्या नारियल तेल खाना बंद कर दे और इन पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा सुझाया गया पामोलीन ऑयल, सोयाबीन ऑयल, कनोला ऑयल और ऑलिव ऑयल जैसे अतिगुणकारी विदेशों से आयात होने वाले तेलों का सेवन शुरू कर दे, तभी जान बच सकती है। धन्य हैं अंतरराष्ट्रीय खाद्य तेल लॉबी के हाथ में बिके हुए ये वैज्ञानिक और धन्य है इनका विज्ञान। लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि क्या इतना बड़ा वैज्ञानिक तथ्यहीन दावा कर रहा है? क्या वह झूठ बोल रहा है? नहीं! उसने एक प्रामाणिक सच्चाई के सिर्फ एक पक्ष को बड़ी सफाई से पेश किया है और दूसरे पक्ष को गौण कर दिया। काफी पहले से वैज्ञानिकों को पता है कि नारियल के तेल में सैच्युरेटेड फैट की मात्रा सबसे ज्यादा होती है, इसलिए मिशेल्स साहब ने कोई अनोखी खोज नहीं की है। लेकिन इसके जिस दूसरे जरूरी पहलू को उन्होंने गायब कर दिया वह ये है कि नारियल तेल के संतुलित इस्तेमाल से इसमें मौजूद सैच्युरेटेड फैट प्राकृतिक रूप से बैड कॉलेस्ट्रॉल को कम और गुड कॉलेस्ट्रॉल को ज्यादा बढ़ाता है, इसलिए यह जहर नहीं बल्कि स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है और इसका जीता जागता प्रमाण है सदियों से इसका इस्तेमाल करते आ रहे दक्षिण भारतीयों का उत्तम स्वास्थ्य।

लेकिन नारियल तेल फ़ायदेमंद है या नहीं, इसे लेकर बहस काफ़ी वक़्त से चल रही है. कई वैज्ञानिक इसे हानिकारक फ़ैट से भरा हुआ बताते हैं। सवाल उठता है कि आखिर सेच्युरेटेड फ़ैट वाले खाने से क्या नुकसान हो सकता है?

वैज्ञानिकों के मुताबिक, सेच्युरेटेड फ़ैट शरीर में गु़ड और बैड दोनों तरह के कोलेस्ट्रोल को बढ़ाता है. लेकिन दोनों का असर शरीर पर अलग-अलग पड़ता है। “जिस खाने में सेच्युरेटेड फ़ैट की मात्रा बहुत अधिक होती है वह हमारे खून में लो डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) की मात्रा बढ़ा देता है. एलडीएल को ही बैड कोलेस्ट्रोल कहते हैं। एलडीएल की मात्रा जब अधिक हो जाती है तो यह हमारी धमनियों में कोलेस्ट्रोल बनाने लगता है, जिससे धमनियों में खून का प्रवाह रुक जाने का ख़तरा बढ़ जाता है। वहीं दूसरी तरफ़ यही सेच्युरेटेड फ़ैट हाई डेन्सिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) जिसे गुड कोलेस्ट्रोल कहा जाता है, उसकी मात्रा भी बढ़ाता है। एचडीएल को गुड कोलेस्ट्रोल इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह हमारे शरीर के अलग-अलग हिस्सों में मौजूद कोलेस्ट्रोल को लीवर की तरफ ले जाता है, इसके बाद हमारा लीवर कोलेस्ट्रोल को शरीर से बाहर निकाल देता है और इसका नुकसान नहीं होता।

पिछले दिनों बीबीसी ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के दो प्रतिष्ठित शिक्षाविदों की गहन निगरानी में 50 साल से 75 साल की उम्र के 94 लोगों पर एक शोध किया। इन सभी को तीन ग्रुप में बांटा गया। इनमें से किसी भी व्यक्ति को डायबिटीज़ या हृदय रोग जैसी बीमारियां नहीं थीं। तीनों ग्रुप को चार हफ़्तों तक अलग-अलग तरह के तेल का सेवन करवाया गया। शर्त यह थी कि एक समूह पूरे चार हफ़्ते तक एक ही तरह के तेल का सेवन करेगा।

चार हफ़्ते बाद पाया गया कि जिस ग्रुप ने बटर का सेवन किया था उनके शरीर में बैड कोलेस्ट्रोल की मात्रा 10 प्रतिशत बढ़ गई थी साथ ही गुड कोलेस्ट्रोल भी 5 प्रतिशत बढ़ा था। जिस ग्रुप ने ऑलिव ऑयल (जैतून के तेल) का सेवन किया उनके शरीर में गुड और बैड कोलेस्ट्रोल की मात्रा थोड़ी कम हो गई। लेकिन सबसे अधिक चौंकाने वाला नतीजा नारियल तेल का सेवन करने वाले ग्रुप से मिला। इस ग्रुप के लोगों में बैड कोलेस्ट्रोल की मात्रा बहुत अधिक तो नहीं बढ़ी लेकिन गुड कोलेस्ट्रोल लगभग 15 प्रतिशत तक बढ़ गया। इन नतीजों से यह साबित होता है कि नारियल तेल का सेवन दिल के लिए अच्छा होता है.

भारत में हैदराबाद स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ न्यूट्रिशन (एनआईएन) में डिप्टी डायरेक्टर डॉक्टर अहमद इब्राहिम का नारियल तेल के बारे में कहना है कि इसमें लगभग 90 प्रतिशत सेच्युरेडेट फ़ैट होता है। डॉक्टर अहमद इब्राहिम कहते हैं कि नारियल तेल खाने के लिहाज़ से कितना स्वास्थ्यवर्धक है, इस बारे में कोई वैज्ञानिक रिसर्च अभी तक नहीं की गई है। डॉक्टर अहमद इब्राहिम बताते हैं कि नारियल तेल ऊर्जा प्राप्त करने का एक बेहतरीन स्रोत होता है, साथ ही यह हमारे शरीर में मेटाबॉलिज्म रेट को भी बढ़ाता है। अगर नारियल तेल हमारे शरीर में ऊर्जा बढ़ाता है और यह दिल के लिए भी अच्छा है. तो ऐसे में सवाल उठता है कि इसे ज़हर क्यों बताया जा रहा है? डॉ़. अहमद इसका भी जवाब देते हैं। उनके मुताबिक अगर कोई सिर्फ़ नारियल तेल का ही सेवन करता रहे तो उसके शरीर में सेच्युरेटेड फ़ैट बहुत अधिक हो सकता है। इसलिए अलग-अलग तरह के तेल का सेवन करने की सलाह दी जाती है। भारत के दक्षिणी हिस्से में नारियल तेल का बहुत अधिक सेवन होता है लेकिन यह नुकसानदायक इसलिए नहीं होता क्योंकि लोग दूसरे तरह का खाना खाने से अन्य तरह के तेल का सेवन भी कर लेते हैं। कुल मिलाकर यह कहना कि नारियल का तेल हमारे लिए पूरी तरह स्वास्थ्यवर्धक है या यह पूरी तरह हानिकारक है, दोनों ही विचार अपने-आप में अधूरे हैं। सिर्फ़ नारियल तेल का ही सेवन करते रहना हमारे शरीर को दूसरे तत्वों से दूर कर सकता है।

अब सवाल उठता है कि जब इसके गुणकारी होने के वैज्ञानिक तथ्य पहले से मौजूद हैं फिर प्रो. मिशेल्स ने अभी ये खुलासा क्यों किया? जबकि अमेरिका या अन्य पश्चिमी देशों में इसका सेवन न के बराबर किया जाता है। तो इसका जवाब यह है कि उनका निशाना साफ तौर पर दक्षिण भारत का बड़ा उपभोक्ता बाजार है। भारत के विशाल बाजार पर बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों की नजर टिकी रहती है और उनकी हर संभव कोशिश होती है कि यहां परंपरागत रूप से इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं को खराब और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित कर अपने उत्पादों की खपत बढ़ाई जाए। भारत में परंपरागत रूप से खाद्य तेल के तौर पर शुद्ध घी, सरसों, मूंगफली, नारियल, तिल, अलसी, कॉटनसीड और सूरजमुखी आदि तेलों का इस्तेमाल होता आया है। आज से चार पांच दशक पहले तक जब सिर्फ इन्हीं तेलों का इस्तेमाल होता था तब लोग ज्यादा स्वस्थ थे और बिमारियां भी कम थीं। लेकिन इसके बाद ही असली खेल शुरू हुआ। विदेशी कंपनियों ने भारत के विशाल बाजार में निहित असीम संभावनाओं को ताड़ा और अपने उत्पाद यहां उतारने शुरू किए। लेकिन परेशानी यह थी कि जबतक यहां के परंपरागत उत्पादों को खतरनाक और हानिकारक साबित कर अपने उत्पादों को इससे अच्छा साबित नहीं किया जाता, बाजार पर कब्जा करना मुश्किल था। इसके बाद ही भारत में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं पर इंग्लैंड और अमेरिका में बड़े बड़े वैज्ञानिक शोध होने लगे और एक एक कर हमें बताया गया कि कैसे अबतक हमलोग सिर्फ जहर ही खाते आ रहे थे। सबसे पहले शुद्ध घी को स्वास्थ्य के लिए जहर साबित किया गया, फिर सरसों, तिल, अलसी और अन्य तेलों को खतरनाक बताया गया और इनके मुकाबले वनस्पति घी, सोयाबीन, पामोलीन, कनोला और ऑलिव ऑयल को वरदान बताया गया। इसका व्यापक असर भी हुआ और धीरे धीरे हम अपने परंपरागत खाद्य तेलों से दूर होते चले गये और आज भारतीय बाजार पूरी तरह विदेशी रिफाइंड तेलों की गिरफ्त में आ चुका है। लेकिन इतनी कवायद के बाद भी दक्षिण भारत में इन विदेशी तेलों की पैठ ज्यादा बन नहीं पाई है। अभी भी वहां के लोग उसी नारियल तेल से चिपके हुए हैं और विदेशी कंपनियों को एक विशाल उपभोक्ता वर्ग हाथ से खिसकता नजर आ रहा है। तो अब आप समझ चुके होंगे कि क्यों यकायक मिशेल्स साहब को नारियल तेल में जहर नजर आने लगा है। दूसरी ओर हम अपने जिन परंपरागत उत्पादों को लगभग त्याग चुके थे, नये नये वैज्ञानिक शोधों में फिर से उन्हें ही लाभदायक और गुणकारी बताया जाने लगा है। सीमित और संतुलित मात्रा में शुद्ध घी का प्रयोग संपूर्ण शारिरिक स्वास्थ्य के लिए सबसे बेहतर माना गया है। वहीं शुद्ध सरसों, अलसी और तिल के तेल की गुणवत्ता ऑलिव ऑयल से भी बेहतर मानी गयी है। इनके मुकाबले विदेशों से आयात होने वाले सोयाबीन, पाम और कनोला ऑयल ज्यादा हानिकारक पाए गये हैं। इसलिए अपने प्राचीन वैदिक और आयुर्वेद द्वारा प्रमाणित आहार पद्धतियों पर भरोसा रखें और विदेशी कंपनियों द्वारा प्रायोजित इन वैज्ञानिक शोधों से सावधान रहें और सबसे बड़ी बात, “अति सर्वत्र वर्जयेत” के मूल मंत्र का पालन करें। खाद्य तेल कोई भी हो उसका संतुलित और सीमित इस्तेमाल ही स्वास्थ्य के लिए हितकर है।

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