बढ़ता आवेदन शुल्क और असहाय युवा विद्यार्थी

संजय स्वामी

प्रवक्ता ‘राजनीति विज्ञान’

     एक और सरकार सभी विद्यार्थियों को शिक्षा उपलब्ध कराना चाहती है हर विद्यार्थी को विद्यालय-महाविद्यालय तक लाना चाहती है राज्य सरकारें और केंद्र सरकार निरंतर शिक्षा के प्रसार के लिए कार्य कर रही है। आयकर के ऊपर एजुकेशन सेस कई वर्षों से लगा हुआ है | भारत का प्रत्येक आयकर दाता अपने देश के विद्यार्थियों के लिए उत्साह पूर्वक आयकर के साथ अतिरिक्त कर चुका रहा है परंतु विडंबना यह है कि सरकारें प्रतिवर्ष नए विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा करती हैं उसके लिए बजट का प्रावधान करती हैं अनेक लोक लुभावनी अन्य योजनाएं घोषित करती हैं इंफ्रास्ट्रक्चर की बात करती हैं परंतु दूसरी ओर दशकों तक विद्यालयों- महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के पद रिक्त पड़े हैं अतिथि अध्यापकों, शिक्षा मित्रों  के माध्यम से काम चलाया जा रहा है और विडंबना यह है कि सामंतवाद,जमीदारी, ठेकेदारी प्रथा को समाप्त कर आया लोकतन्त्र पुनः ऍडहोकिज़्म के जाल में जा रहा है |

 विद्यार्थियों को सस्ती शिक्षा उपलब्ध कराने के स्थान पर अनेक अन्य प्रकार से अभिभावकों की जेब पर बोझ डाला जा रहा है। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण देखिये I विद्यार्थी विभिन्न पाठ्यक्रमों में आवेदन करते हैं नियमित पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा या पंजीकरण कराया जाता है इसके नाम पर धीरे-धीरे अब मोटी फीस वसूली जा रही है सामान्य पाठ्यक्रमों में आवेदन के लिए भी अच्छी खासी आवेदन फीस ली जा रही है कोर्स की मुख्य फीस तो ठीक है जो संस्थान ने या विश्वविद्यालय ने तय की है परंतु आवेदन के नाम पर एक हजार, ₹2000 फीस रखना किसी भी प्रकार से सामान्य विद्यार्थियों के लिए उचित नहीं साथ ही प्रवेश के लिए लाखों विद्यार्थी आवेदन करते हैं अतः बहुत बड़ी धनराशि संस्थान के पास आती है आखिर यह बोझ विद्यार्थियों पर क्यों डाला जा रहा है? ₹100-200 फीस तो जायज है परंतु हजार-पंद्रह सौ रुपए फ़ीस वह भी मात्र पंजीकरण हेतु किसी भी प्रकार से किसी भी वर्ग के विद्यार्थी के लिए न्यायोचित नहीं कही जा सकती।

 एक और सरकार अमीर गरीब की खाई मिटाना चाहती है अगड़े-पिछड़े वर्ग के भेद को मिटाना चाहती है स्वर्ण और अस्वर्ण शुद्र के सामाजिक विभेद को कम करना चाहती है वहीं फिर आवेदन के लिए भी अलग-अलग फीस आखिर क्यों ? राजकीय विद्यालयों, महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाला अधिसंख्य विद्यार्थी सामान्य परिवारों का ही होता है I विद्यार्थी-विद्यार्थी होता है जी I विद्यार्थियों के बीच भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए न सरकार के द्वारा, न किसी अन्य प्रकार से। सरकार को विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम में प्रवेश हेतु किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाना चाहिए या बहुत न्यूनतम लिया जाना चाहिए। ₹1000- 2000 आवेदन के नाम पर लिया जाना किसी भी रूप में विद्यार्थियों के लिए पाकेट फ्रेंडली तो नही कहा जा सकता, हाँ यह भ्रष्टाचार की संभावनाओं ओर इशारा तो करता है जब सभी सरकारी संस्थानों में सभी कर्मचारियों को सरकार के द्वारा वेतन मिलता है सरकारी भवन है सभी प्रकार के सरकारी खर्चे – अनुदान दिए जाते हैं फिर आवेदन के नाम पर लाखों-करोड़ों का वसूली घोटाला क्यों किया जाता है अधिक फीस वसूल कर, फंड को बराबर करने के लिए अनावश्यक अधिक खर्चे संस्थान पर डाले जाते हैं। जिसका सीधा सीधा अनावश्यक अतिरिक्त बोझ विद्यार्थियों पर ही पड़ता है। प्रत्येक विद्यार्थी अनेक पाठ्यक्रमों में आवेदन करता है आखिर उसे प्रवेश तो एक ही पाठ्यक्रम में लेना होता है परंतु वह कई ऑप्शन लेकर चलता है | राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में भी विद्यार्थियों को अनेक प्रकार की सुविधाएं देने की बात कही गई है विद्यार्थी को हर प्रकार से केंद्र में रखा गया है ऐसे में आवेदन शुल्क के नाम पर अनेक प्रकार के अधिकाधिक शुल्क लेना व्यवहारिक नहीं। आशा है राज्य सरकारें, केंद्र सरकार, विश्वविद्यालयों के माननीय कुलपति इस संबंध में शीघ्र ध्यान देकर विद्यार्थियों के लिए शिक्षा की क्रांति सच में जमीन पर लाने में सहायक होंगे और संस्थाओं द्वारा अपने अनावश्यक खर्चे बढ़ाने की प्रतिस्पर्धा को शीघ्र कम करेंगे।

अनेक विश्वविद्यालय माइग्रेशन सर्टिफिकेट, प्रोविजनल सर्टिफिकेट, उपाधि( डिग्री) आदि की अच्छी खासी फीस वसूलते हैं क्या बेरोजगार युवाओं के साथ यह ज्यादती नहीं? जब संस्थान स्वयं द्वारा कोर्स की निर्धारित फीस अग्रिम ले चुके फिर ये अतिरिक्त शुल्क आखिर क्यों ? सूचना क्रांति के युग में जब प्रधानमंत्री सब कुछ डिजिटलाइज करने की दिशा में आह्वान कर रहे हैं तब कंप्यूटर जेनरेटेड एक-एक कागज के लिए  अभिभावकों को कितना लूटना है ? शिक्षा क्षेत्र में धीरे धीरे आता यह अदृश्य भ्रष्टाचार नहीं तो फिर क्या है ?

 सरकार अनुसूचित जाति जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों को सामाजिक कल्याण मंत्रालय आदि के द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान करती है उनकी पाठ्यक्रम की फीस अदा करती है फिर रोजगार के आवेदन हेतु फीस में भेदभाव क्यों ?

संघ लोक सेवा आयोग, राज्य लोक सेवा आयोग तथा कर्मचारी चयन आयोग को छोड़ दें तो शेष अन्य संस्थान रिक्तियों के आवेदन के लिए बेरोजगार युवाओं से अच्छी खासी फीस आवेदन शुल्क के नाम पर वसूल करते हैं सरकार तथा संबंधित विभिन्न संस्थानों व अन्य उपकर्मों को भी इस पर विचार करना चाहिए। जब उनके सभी कर्मचारियों की वेतन आदि की पूर्ति केंद्रीय, राज्य सरकारें, संबंधित संस्थान करते हैं, सभी अन्य आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं फिर आवेदन शुल्क के नाम पर इतनी फीस क्यों ली जाती है। कंप्यूटर के युग में जब सभी कुछ ऑनलाइन की प्रक्रिया चल रही है तब तो शुल्क और भी कम होना चाहिए।संस्थानों को चयन प्रक्रिया की समय सीमा का भी निर्धारण करना चाहिए | अनेक संस्थान भर्ती के फार्म भरवा कर कुम्भकर्णी नींद में चले जाते है वर्षों चयन प्रक्रिया भारतीय सवारी रेलगाड़ी सी आउटर पर अटकी रहती है | सर्वाधिकार प्राप्त अधिकारियों को इस विषय पर ध्यान देना चाहिए |

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