बाढ़ और कोरोना से बदहाल बिहार, क्या चुनाव के लिए है तैयार?

बिहार में कोरोना है, बाढ़ है। अस्पतालों के हालात जर्जर हैं, स्वास्थ्य सेवाएं ठप पड़ने लगी हैं। नए बनाए हुए पुल बाढ़ में बह जा रहे हैं, और इन सबों के बीच चुनाव भी आने वाला है।

इन तमाम बातों पर बिहार अपडेट के अतुल गंगवार ने वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर, अनिता चौधरी एवं सोशल मीडिया एक्सपर्ट मनीष वत्स से चर्चा की है।

चुनाव को देखते हुए विपक्ष सत्ता पक्ष पर हमलावर हो गया है, कोरोना और बाढ़ को मुद्दा बनाकर विपक्ष चुनावी रणभूमि में उतरने की ख्वाहिश में है। हालांकि दूसरी तरफ विपक्ष चुनावों को टालने की अपील भी चुनाव आयोग से कर रहा है। राजद के तेजस्वी यादव के सुर में सुर मिलाते हुए सत्ता पक्ष के सहयोगी दल लोजपा ने भी चुनाव टालने के लिए चुनाव आयोग को पत्र लिखा है।

इन चुनावों के बीच एक और मुद्दा बिहार की राजनीति में गरमाया हुआ है। वो मुद्दा है सुशांत सिंह राजपुत की मौत।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी सुशांत की मौत को लेकर जांच में सहयोग की बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा है कि यदि सुशांत के पिता आग्रह करें तो सरकार सीबीआई जांच की सिफारिश करेगी। तेजस्वी यादव ने भी सीबीआई जांच की मांग की है।

कोरोना महामारी के बीच बिहार की खराब स्वास्थ्य व्यवस्था ने सरकार की पोल खोल दी है।
वैसे बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो जितना हम समझते हैं, उससे कहीं अधिक बुरी स्थिति है। स्वास्थ्य विभाग ने 16 मई 2020 को पटना हाई कोर्ट में एक आंकड़ा पेश किया था। जिसके अनुसार राज्य में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत पद 11645 हैं, इनके एवज में सिर्फ 2877 डॉक्टर नियुक्त हैं। 8768 पद खाली पड़े हैं। यानी 75 फीसदी से भी अधिक। शहरी क्षेत्र की स्थिति फिर भी थोड़ी ठीक है। गांवों में तो लगभग 85 फीसदी पद खाली हैं।

इन ढाई हजार डॉक्टरों के भरोसे 13 करोड़ की आबादी है। वे भी डरे डरे हैं, क्योंकि उनके पास पर्याप्त सुरक्षा किट नहीं हैं। WHO कहता है कि हर एक हजार की आबादी पर एक डॉक्टर होना चाहिये। हमारे यहां इस कोरोना काल में एक डॉक्टर के जिम्मे 50 हजार की आबादी है।

इसके अलावा बिहार अस्पतालों की स्थिति जर्जर है, इनमें पर्याप्त सुविधाओं का अभाव है, जिला स्तर तक के सदर अस्पताल वेंटिलेटर और ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी से जूझ रहे हैं।
बाढ़ ने बिहार के एक बड़े भाग के लोगों का जीवन अस्त व्यस्त कर रखा है। बाढ़ के कारण कई पुल बह गए हैं। पुलों पर दुष्यंत कुमार की ये पंक्ति सटीक बैठती है।

मत कहो आकाश में कोहरा घना है, ये ये किसी की व्यक्तिगत आलोचना है। पक्ष औ’ प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है ।।

कुल मिलाकर अभी बिहार की राजनीति आने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए कोरोना और बाढ़ के इर्द गिर्द घूम रही है। ये मुद्दे सरकार को कितना असहज करेंगे, विपक्ष इनका कितना फायदा उठा पाएगा ये तो भविष्य की गोद में है ।

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