धर्म और आध्यात्म के प्रणेता भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक प्यारेलाल त्रिवेदी

डॉ. सुनीता शर्मा लेखिका व शिक्षाविद्

गोरा रंग, मंझोले कद के, सरल, सादगी पूर्ण जीवन, छल कपट से दूर ,चेहरे पर हमेशा ही स्मित, सरलता की प्रतिमूर्ति, साधारण व्यक्तित्व में असाधारण योग्यता लिए प्यारेलाल त्रिवेदी जी से अगर आपका पुराना परिचय नहीं भी है और केवल पहली बार परिचय हुआ है तब भी आपको उन से मिलकर ऐसा एहसास नहीं होगा कि जीवन में आपका उनसे यह पहला परिचय है।
31अक्टूबर,1932 को नैमिषारण्य के छोटे से ग्राम जोतपुर, उत्तर प्रदेश में जन्मे 91वर्षीय प्यारेलाल त्रिवेदी जी अपनी सहजता और मुस्कुराहट से आपको अपना बना ही लेंगे।


बहुमुखी प्रतिभा के धनी प्यारेलाल त्रिवेदी जी ने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1960 में भौतिक विज्ञान में एम.एस.सी. की परीक्षा फर्स्ट क्लास फर्स्ट श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा विश्वविद्यालय ने भी अपने इस होनहार छात्र की योग्यताओं का सम्मान करते हुए स्वर्ण पदक प्रदान किया। उसी वर्ष त्रिवेदी जी (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) डी.आर.डी.ओ. में वैज्ञानिक के पद पर नियुक्त हुए । इस संस्था में कार्य करते हुए इन्होंने मिसाइल मैन ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ गाइडेड मिसाइल प्रोजेक्ट में भी कार्य किया है।
इस लेख का उद्देश्य प्यारेलाल त्रिवेदी जी का चरित्र चित्रण या यश गाथा लिखना नहीं है अपितु उन्होंने सेवानिवृत होकर निष्काम भाव से जो साहित्य व धर्म की सेवा की है उस ओर आप सभी का ध्यान आकृष्ट करना है ।भौतिक विज्ञान के छात्र व डी. आर. डी.ओ. में वैज्ञानिक साइंटिस्ट पद पर रहते हुए शायद ही कभी इनके मन में यह विचार आया होगा कि इन्हें
(श्री सत्यनारायण पूजन एवं कथा) सुगम गीता व श्रीमद् भागवत पुराण सरीखी पुस्तकों का लेखन भी करना है। ईश्वर भी अपने भक्तों से क्या कार्य करवाना चाहता है शायद उसका संकेत भी सही समय के अनुकूल होने पर ही देता है । संभवतः ईश्वर भी त्रिवेदी जी की सेवानिवृत्ति की ही प्रतीक्षा कर रहे थे । सेवानिवृत्ति के पश्चात ही त्रिवेदी जी को यह विचार आया कि श्री सत्यनारायण पूजन एवं कथा के घटते महत्व को देखकर इसकी पूजा पद्धति के साथ कथा के सभी श्लोकों का दोहा-चौपाई छंद में पद्यानुवाद करके इसे अधिक गरिमापूर्ण व रोचक बनाया जाए । अनवरत अभ्यास ने उनका यह कार्य सुगम किया और एक वैज्ञानिक को ईश्वर ने कवि बना दिया । ईश्वर ने ही जैसे साक्षात त्रिवेदी जी के हाथ में कलम पकड़ा दी हो।


आपने काव्य शैली में श्री सत्यनारायण कथा की 18,000 पुस्तकें निशुल्क छपवाकर देश और विदेश में वितरित की हैं लेकिन त्रिवेदी जी की काव्य यात्रा ने यहीं विराम नहीं लिया। अब आपका अगला पड़ाव था सुगम गीता को काव्य शैली में रचना । गीता हिंदू संस्कृति का जीवंत ग्रंथ है। गीता जिस पर न जाने कितने ही विद्वानों ने टीका लिखी है लेकिन त्रिवेदी जी की महिमा देखिए उन्होंने गीता को भी दोहा- चौपाई छंद शैली में खड़ी बोली हिंदी में काव्यात्मक रूप में रच दिया । यह अपने आप में एक अजूबा ही है कि संस्कृत के क्लिष्ट श्लोकों को सरल सहज खड़ी बोली हिंदी में काव्य शैली में रच देना। यह इतना भी सरल कार्य नहीं था । सुगम गीता व्याख्या की 3000 पुस्तकों का निशुल्क वितरण भी त्रिवेदी जी के माध्यम से हुआ है और देश के अनेक राज्यों व शहरों के साथ-साथ विदेश में भी इन्होंने कोरियर से इन पुस्तकों को भेजा है। अब तो स्थिति यह है कि इनके द्वारा लिखी गई सुगम गीता व सत्यनारायण कथा का गायन वादन दुबई के कई मंदिरों में होता है।
लगातार 10 वर्षों के अनवरत, अथक परिश्रम का परिणाम था कि इनके द्वारा महर्षि व्यास प्रणीत श्रीमद् भागवत महापुराण के 18000 श्लोकों का सरल पद्यानुवाद खड़ी बोली हिंदी में दोहा -चौपाई छंद में किया गया। समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक भारतीय संस्कृति और धार्मिक ग्रंथो को पहुंचाने का कष्टसाध्य श्रम त्रिवेदी जी ने किया।
श्रीमद् भागवत पुराण में भगवान के प्रमुख भक्तों के दिव्य चरित्र का विषद वर्णन है। सनातन धर्म में ईश्वर के मुख्य 24 अवतारों की पवित्र लीलाएं भी इस पुस्तक में समाहित हैं। यह ग्रंथ उपनिषदों का सार है । यह सृष्टि के गूढ़ रहस्य एवं आध्यात्मिक ज्ञान का विषद वर्णन प्रस्तुत करता है । यह पद्यानुवाद बहुजन हिताय बहुजन सुखाय सिद्ध होगा क्योंकि इसका वाद्य यंत्रों के साथ गायन करने से लोगों को आनंद की अनुभूति होगी । इन सभी पुस्तकों को खड़ी बोली हिंदी में काव्य शैली में लिखना सहज नहीं रहा है । ऐसा व्यक्ति जिसका गीत- संगीत से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा हो वह अगर गेय शैली में साहित्य रचना करे तो यह सचमुच आश्चर्य की बात है।
आज के समय में दोहा-चौपाई छंद शैली हिंदी साहित्य में लुप्त प्राय हैं। तुलसीदास और मलिक मोहम्मद जायसी ने दोहा-चौपाई छंद शैली में साहित्य रचना की है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा दोहा चौपाई छंद शैली में रचित अवधी भाषा में रामचरितमानस जन-जन में लोकप्रिय है । आज की लोक भाषा खड़ी बोली हिंदी है।
खड़ी बोली हिंदी में सत्यनारायण कथा ,सुगम गीता और अब श्रीमद् भागवत पुराण लिखकर प्यारेलाल त्रिवेदी जी तुलसी सम हो गए हैं । आपने सब साधकों के लिए इन ग्रंथो को ग्राह्य बनाया है और अनेक पत्र- पत्रिकाओं में आपकी पुस्तकों की व्याख्या लिखी जा चुकी है। आधुनिक हिंदी साहित्य में प्यारे लाल त्रिवेदी जी को आधुनिक काल का तुलसी कहा जाए तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सुगम गीता व सत्यनारायण कथा का पटना बिहार में भी कई स्थानों पर विमोचन किया गया है और त्रिवेदी जी की इस साहित्यिक यात्रा के लिए उन्हें अवार्ड भी दिए गए हैं । सबसे आश्चर्य की बात यह है कि प्यारेलाल त्रिवेदी जी ने किसी भी पुस्तक की रॉयल्टी नहीं ली है बल्कि यह साहित्यिक कार्य लोगों को निशुल्क वितरित किया है। प्रतिभा देवी सिंह पाटिल देश की तत्कालीन राष्ट्रपति ने सुगम गीता को पढ़कर अपना संदेश प्रेषित किया था कि त्रिवेदी जी ने भारतीय समाज के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण सेवा की है और सभी भारतीयों को सुगम गीता को पढ़ना चाहिए।
प्यारेलाल त्रिवेदी जी को साहित्य मनीषी सम्मान 2008 में मिला था।
ज़ी न्यूज़ में इनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर साक्षात्कार भी किया जा चुका है।
गिरिजा दयाल श्रीवास्तव ट्रस्ट डालीगंज, लखनऊ में सुगम गीता का विमोचन किया गया तथा अरविंद आश्रम नोएडा में भी पुस्तक का विमोचन किया गया है। गगन स्वर बुक्स द्वारा अखिल भारतीय साहित्यकार सम्मान से आपको सम्मानित किया गया है। हिंदी भवन नई दिल्ली में “मां सरस्वती रत्न सम्मान’ से आपको 2015 में सम्मानित किया था।
आपको साहित्य सेवा के लिए दिल्ली स्टेट अवार्ड अधिकार मंच ने भी 2017 में सम्मानित किया है । 2019 में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन जी ने भी श्रीमद् भागवत पुराण पुस्तक का विमोचन किया है।
आस्था चैनल ने व्यक्ति विशेष शीर्षक से नैमिषारण्य की महिमा कार्यक्रम बनाकर आपके किए गए कार्यों का प्रसारण किया है।

एक वैज्ञानिक, कवि हृदय, सहज, सरल प्यारेलाल जी ने आधुनिक समाज में साहित्य की निष्काम भाव से जो सेवा की है उसकी तुलना करना संभव नहीं है। निशुल्क धार्मिक पुस्तकों का सृजन बिना किसी लाभ के विचार से करना आसान नहीं है। सेवानिवृत्ति के बाद भी लगातार श्रम साधना, समाज को देते रहने का भाव मनुष्य को ईश्वर सम बना देता है। आपने मृत्यु पश्चात अंगदान की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर भी किए हैं और दधिचि देहदान को मृत्यु उपरांत अंगदान करने का प्रण भी लिया है।
प्यारेलाल त्रिवेदी जी ने श्री सत्यनारायण कथा की पटकथा और संवाद भी लिखे हैं जिस पर भविष्य में फिल्म भी बनने वाली है। ऐसे प्यारेलाल त्रिवेदी जी को कोटि-कोटि नमन।

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