क्या बिहार की राजनीति में कुछ नया कर पाएंगी पुष्पम प्रिया चौधरी ??

बिहार राजनैतिक रूप से हमेशा से समृद्ध रहा है, एक समय था जब पूरे भारत वर्ष में मगध की तूती बोलती थी। मगध साम्राज्य ने भारत को अनेक महान शासक दिये, मौर्यकाल के शासक, गुप्त काल के शासक, पाल वंश, शुंग वंश, नन्द वंश हर काल में मगध ने भारत का नेतृत्व किया। आज जो पूरे विश्व में लोकतांत्रिक गणराज्य की अवधारणा है, उसका जनक बिहार का वैशाली रहा है। ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक ईसा से लगभग छठी सदी पहले वैशाली में ही दुनिया का पहला गणतंत्र यानी ‘गणराज्य’ कायम हुआ था।

चाणक्य, जिनका प्रसिद्ध अर्थशास्त्र राजनीतिक सिद्धान्तों की प्रसिद्ध कृति है, जिसमें समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति, तथा धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश डाला गया है, चाणक्य भी मगध के ही पुत्र थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि बिहार की राजनैतिक व्यवस्था की जड़ बहुत ही गहरी रही है। इसका सम्बन्ध प्राचीनता से भी है, और आधुनिकता से भी ।


देश की आजादी के बाद से ही बिहार में नेतृत्व की कमी नहीं रही। उस समय भारत के प्रथम राष्ट्रपति, डॉ राजेन्द्र प्रसाद विद्वान व्यक्तित्व थे ही, सीधे व सरल भी थे। बिहार के पहले मुख्यमंत्री बिहार केसरी श्री कृष्ण सिंह ने बिहार के विकास को प्राथमिकता देकर हर क्षेत्र में मजबूती से काम किया, उनका साथ दिया बिहार विभूति श्री अनुग्रह नारायण सिंह ने।

समय के साथ बिहार की राजनीति में परिवर्तन हुआ। धीरे-धीरे यहां की राजनीति जनकेन्द्रित ना होकर आत्मकेंद्रित हो गई। राजनीतिज्ञ अपने फायदे के हिसाब से काम करने लगे। विकास की योजनाएं शिथिल पड़ गई। जातीय संघर्ष बढ़ गए। जनहित की जगह जाति हित और परिवार हित की बातें होने लगी। उन्नति अवनति में बदल गया, कुल मिलाकर बिहार विकास के मामले में पिछड़ने लगा और फिर एक दिन ऐसा आया जब बिहार देश का सबसे पिछड़ा प्रदेश बन गया।

वर्तमान में बिहार में कई राजनैतिक दल सक्रिय हैं, कई पहले वर्षों तक सत्ता भोग चुके हैं और कई अभी वर्षों से भोग रहे हैं। इन राजनैतिक दलों के पास बिहार के विकास का कोई विजन नहीं दिख रहा । वर्षों तक सत्ता सुख का स्वाद लेते लेते इन दलों ने राज्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को भुला दिया है। इनके झूठे वादे और सत्ता के प्रति आसक्ति को देखकर जनता भी इनसे ऊब चुकी है और नए नेतृत्व के लिए युवाओं की ओर आशा भरी निगाह रखने लगी है।

ऐसे में बिहार में नई आशा की किरणों के साथ पुष्पम प्रिया चौधरी का पदार्पण हुआ है। पुष्पम युवा तो हैं ही, सुशिक्षित और समझदार भी हैं, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी वर्तमान में बिहार के विकास के विजन को लेकर बिहार के हर गांव, हर कस्बे और हर शहर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रही हैं। वो राजनीति के वर्तमान चालों को दरकिनार कर सिर्फ और सिर्फ प्रगति की बात करती नजर आती हैं। वो जाति-धर्म की दीवारों को तोड़ रही हैं, वो जहां जा रही हैं रोजगार और उद्योग को प्राथमिकता दे रही हैं, वो बेहतर शिक्षा की बात करती हैं, वो गृह उद्योगों को पुनर्जीवित करने की बात करती हैं। उन्होंने विजन 2020-30 बनाया है, वो बिहार के उद्योग धंधों और विकास में लगे 30 साल के लॉक डाउन को तोडने की बात करती है। वो बिहार को वैश्विक स्तर पर खोलने की बात करती हैं।

वो कहती है “विकास का एक पैमाना देखिए: विकसित देशों में सरकारी ऐम्ब्युलेंस 5-10 मिनट में आती है। बिहार में आ जाना ही मेहरबानी है! हर गाँव में मैंने यह सुना कि ऐम्ब्युलेंस क्या डॉक्टर ही नहीं आते स्वास्थ्य केंद्रों में। ये रूपनारायणपुर, वैशाली का स्वास्थ्य केंद्र है, चार साल से बना पड़ा है, खुलता ही नहीं, डॉक्टर, स्टाफ़ ही नहीं आते। दिक़्क़त यह है कि सरकारी बाबुओं और नक़ली नेताओं को लगता ही नहीं कि जो काम वे कर रहे हैं वे पब्लिक के पैसे से कर रहे हैं, ज़मींदारी से एहसान नहीं! 2020-30 इस अहसास का समय होगा कि पैसा पब्लिक का है”

वो कृषि में क्रांति लाने की बात कर रही हैं, वो हर उस उद्योग की बात कर रही है वो बन्द हो चुका है, जिसने सैंकड़ो लोगों को बेरोजगार कर दिया है। वो बिहार में फ़िल्म इंस्टिट्यूट खोलने की बात करती है तो वही कृषि क्षेत्र में “प्रोड्यूस, इनोवेट, इन्वेस्ट” मॉडल में एग्रीकल्चरल रिवोल्यूशन लाने की प्रतिबद्धता दिखा रही है।

‘प्लुरल्स’ नाम से पार्टी का गठन कर पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार के हर वर्ग से जुड़ने की कोशिश कर रही है। बुजुर्ग, महिला, नौजवान सबके लिए आशा की नई किरण है पुष्पम।

कुल मिलाकर आने वाले विधानसभा चुनाव में नई पार्टी के साथ पुष्पम प्रिया चौधरी एक नए विकल्प के साथ बिहार की राजनीति में प्रवेश करने वाली है। अन्य दलों के समर्थक उनकी इस कोशिश का मजाक उड़ा सकते हैं परंतु इस समय बिहार के लोगों को भी नए चेहरे और नए विकल्प की तलाश है, ऐसे में शायद पुष्पम प्रिया चौधरी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरे । हालांकि बिहार की राजनीति इतनी आसान नहीं। जातीय समीकरणों में उलझा बिहार विकास नई बिसात पर कितना टिक पाएगा ये तो समय बताएगा परन्तु एक कहावत है “कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों”

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