बाढ़ और जनहानि से बचने के लिए वास्तु का प्राचीन विज्ञान देगा सहारा

अग्रवर्ती औद्योगिक वास्तु या एडवांस्ड इंडस्ट्रियल वास्तु सभी अनियोजित बिल्डिंगों और इन्फ्रास्ट्रक्चर आगाह करता है कि विकास और शहरी जलनिकास व्यवस्था का खराब प्रबंधन बाढ़ के खतरों को ‘तीन गुना तक’ बढ़ा देते हैं। आईआईटी बॉम्बे ने बताया कि केरल की बाढ़ के पीछे शहरीकरण है। बेशक केरल की बाढ़ अभूतपूर्व स्तर की थी, लेकिन श्रीनगर (2014) और चेन्नै (2015) में आई बाढ़ भी हम भूले नहीं हैं।

मानसून के दौरान शहरों में बाढ़ आना अब देश में आम बात होती जा रही है। जलनिकास की प्राकृतिक संरचनाओं और भौगोलिक स्थितियों की परवाह किए बगैर अव्यवस्थित निर्माण और गैर सीमेंटीकृत जमीन का लगभग सर्वथा अभाव ये दो प्रमुख कारक ऐसे हैं जिनकी वजह से देश के शहरों में चैन से रहना दूभर होता जा रहा है। 

एडवांस्ड इंडस्ट्रियल वास्तु सम्मेलन 2018 में भाषण करते हुए एडवांस्ड इंडस्ट्रियल वास्तु के संस्थापक वास्तु शास्त्री आचार्य विक्रमादित्य ने कहा, ‘अनियोजित और अतार्किक शहरी विस्तार के जरिए हम पारंपरिक जल भंडारण और जल निकास व्यवस्थाओं को बाकायदा ध्वस्त करते चले गए। जल निकासी की कला हम भूल गए। हमें सिर्फ बिल्डिंगों के लिए जमीन दिखाई देती है, पानी के बारे में हम सोचते ही नहीं। बाढ़ की हालिया घटनाएं अंधाधुंध शहरीकरण का ही नतीजा हैं। भारत में तेज गति से शहरीकरण हो रहा है। सालाना 2.1 फीसदी की अनुमानित दर से 2031 तक शहरी केंद्रों पर 60 करोड़ से ज्यादा आबादी होगी और उसी अनुपात में परिसंपत्ति भी खड़ी की जाएगी।

इस अनावश्यक तबाही ने शहरों के इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्लानिंग और डिवेलपमेंट की खामियां उजागर कर दी हैं। त्रुटिपूर्ण सीमेंटीकरण और अतार्किक निर्माण आज पूरी दुनिया के लिए परेशानी का सबब बने हुए हैं। वजह यह है कि इस सब में वैदिकविज्ञान पर आधारित वास्तु शास्त्र के नियमों की पूरी तरह अनदेखी की जाती है। वास्तु की मूल अवधारणा ही प्रकृति और इन्फ्रास्ट्रक्चर के बीच स्वस्थ रिश्ते पर आधारित है। इसलिए आधुनिक दौर में इसकी प्रासंगिकता बनी हुई है। ‘अगर हम वास्तु के प्राचीन विज्ञान का अनुसरण करें तो बाढ़ और जनहानि से बच सकते हैं,’ कहते हैं आचार्य विक्रमादित्य।

दुर्भाग्यवश वास्तु विज्ञान को वह मान्यता, वह अहमियत नहीं मिली जो उसे मिलनी चाहिए थी। देश में इसकी औपचारिक शिक्षा प्रदान करने वाला उपयुक्त परिवेश नहीं है। हालांकि देश के प्रचीनतम आईआईटी , आईआईटी खड़गपुर का मानना है कि पारंपरिक भारतीय स्थापत्य की नींव वास्तुशास्त्र की अवधारणा पर ही पड़ी है और इसने 2017 में स्थापत्य के विद्यार्थियों के लिए वास्तुशास्त्र की कक्षाएं शुरू करवाई हैं। वास्तुशास्त्र का मूल ऋग्वेद में है और यह अपनी प्रकृति में पूरी तरह वैज्ञानिक है। वास्तु की अवधारणा की बुनियादी समझ बनाए बगैर कोई पूर्ण वास्तुविद नहीं हो सकता।

आईआईटी खड़गपुर के शिक्षकों के मुताबिक जब छात्रों को पश्चिमी पृष्ठभूमि के साथ शिक्षा दी जाती है तो उन्हें प्राचीन भारतीय स्थापत्य परंपराओं से मिलती-जुलती अवधारणाएं भी सिखाई जानी चाहिए। शिक्षकों का मानना है कि वास्तु का अध्ययन धर्म से जुड़ा नहीं है, इसका वैज्ञानिक आधार है और यह छात्रों के ज्ञान को ठोस संदर्भ प्रदान करता है।

भारत में सही मायनों में प्रशिक्षित वास्तु विशेषज्ञों की बहुत कमी है क्योंकि स्थापत्य के संस्थानों और इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्रों को प्रचीन भारतीय ज्ञान से अवगत नहीं कराया जाता। वक्त आ गया है कि इस मसले को गंभीरता से लेते हुए हम वास्तु के इच्छुक छात्रों को सही प्रशिक्षण प्रदान करने की समुचित व्यवस्था करें ताकि अनियोजित शहरीकरण से उपजी चुनौतियों का सामना किया जा सके।

‘एडवांस इंडस्ट्रियल वास्तु’ में हम केंद्र और राज्य सरकारों से, मानव संसाधन विकास मंत्रालय से, यूजीसी और आईआईटी, आर्किटेक्चरल कॉलेजों जैसे तमाम स्वायत्त संस्थानों से अपील करते हैं कि आईआईटी खड़गपुर की मिसाल का अनुसरण करते हुए अन्य स्थानों पर भी वास्तुशास्त्र की पढ़ाई को पाठ्यक्रमों में शामिल कराया जाए।

वास्तु सम्मेलन के मौके पर मुख्य अतिथि राज्यसभा सांसद (भाजपा) श्री अनिल अग्रवाल ने तेज अनियोजित शहरीकरण के मुद्दे पर जोर देते हुए कहा कि मानव निर्मित आपदाओं से बचने के लिए जरूरी है कि शहर योजनाकार प्राचीन वैदिक विज्ञान के ज्ञान से खुद को जोड़ें।

इस अवसर पर भाजपा विधायक श्री नंदकिशोर गुर्जर (लोनी, यूपी), भाजपा किसान मोर्चा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री विकास तेवटिया समेत देश-विदेश के अनेक प्रमुख वास्तु सलाहकारों, टाउन प्लानरों, आर्किटेक्टों, इंजीनियरों ने भी अपने विचार प्रकट किए।

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