‘आरक्षण’ ऊपर से नीचे आने की लड़ाई

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कपिल मिश्रा
देश में रहेंगे ही चार वर्ण देश की महापंचायत संसदभवन से  सवर्ण आरक्षण के वक्त यही ध्वनित हो रहा था
(1) सवर्ण
(2) अन्य पिछड़ा वर्ग
(3) अनुसूचित जाति
(4) अनुसूचित जनजाति
होड़ सी मच गई है ऊपर से नीचे जाने की संविधान में आरक्षण की शुरुआती व्यवस्था की गई थी अस्पृश्यता जैसे अमानवीय कुरीति से निपटने की सामाजिक सबलीकरण के लिए एक समान अवसर उपलब्ध कराने की अब तो बात अति और अत्यंत की होने लगी है देशभर में छत्तीस जातिगत बिरादरियाँ है फिर हो जाए जातिगत गणना क्यों हो हल्ला हो रहा है ? सरकारी आधार पर विभाजन का आधार क्यों हो ? विशुद्ध जातिगत बातें हो रही हैं तो हो जाने दें जातिगत आधार पर जनगणना फिर तय हो 36 बिरादरी में कौन सी जाति सर्वाधिक है ? ये खतरनाक दौर है मित्रों हम कहाँ से कहाँके लिए चले थे कहाँ अटक गए 21वीं सदी में भी इतना ज़हर,वैमनस्यता देश के आईने में देश की तस्वीर बटी सी दिख रही है मन पीड़ित है कानून बनाने वाले मंदिर में बैठे पुजारी भारत माँ की ये कैसी आरती उतार रहे हैं ? देश का 365 दिन 24 घंटे चुनावी मोड में रहना खतरनाक है ये संक्रमण काल है देश का। अविश्वास का माहौल चरम् पर है कही हुई बातों का प्रभाव समाज पर नगण्य सा है ये पूरा सिस्टम जिम्मेदार है इसपर गंभीरता से सबको मिलकर सोचना होगा नहीं तो वर्तमान प्रणाली से लोगों का विश्वास उठ जाएगा और बेमाने हो जाएँगे लोकतंत्र के सारे स्तम्भ दलगत चुनावी नफा नुकसान के चक्कर में देश का बहुत बड़ा नुकसान हो जाएगा।
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ये लेखक के अपने विचार हैं।

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