93 वर्षीय स्वतंत्रता सेनानी शालिग्राम गाड़ोदिया की जुबानी

 स्वतंत्रता आंदोलन में रांची के स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था. इन स्वतंत्रता सेनानियों में 93 वर्षीय शालिग्राम गाड़ोदिया बुढ़ापे की वजह से अब सुन नहीं पाते. देश को आजादी  दिलाने में जो संघर्ष किया, वो यादें अब धुंधली-सी हो चुकी है पर आज भी  अपने परिवार को वे आजादी के किस्से सुनाते नहीं थकते हैं. इसी क्रम में प्रभात  खबर के वरीय संवाददाता राजेश तिवारी से श्री गाड़ोदिया ने आजादी के किस्से साझा किये.

9 अगस्त 1942 को मुंबई में कांग्रेस का अधिवेशन था. बापू ने  नारा दिया कि अंग्रेजों भारत छोड़ो. अधिवेशन में उन्होंने कहा कि हम हिंदुस्तान को अंग्रेजों से आजाद करायेंगे या अपनी जान दे  देंगे. उस वक्त मेरी उम्र 18 साल थी.

रांची के बालकृष्ण स्कूल में पढ़ता  था. मैं और मेरे दोस्त स्कूल के बाहर जुटे और जिला स्कूल के गेट के पास  को-ऑपरेटिव सेंटर की दीवार पर खड़े होकर लोगों से आजादी की लड़ाई में शामिल  होने का आह्वान किया. तभी पुलिस आयी और हम सभी को पकड़ कर ले गयी.

हम लोगों को  जेल में डाल दिया गया. दूसरे दिन राष्ट्रभक्तों का एक दल नारेबाजी करता हुआ जेल के पास आया.  हमलोग भी जेल से निकलने की योजना बनाने लगे. हमलोगों ने जेल के संतरी से  चाबी छीनी और बाहर निकलने का प्रयास करने लगे.  इसी बीच वहां मौजूद अन्य  पुलिस की नजर हम लोगों पर पड़ी. उन्होंने लाठीचार्ज कर दिया, जिससे हमारे साथी घायल हो गये.

उस  दिन को याद कर आज भी  रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उन्होंने बताया कि मुझे  और मेरे दोस्तों को चार दिनों के लिए बंद कर 30-30 बेंत मारने  की सजा दी गयी.  हमारे हाथ और पैर बांध दिये गये. इसके बाद जेलर आया और उसने जेल के जल्लाद फूलचंद डकैत से कहा- मारो इन्हें. आदेश मिलते ही  जल्लाद हमलोगों पर बेंत बरसाने लगा. मुझे जब 15 बेंत मारे गये, तो मैं  बेहोश हो गया लेकिन जल्लाद ने बेंत बरसाना जारी रहा. बेहोशी की हालत में हम सभी को  फुलवारीशरीफ जेल (पटना) में डाल दिया गया. वहां स्वतंत्रता सेनानियों पर काफी  जुल्म ढाये जाते थे. भूख लगने पर सड़ा हुआ चावल दिया जाता था.

– ऋषभ अरोड़ा

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