सत्तर सीटों पर लिंगायत मतदाताओं का दबदबा , भाजपा ने 67 लिंगायतों को दिया टिकट सर्जना शर्मा

सर्जना शर्मा
कर्नाटक विधानसभा चुनाव –2023
परंपरागत भाजपा समर्थक लिंगायत इस बार किसका देंगें साथ ?लिंगायत यानि जो लिंग धारण करते हैं । भगवान शिव का शिवलिंग जिसको ये इष्टलिंग कहते हैं, अपने गले में नेकलैस के रूप में धारण करते हैं । काले और नीले पत्थर से बना गाय के गोबर के गाढ़े घोल में लिपटा शिवलिंग लिंगायत अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने चांदी अथवा अन्य किसी धातु में मढ़वा कर धारण करते हैं । माथे पर और शरीर पर भभूत का त्रिपुंड लगाते हैं। जिसके बीच में आदि शक्ति पार्वती का प्रतीक कुमकुम की लाल बिंदी नहीं होती । प्रतिदिन नहा धो कर ये लोग अपने बाएं हाथ में अपना इष्टलिंग रख कर पूजा करते हैं और कामना करते हैं कि जब वे अपना शरीर छोड़ें तो उनकी आत्मा शिवलिंग के साथ एकाकार हो जाए । ये स्वयं को पूरी तरह इष्टलिंग को समर्पित कर देते हैं । उनका विश्वास होता है कि अब उनका पुनर्जन्म नहीं होगा इसीलिए वे लिंगायत कुल में पैदा हुए हैं । कर्नाटक के गांव गांव जिले जिले में हज़ारों लिंगायत मठ हैं सबसे बड़ा मठ टुमकूर में है श्री सिद्ध गंगा मठ ।
लिंगायत आज कर्नाटक में एक बड़ी आबादी हैं कुल मतदाताओं का लगभग 17 फीसदी लिंगायत हैं। ये पूरे कर्नाटक में फैले हुए हैं जबकि वोकालिंगा की बहुलता दक्षिण कर्नाटक तक ही सीमित है । आजादी के बाद से 1956 तक कर्नाटक की राजनीति में वोकलिंगा का बहुत प्रभुत्व रहा लेकिन जब 1956 में मैसूर स्टेट का विलय हुआ, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और महाराष्ट्र के कुछ हिस्से मिला कर कर्नाटक राज्य का गठन हुआ तो लिंगायतों की संख्या वोकालिंगो से ज्यादा हो गयी । लिंगायतों का कर्नाटक की राजनीति में ऐसा वर्चस्व बढ़ा कि लगभग चार दशक तक लिंगायत ही राज्य के मुख्यमंत्री रहे । बीच के कुछ साल छोड़ दें तो फिर से लिंगायत ही सत्ता कें केंद्र में रहे । राज्य और केंद्र दोनों में उंचे पदों पर पहुंचे । भाजपा के जगदीश शैट्टार जो कि अब टिकट न मिलने से नाराज़ हो कर कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं और पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा , वर्तमान मुख्यमंत्री बसबराज बोमई लिंगायत है ।आजकल लिंगायतों का सबसे बड़े कद्दावर और प्रभावशाली यदि कोई नेता है तो वो हैं बीएस येदुरप्पा । भाजपा ने उनको भले ही मुख्यमंत्री पद से हटा दिया हो लेकिन वे लिंगायत समाज के बेताज बादशाह हैं । टुमकूर स्थित श्री सिद्ध गंगा मठ के सभी प्रमुख मठाधीशों से उनकी निकटता किसी से छुपी नहीं है। उन पर सब लिंगायत धर्माचार्यों का आशीर्वाद रहा है और आज भी है । येदुरप्पा ने सत्ता में रहते हुए न केवल लिंगायत बल्कि और मठों के प्रति भी नरम रूख रखा और उनकी भरसक सहायता की । आज भी यदि वे किसी उम्मीदवार के साथ पद यात्रा या रैली कर दें तो लिंगायत वोट स्वयं उसी उम्मीदवार को वोट देता है । कर्नाटक के स्टार प्रचारकों नें उनका नाम शामिल है और वे धुआंधार प्रचार कर रहे हैं ।
कर्नाटक में मठों की भूमिका केवल धर्म प्रचार तक सीमित नहीं है, बल्कि ये समाज में बड़ा बदलाव भी लाते हैं । शिक्षा, स्वास्थय , समाज निर्माण , बच्चों और युवाओं में संस्कार और संस्कृति के प्रति आदर भाव सिखाना। समाज कल्याण कार्यों के काऱण समाज में इनकी स्वीकार्यता और सम्मान बहुत बढ़ा है । बैंगलुरू मैसूर हाई वे पर टुमकूर शहर से कुछ किलोमीटर दूर पहाडियों के बीच स्थित श्री सिद्ध गंगा मठ लिंगायतों का सबसे बड़ा और प्राचीन मठ है । मठ की अपनी विशाल भूमि है, जहां प्राईमरी से लेकर उच्च शिक्षा संस्थान हैं। अस्पताल हैं, गौशालाएं, बाग बगीचे हैं,अपना बाज़ार है । और आधे से ज्यादा टुमकूर शहर में लिंगायत मठ के बिभिन्न संस्थान हैं । सिद्ध गंगा मठ में हज़ारों बच्चे पहली कक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक मुफ्त शिक्षा, खाना पीना और आवास पाते हैं । यहां जाति का कोई बंधन नहीं है हर जाति के बच्चों को यहां सभी सुविधाएं मुफ्त दी जाती हैं ।
राज्य में एक आम धारणा है कि लिंगायत मठ मुख्य रूप से भाजपा समर्थक हैं । सिद्ध गंगा मठ के वर्तमान मठाधीश श्री सिद्धलिंगा महास्वामी ने सन्मार्ग से बातचीत में इसका खंडन किया । उन्होने कहा— “हमारा कार्य समाज कल्याण है। हम राजनीति में न तो रूचि रखते हैं, न हस्तक्षेप करते हैं । अपने अनुयायियों से हम किसी पार्टी विशेष को वोट देने को कभी नहीं कहते” । लिंगायतों के राजनीतिक दबदबे और प्रभावशाली वोट के बाद भी भाजपा को आज तक कर्नाटक में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है । भले ही बिना बहुमत के भी भाजपा राजनीतिक जोड़ तोड़ करके अपनी सरकार बना ही लेती है । इस बार चुनाव से पहले एक विवाद खड़ा किया गया कि लिंगायत हिंदु नहीं हैं । भाजपा नेताओं ने इसे महज चुनावी दुष्रप्रचार बताते हुए कहा कि लिंगायत शिव भक्त हैं और हिंदु है। राज्य के बड़े लिंगायत नेता और लिंगायतों के पूरे इतिहास की जानकारी रखने वाले तोंटदार्य कहते हैं – “भगवान शिव के उपासक हिंदु नहीं हैं तो फिर कौन हैं । जो शिवलिंग धारण करेगा वो हिंदु ही होगा । जो कह रहे हैं कि लिंगायत हिंदु नहीं है वे चंद ऐसे लोग हैं जिनके अपने राजनीतिक हित हैं । उनको शायद इससे कुछ राजनीतिक लाभ मिल जाए । उनके तर्क न केवल अवैध हैं बल्कि तर्कहीन और निराधार हैं “ । तोंटदार्य स्वयं भी लिंग धारण करते हैं अपने गले में पहना शिवलिंग दिखाते हुए वे कहते हैं लिंगायत 12 वीं सदी से पहले भी थे लेकिन जगजोति बसवन्ना जिनको बसवैश्वरा स्वामी भी कहते हैं ने वीर शिवा मठों की स्थापना की । एक आम आदमी के लिए लिंगायत लिंगायत हैं और वीरशिवा इससे अलग बिल्कुल नहीं है ।
वोकलिंगा मठों पर जेडीएस की कम होती पकड़ के बीच भाजपा वोकालिंगों को भी साधने की पूरी कोशिश में लगी है । साथ ही अपने परंपरागत वोट बैंक लिंगायतों को भी पूरी तरह खुश रखना चाहती है । यहीं कारण है कि मुसलमानों का चार फीसदी आरक्षण खत्म करके दो दो फीसदी लिंगायतों और वोकालिंगों में बांट दिया । लिंगायतों का वैसे तो उत्तर कर्नाटक में प्रभुत्व है। वैसे राज्य की लगभग 70 विधानसभा सीटों पर लिंगायत निर्णायक भूमिका में रहते हैं । वोकालिंगा बहुल दक्षिण कर्नाटक के बैंगलुरू ,मैसूर और मांडया में भी लिंगायतों की संख्या ज्यादा है । पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 70 लिंगायत बहुल सीटों में से 38 सीटें जीती थीं । भाजपा ने लिंगायतों के दो बड़े नेताओं को टिकट नहीं दिया है। मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा को पहले मुख्यमंत्री पद से हटाया लेकिन बदले में लिंगायत बसबराज बोमई को मुख्यमंत्री बनाया। येदुरप्पा को केंद्रीय समिति में अच्छे पद दिए और येदुरप्पा ने स्वयं ही अब चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी । लेकिन दूसरे कदावर लिंगायत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शैट्टार ने येदुरप्पा जैसी उदारता नहीं बरती। टिकट कटने पर वे कांग्रेस में चले गए और हाथ का साथ लेकर हुबली धारवाड़ से भाजपा उम्मीदवार के मुकाबले मैदान में हैं । शैट्टार भाजपा से बहुत नाराज है उनका कहना भाजपा को लिंगायतों की नाराजगी महंगी पडेगी। कम से कम 22 सीटों पर लिंगायत भाजपा को सबक सिखायेंगें । भाजपा ने 67 लिंगायतों को टिकट दिया है। कांग्रेस ने 51 को और जेडीएस ने 44 को । इस बार के चुनाव परिणाम कर्नाटक की राजनीति को नया मोड़ दे सकते हैं ।
फेसबुक से साभार

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