गोरखपुर दंगे मामले में सीएम योगी को हाईकोर्ट से बड़ी राहत, नहीं चलेगा केस

इलाहाबाद। गोरखपुर दंगे मामले में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बड़ी राहत मिली है। हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब सीएम योगी पर गोरखपुर दंगे मामले में केस नहीं चलेगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गुरुवार को योगी आदित्यनाथ की कथित भूमिका की जांच की अर्जी को खारिज कर दिया है। आपको बता दें कि पहले प्रदेश सरकार ने इस कथित दंगों पर मुकदमा चलाने की इजाजत देने से इनकार कर दिया था। प्रदेश सरकार की ओर से इनकार किए जाने इसकी वैधता को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। योगी आदित्यनाथ और अन्य के खिलाफ दायर की गई इस याचिका का अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल और एजीए एके संड ने प्रदेश सरकार की ओर से याचिका का विरोध किया था।

विरोध के बाद भी इस याचिका पर न्यायमूर्ति कृष्णमुरारी और न्यायमूर्ति एसी शर्मा की पीठ ने सुनवाई की थी और लंबी बहस हुई थी। घंटो बहस करने के बाद 18 दिसंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। यह आदेश उन दंगों के संबंध में गोरखपुर के कैंट पुलिस थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर में शिकायतकर्ता परवेज परवाज और उस मामले में गवाह असद हयात द्वारा दाखिल एक याचिका पर पारित किया गया थाद्ध इस याचिका में यह आशंका जताई गई है कि राज्य पुलिस की इकाई सीबीसीआईडी जो दंगों की वर्तमान में जांच कर रही है संभवत: निष्पक्ष जांच न करें इसलिए अदालत से यह जांच एक स्वतंत्र एजेन्सी को सौंपे जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को 4 मई 2017 को समन जारी करते हुए उन्हें एक दशक पहले गोरखपुर में हुए सांप्रदायिक दंगों से जुड़े सभी दस्तावेज लाने का निर्देश दिया था। इन दंगों में तत्कालीन स्थानीय सांसद और मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आरोपी के तौर पर नामजद किया गया था।

ये है मामला

जनवरी 2007 में गोरखपुर में दंगा भडक़ा था। आरोप है कि उस समय वहां के तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने मोहर्रम के जुलूस के मौके पर दो समुदायों के लोगों के बीच टकराव में एक युवक की मौत होने के बाद कथित रूप से भडक़ाऊ भाषण दिया था। तत्कालीन भाजपा सांसद योगी को तब गिरफ्तार किया गया था और 10 दिनों तक जेल में रखा गया था। कोर्ट से जमानत मिलने पर वह बाहर आए थे। उत्तर प्रदेश सरकार ने सरकार ने एक दशक पुराने दंगे के मामले में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी थी। भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए के तहत दर्ज किए गए भडक़ाऊ भाषण के इस मामले में सुनवाई राज्य सरकार की मंजूरी मिलने पर ही हो सकती थी।

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