इंटरनेट के 25 वर्ष –1250 रू प्रतिमाह में मिलता था 9.6 KBPS का कनेक्शन

15 अगस्त को भारत ने अपना 73वां स्वतंत्रता दिवस मनाया और ठीक इसी दिन 25 वर्ष पूर्व देश में इंटरनेट ने जन्म लिया था। चंद लोगों और सीमित सेवाओं के साथ शुरू हुई इंटरनेट की इस यात्रा में आज 70 करोड़ से अधिक भारतीय जुड़ चुके हैं। 15 अगस्त, 1995 को, विदश संचार निगम लिमिटेड (VSNL) ने औपचारिक रूप से भारत में सार्वजनिक इंटरनेट सेवा शुरू की थी।

भारत इंटरनेट सेवाओं की रजत जयंती मना रहा है। वीएसएनएल के 1995 के रेट कार्ड पर नज़र डाले तो आपको अंदाजा लगेगा कि महज 25 साल पहले इंटरनेट इस्तेमाल करना कितना महंगा सौदा था। आम आदमी की पहुंच से बाहर सिर्फ एलीट क्लास की ही पहुंच इंटरनेट तक थी। 9.6 KB के इंटरनेट कनेक्शन के लिए आम उपभोक्ता को 15 हजार रू सालाना चुकाना होता था यानी 1250 रू प्रतिमाह, वो भी आज से 25 वर्ष पूर्व। कमर्शियल और एक्सपोर्टर के लिए यह कीमत और भी अधिक थी।

जिन ग्राहकों को 9.6 केबीपीएस वाला वीएसएनएल इंटरनेट कनेक्शन बहुत धीमा लगता था, तो उनके लिए कुछ और भी विकल्प थे। वे वीएसएनएल से “लीज लाइन” प्राप्त कर सकते थे, पर इसके लिए उन्हें भारी भरकम रकम चुकानी होती थी। 9.6 केबीपीएस लीज लाइन कनेक्शन दर प्रति वर्ष 2.4 लाख रुपये से शुरू होती थी और 7.2 लाख रू तक जाती थी। वहीं 128 केबीपीएस लीज लाइन कनेक्शन के लिए ग्राहक को सालाना 30 लाख रुपये तक खर्च करने पड़ सकते थे।

9.6 KB कनेक्शन में ग्राहक को सालाना 250 घंटे तक ही कनेक्शन इस्तेमाल करने की छूट थी। 9.6 केबी की स्पीड से सभी 250 घंटे का इस्तेमाल कर ग्राहक मात्र 8.64 जीबी मैटिरियल ही डाउनलोड कर पाता था। इसका मतलब है 15 हजार रू सालाना की कीमत वाले कनेक्शन पर काम केवल 8.64जीबी ही होता था। अगर इसको प्रतिजीबी कीमत में तब्दील करें तो 1जीबी की कीमत 1785 रु बैठती है। लीज लाइन पर प्रतिजीबी की लागत और भी अधिक चुकानी होती थी।

शुरूआती दौर में इंटरनेट काफी महंगा और स्पीड काफी कम थी। स्पीड, इंटरनेट कंजप्शन और कीमतों के मामले में हम काफी आगे निकल आएं हैं। टेलीकॉम क्षेत्र में रिलायंस जियो की एंट्री से इसे नया आयाम मिला है।  डिजिटल क्रांति को रिलायंस जियो ने तेजी से आगे बढ़ाया है। ट्राई के आकंड़ों के मुताबिक रिलायंस जियो स्पीड के मामले में सबसे आगे खड़ा है। आज रिलायंस जियो की औसत डाउनलोड स्पीड जुलाई माह में 16.5MBPS नापी गई थी। उसका पूर्णत 4जी नेटवर्क अच्छी स्पीड बनाए रखता है।  

रिलायंस जियो के599 रु के पॉपुलर प्लान में 168 जीबी की लिमिट मिलती है। जिसकी कीमत 3 रू 56 पैसे प्रति जीबी पड़ती है। साथ ही जियो से जियो फ्री कॉलिंग का फायदा अलग। सस्ते डेटा ने उसकी खपत में भी अच्छा खासा इजाफा किया है। करीब 40 करोड़ ग्राहकों वाले जियो नेटवर्क पर प्रति ग्राहक डेटा खपत 12 जीबी प्रतिमाह से भी अधिक है। याद कीजिए अपने शुरूआती दौर में ग्राहक पूरे साल में 8.64 जीबी ही डेटा खपत कर पाता था।

2जी से शुरू हुआ यह सफर 3जी और 4जी तक पहुंचा है अब देश 5जी के मुहाने पर खड़ा है। पर आज भी करीब 30 करोड़ भारतीय 2जी का इस्तेमाल कर रहे हैं। वे कॉलिंग के लिए पैसा चुकाते हैं जबकि 4जी पर यह किसी हद तक फ्री है। इस डिजिटल विभाजन को खत्म करने का वक्त आ गया है। रिलायंस जियो के मालिक मुकेश अंबानी ने सरकार से जल्द से जल्द पॉलिसी बना कर 2जी के खात्में की बात कही है।    


प्रधांनमंत्री न ने डिजिटल क्रांति का जो सपना देखा था वह पूरा होने के करीब है। पर 2जी उसमें बाधा बन रहा है और इसके मूल में वह कंपनियां है जो आज भी 2जी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझती हैं। अपनी व्यापारिक लाभ को देखते हुए वे 2जी को समाप्त करने और 4जी जैसी तकनीकों में निवेश को तैयार नही हैं। सरकार को जल्द से जल्द इस पर कोई नियम बनाना चाहिए, नही तो 30 करोड़ लोग डिजिटल क्रांति के फायदों से वंचित रह जाएंगे।

सरकार गांवों को इंटरनेट से जोड़ने की योजना पर काम कर रही है। 5 लाख गांवों को इंटरनेट से जोड़ा जाएगा। गांव गांव तक आधार कार्ड, ऑनलाइन टिकटिंग, ऑनलाइन लेनदेन, भीम यूपीआई, सरकारी योजनाएं पहुंचें, इसके लिए इंटरनेट तक पहुंच जरूरी है। पर सिर्फ यह सरकार के दम पर मुमकिन नही, क्योंकि 2जी इस्तेमाल करने वाले 30 करोड़ भारतीयों में से ज्यादतर गांवों में ही रहते हैं। दूरसंचार कंपनियों को 2जी समाप्त कर ग्रामीण इलाकों को तेज इंटरनेट से जोड़ना होगा। तभी भारत सही मायने में डिजिटल क्रांति का दावा कर पाएगा।

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