SCO समिट से पहले मालदीव और श्रीलंका की यात्रा से पीएम मोदी ने चीन-पाकिस्तान को दिया बड़ा संकेत-अनीता चौधरी

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Anita Choudhary , senior journalist, 18 year of extensive in media field, worked with organization like , Newer, Sahara, News Nation , ETV Bharat , expertise in external affair, defence and indian political development.

प्रधानमंत्री मोदी मालदीव और श्रीलंका की अपनी दो दिवसीय यात्रा से भारत लौट चुके हैं । 13-14 जून को संघाई समिट होना है और ठीक उससे पहले प्रधानमंत्री मोदी का अपने दूसरे कार्यकाल में पहली विदेश यात्रा मालदीव और श्रीलंका की रखना कूटनीति के लिहाज से बेहद अहम माना जा रहा है । इस यात्रा से प्रधानमंत्री मोदी ने जहां एक तरफ ‘नेबरहुड फर्स्ट” का संदेश तो दिया ही साथ ही पीएम मोदी अपनी इस यात्रा कर जरिये चीन-पाकिस्तान पर अपरोक्ष रूप से निशाना साधते हुए सामरिक दृश्यटता के कड़े संदेश भी दिए । मालदीव में जहां पीएम मोदी ने आतंकवाद के मुद्दे को उठाते हुए पाकिस्तान पर चोट किये तो वहीं श्रीलंका में अपने दौरे के दौरान आतंकवाद पर तो बात की ही साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने भारत-श्रीलंका के पुराने सांस्कृतिक रिश्ते को याफ दिलवाते हुए ये कहा कि भारत कभी भी अपने पुराने दोस्तों को नही भूलता । इन सब के बीच गौर करने वाली बात ये है कि अभी पिछले साल दिसंबर में जी ईस्टर के मौके पर श्रीलंका के चर्चों में सीरियल आतंकी हमले और ब्लास्ट हुए थे जिसमें 250 से ज्यादा लोग मारे गए थे । इस हमले के बेस्ड भारत सबसे पहले श्रीलंका की मदद को आगे आया था , श्रीलंका की जॉच एजेंसियों के साथ भारतीय जॉच एजेंसी एनआईए मिल कर काम कर रही है और इस हमले के बाद भारत की तरफ से प्रधानमंत्री मोदी श्रीलंका जाने वाले पहले विदेशी मेहमान है ।
लेकिन प्रधानमंत्री मोदी की दूसरी पारी में मालदीव और श्रीलंका की पहली विदेश यात्रा से एक सवाल जो कौंधता है वो ये की आखिर मालदीव और श्रीलंका ही क्यों । वो भी SCO समिट से ठीक पहले । संघाई समिट में चीन रूस और पाकिस्तान के साथ काजिकस्तान, किरकिस्तान भी इसका मेंबर है , चीन को हमेशा साधने की चाह रखने वाले पीएम मोदी ने अपनी पहली यात्रा के चीन को क्यों नही चुना । चीन का तो मसूद पर बैन को लेकर हामी भरने का पीएम मोदी पर अहसान भी है वो भी आम चुनाव के दौरान जो बीजेपी के लिए वोट बटोरने के लिए तुर्रम का इक्का भी साबित हुआ ।
अगर मोदी सरकार के पहले कार्यकाल पर गौर फरमाएं तो पूरा पांच साल विदेश नीतियों की उपलब्धियों से भरा रहा और अगर मोदी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दूसरे कार्यकाल के शपथ ग्रहण से ही जाए तो दूसरी पारी भी विदेश नीति की कूटनीतिक नीतियों से लबरेज नज़र आएगा ।
मोदी सरकार के विदेश नीति की झलक शपथ ग्रहण के निमंत्रण में ही देखी जा सकती है । पिछली बसर साल 2014 में सार्क देशों को बुला कर जहां शपथ ग्रहण में पीएम मोदी ने पाकिस्तान की भी मेज़बानी की थी वहीं इस बार सार्क देशों की जगह बिम्सटेक कंट्रीज़ को आमन्त्रित कर बड़े ही कूटनीतिक तरीके से प्रधानमंत्री मोदी ने पाकिस्तान को दरकिनार कर दिया ।
अब सबसे पहले बात करते हैं कि आखिर पहली यात्रा मालदीव और श्रीलंका ही क्यों ? तो  बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी ने बिम्सटेक देशों को शपथ ग्रहण समारोह में निमंत्रण दे कर भले ही कूटनीतिक तरीके से पाकिस्तान को तो अलग-थलग कर दिया , मगर इस स्ट्रैटेजी में मालदीव और अफगानिस्तान भी छूट गया । अब भारत – अफगानिस्तान के मीठे रिस्ते तो जग जाहिर है । अफगानिस्तान के विकास में भारत का अहम रोल है । भारत अफगानिस्तान के विकास के अलग अलग प्रोजेक्ट्स चला रहा है और अकेले करीब 3 मिलियन डॉलर अफगानिस्तान में इन्वेस्ट करने वाला विश्व का पांचवां देश है । मगर भारत और मालदीव के बीच कुछ सालों से स्थिति तकरार की सी बनी हुई है ।
मालदीव की अगर बात करें तो तकरीबन 5 लाख की आबादी वाला मालदीव भले ही  एशिया का सबसे छोटा देश हो जिसके पास दुनिया में सबसे निचला देश होने का रिकॉर्ड है । ऊंचे नीचे नीले समुंद्री तरंगों वाला हिन्द महासागर पर बसा मालदीव का फैलाव भारत के लक्ष्यद्वीप टापू तक है और जो श्रीलंका के दक्षिण-पश्चिमी दिशा से करीब सात सौ किलोमीटर दूरी पर है । बहुत ही छोटा देश मगर सामरिक दृष्टि से भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण । जिस देश मे चीन अपने पांव पसारने के लिए घात लगाए बैठा है और मुस्लिम बाहुल देश होने के नाते पाकिस्तान हर वक़्त इसे भारत के खिलाफ इस्तेमाल करने की फ़िराक में लगा रहता है । जिस देश मे  लगभग 30 हज़ार भारतीय  भी बसते हैं  । पिछले कुछ समय से चीन लगातार  हिन्द महासागर पर अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है । यही नही चीन भारत के पड़ोसी मुल्कों में अपने स्ट्रेटेजिक और डिफेंसिव स्टैब्लिशमेंट को भी बढ़ा रहा है ,  जिससे  भारत की
सीमाओं पर अपनी पैनी नज़र बनाये रख सके । श्रीलंका में चीन के कई डिफेंसिव राडार और सर्विलेंस स्टैब्लिशमेंट हैं तो श्रीलंका के समुद्री सीमाओं से लगे चीन की पनडुब्बियां भी तैरती रहती हैं । चीन के इस खेल में उसका भरपूर साथ दे रहा है पाकिस्तान । पहले ही चीन श्रीलंका के जरिये हिन्द महासागर पर अपने पांव पसार रहा था और अब चीन की नज़र मालदीव के जरिये भारत के समुद्री रास्तों पर रोड़ा अटकना है । भारत की ये मालदीव यात्रा चीन की इसी  बदनीयती पर लगाम लगाने की एक कूटनीतिक चाल माना जा रहा है ।
मालदीव की अगर बात करें तो कभी भारत का बेहद करीब माना जाने वाला मुस्लिम बाहुल देश मालदीव के साथ भारत की दूरियां  धीरे-धीरे बढ़ रही थीं । खास कर साल 2012 के बाद रिश्तों की खटास और भी खुल कर सामने आईं जब पाकिस्तान मालदीव ने आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान का बचाओ किया  । दोनों देशों के बीच भड़कती आग में घी का काम किया साल 2018 में मालदीव के जनरल इलेक्शन के दौरान बीजेपी के राज्यसभा सांसद सुभ्रमान्यम स्वामी का वो बयान जिसमें उन्होंने कहा कि इस बार अगर मालदीव में सत्ता परिवर्तन नही होता है तो भारत को मालदीव पर आक्रमण कर देना चाहिए । हालांकि उस वक़्त बीजेपी सहित भारत सरकार ने स्वामी के उस बयान से किनारा कर लिया था । उस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी मालदीव की नई सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में जाकर घाव पर मरहम लगाने की भी कोशिश की । लेकिन पाकिस्तान को अलग थलग करने की जुगत में शपथ ग्रहण समारोह में कहीं न कहीं मालदीव भी छूट गया । पीएम मोदी की ये मालदीव यात्रा उसी कसक की भरपाई मानी जा रही है । यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी ने इस यात्रा के दौरान भारत- मालदीव रिश्ते को और मजबूत बनाने के लिहाज़ से मालदीव को सौगातों की फ़ेहरिश्त दे आये हैं   ।  इन तोहफों में फेरी सेवाओं से लेकर बंदगाह और नए क्रिकेट स्टेडियम का तोहफा तो है ही  इसके अलावा पीएम मोदी ने मालदीव में दो नए प्रोजेक्ट्स का शिलान्यास भी किया है। जिसमें एक कोस्टल रडार प्रोजेक्ट है और दूसरा  archipelago’s डिफेंस फोर्सेज के लिए ट्रेनिंग सेंटर का शिलान्यास है। बदले में मालदीव ने प्रधानमंत्री मोदी को मालदीव का सबसे बड़ा सम्मान  “निशान इज्जुद्दीन” से नवाज़ा,विदेशी प्रतिनिधियों को दिया जाने वाला मालदीव का सबसे बड़ा सम्मान है।
कुटनीतिकारों का मानना है कि दक्षिण एशिया में चीन-पाक-मालदीव का त्रिकोण बना हुआ है जिसे तोड़ना भारत के लिए बेहद जरूरी है । चीन , मालदीव के करीब आता जा रहा है और  मालदीव में आईएस भी पनप रहा है । पड़ोसी देशों में मालदीव पाकिस्तान के बाद दूसरा यैसा देश है जो मुस्लिम बाहुल देश है और पाकिस्तानी की सुर में सुर मिलता रहा है । यैसे में पीएम मोदी की इस यात्रा के दौरान भारत की यही कोशिश रही कि मालदीव और भारत के रिश्ते को मजबूती देते हुए पाकिस्तान को और कमजोर किया जाए और मालदीव के जरिये हिन्द महासागर में चीन के पसरते पांव को रोका जाए ।
बता दें कि 13-14 जून 2019 को शंघाई कॉर्पोरेशन ऑर्गनाइजेशन, एससीओ किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में होनी है । जिसमे पाकिस्तान और चीन भी हिस्सा लेने जा रहा है । इस 2 दिवसीय समिट के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग के साथ तो द्विपक्षीय होनी है जिसमें इकोनॉमिक कॉरिडोर और एनएसजी में भारत की सदस्यता पर चीन के रुख को लेकर भी चर्चा हो सकती है । मगर भारत की तरफ से ये साफ कर दिया गया है कि  संघाई समिट के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक पीएम इमरान खान  के बीच मुलाकात का कोई कार्यक्रम नहीं है। गौर करने वाली बात ये है कि इमरान खान पिछले साल अगस्त में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने तब से लेकर अब तक प्रधानमंत्री मोदी और इमरान खान की कोई  मुलाकात नहीं हुई है । हालांकि पीए मोदी के पद संभालने के बाद से ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री और प्रधसनमंत्री इमरान खान की तरफ से बात – चीत की इच्छा जताई जा चुकी है , मगर भारत ये साफ कर चुका है कि आतंकवाद की बीच कोई भी बात या मुलाकात संभव नही है। मगर देखना ये होगा कि आखिर संघाई समिट में जब दोनों नेता आमने सामने आते है तो नज़रो की इस मुलाकात में बात किस हद तक आगे बढ़ती है ।
अनिता चौधरी

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