“मेरे बच्चों” शायर : आमिर किदवई की कलम से

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मेरे अगवा पे भी ख़ामोश बैठे हो

तुम्हारा ख़ून जैसे सर्द होता जा रहा है

लहू में अब कोई गर्मी नहीं शायद

मुहब्बत अब नहीं बाक़ी रही है

जुनूं के पैर में बेड़ी पड़ी है

सुकून वा अमन जैसे कहानी है

अंधेरे रक्स में डूबे हुए हैं

हवाएं चीखती फिरती हैं सड़कों पर

सदाए दर्द फैली है फिज़ा में

मेरे बच्चों ये आंसू पोंछ डालो

उठो और वक़्त की जंजीर काटो

नजर आए जहां वहशी दरिंदे मार डालो

लहू मेरे यह चूसे जा रहे हैं

मेरी सांसें उखड़ती जा रही हैं

अब इस माहौल से मुझको निकालो

मुझे डर लग रहा है वहशियों से

तुम्हारी मां हूं “भारत मां ” तुम्हारी

मुझे इन खूनी पंजों से छुड़ा लो

मेरे बच्चों दरिंदों से बचा लो

 

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आमिर किदवई उर्दू के प्रसिद्ध शायर हैं और कुवैत में पिछले तीस वर्षों से अध्यापन कार्य कर रहे हैं।

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