राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का प्रधानमंत्री मोदी ने किया उद्घाटन

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अर्पित जैन
“यदि अपना शौर्य सिद्ध करने से पूर्व मेरी मृत्यु आ जाये तो मुझे कसम है कि मैं अपनी मृत्यु को भी मार दूंगा ..” कैप्टन मनोज कुमार पांडेय, परमवीर चक्र …
भारत के वीर सैनिक जिन्होंने इस पवित्र भूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी , उन महान आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने आज इंडिया गेट परिसर में स्थित राष्ट्रीय युद्ध स्मारक का उद्घाटन किया .भारतीय सेना ने इस स्मारक का प्रस्ताव १९६० में रखा था , जिसका निर्माण अब जाकर इस सरकार के द्वारा संभव हुआ .
इस समारक में उन २५,९४२ सैनिको को नमन किया जायेगा जिन्होंने १५ अगस्त १९४७ के बाद से देश के लिए प्राण न्योछावर किये हैं. आज कृतज्ञ राष्ट्र ने वीरगति को प्राप्त हुए शूरवीरों को यह स्मारक समर्पित किया .
४० एकड़ में फैले राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के मध्य में अमर चक्र है, जिसके मध्य में १५.५ मीटर ऊँचा केंद्रीय स्मारक स्तम्भ है. इसी स्तम्भ के तल में अनंत ज्योति स्थापित होगी , जिसे स्वयं आज मोदी जी ने प्रज्वल्लित किया .
इस स्मारक में ” परम योद्धा स्थल ” भी स्थापित है जो देश के सबसे बड़े वीरता पुरुस्कार “परमवीर चक्र” धारकों को समर्पित है .इसके अलावा इस स्मारक में वीरता चक्र भी है जिसकी छह विभिन्न दीवारों पर अलग अलग युद्धों कि शौर्य गाथा अंकित होगी.इसका अलावा यहाँ स्थापित त्याग चक्र भी वीरों को नमन करेगा.
प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्व सैनिकों और देशवासियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि “आप भूतपूर्व नहीं , अभूतपूर्व है “.. उन्होंने कहा कि सिर्फ युद्धकाल में ही नहीं , हमारे सैनिक प्राकृतिक आपदाओं और अन्य राष्ट्रीय विपदाओं में भी सबसे आगे रहते हैं .. उन्होंने लता मंगेशकर के ए मेरे वतन के लोगों गीत का उदाहरण देकर माहौल को भावुक भी किया .. साथ ही उन्होंने घोषणा की कि सैनिको के लिए 3 सुपर स्पेशलिटी बनाए जाएंगे। ” हम जिए भी तो तिरंगे के लिए और मरे भी तो तिरंगे के लिए ” यह कहकर उन्होंने अपनी बात को समाप्त किया ..
इस अवसर पर रक्षामंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण भी उपस्थित रहीं . उन्होंने कहा कि आज देश को एक और तीर्थस्थान मिल गया है. उन्होंने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक को बनाने वाले डिज़ाइनर , वास्तुकार और इंजीनियर को भी बधाई दी. राष्ट्रीय युद्ध स्मारक के प्रधान वास्तुकार श्री योगेश चन्द्रहासन कहते है कि ” इस स्मारक कि संपूर्ण धारणा है कि हम मृत्यु का शोक नहीं मनाते बल्कि उन वीर सैनिकों कि शहादतों को जीते हैं और उनके शौर्य को नमन करते है” .

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