किसान आंदोलन के नाम पर पाप कर्म ( अय्याशी)-संजय स्वामी

 संजय स्वामी, प्रवक्ता राजनीति विज्ञान  

संजय स्वामी,प्रवक्ता राजनीति विज्ञान

किसान आंदोलन के नाम पर घृणित कार्यों की एक श्रंखला लगातार चल रही है, वो बात अलग है कि प्रभावी नेताओं के द्वारा बहुत सारी खबरें दबा दी जाती हैं। इक्का-दुक्का खबर ही आम हो पाती है। गणतंत्र दिवस पर किसानों को उकसाकर दिल्ली में किसान आंदोलन के नाम पर नंगा नाच कराने वाले नेता खुलेआम घूम रहे हैं। और तो और पिछले महीने हुए पांच राज्यों के चुनाव में चुनाव प्रचार करते हुए दिखाई दिए।साढ़े तीन महीने हो गए पर आज तक किसी एक नेता को पुलिस जेल में नहीं डाल पाई जिनके नेतृत्व में ये सारे षड्यंत्र चल रहे हैं,सख्त करवाई तो बहुत दूर की बात है।जग जाहिर है, किसान आंदोलन को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है।

वैसे तो प्रारंभ से ही किसान आंदोलन विवादास्पद रहा है,भले लोग पहले राउंड में ही आंदोलन में छिपी शातिर मनशा को भांप के आंदोलन से अपना हाथ खींच वापस चले गए।

आंदोलन के नाम पर मौज मस्ती की खबरें सोशल मीडिया पर खूब आती रही अनेक वीडियो तथा चैट प्रचारित होते थे समाज इनको अनदेखा करता रहा। किसान आंदोलन के नेता तथा उनके समर्थक राजनीतिक दल इनको आंदोलन के खिलाफ दुष्प्रचार बताते थे। जबकि वीडियो में किसान आंदोलन में सम्मिलित गांव से आए हुए लोग स्पष्ट कहते हुए दिखाई देते थे कि हम तो मौज मस्ती करने आते हैं,दारू पीते हैं,शाही पनीर, मुर्गा खाते हैं,पांच सात दिन मौज मस्ती करते हैं वापस चले जाते हैं। ऐसे लोगों के फोटो सोशल मीडिया पर आते रहे।विडंबना, आंदोलन के नेता एकतरफा उनको दबाते रहे। मीडिया भी केवल नेताओं के चेहरे दिखाता रहा और केंद्र सरकार के विरुद्ध जितनी कटु प्रचार सामग्री उनको मिलती रही, प्रसारित करता रहा। अंदर की तह तक जाने का मीडिया ने बहुत कम प्रयास किया।

अब युवती के साथ दुष्कर्म की इस खबर से स्पष्ट हो गया कि किसान आंदोलन की अंतड़ियां, लीवर,किडनी सब खराब है।यह तो महज एक खबर है जो सामने आ पाई है। इसको भी दबाने का पूरा प्रयास पिछले दस दिनों में चलता रहा। बहुत संभावनाएं हैं, और भी अनेक घटनाएं घटी होंगी परंतु ग्रामीण संस्कृति ऐसी है कि चुपचाप सह लेते हैं। बदनामी के डर से घटनाओं को दबा देते हैं।आपसी समझ से बड़े बूढ़ों की बात मान लेते हैं। इस घटना से स्पष्ट हो गया है कि किसान आंदोलन में केवल महिलाओं का उपयोगी नहीं किया जा रहा अपितु शोषण और दुराचार भी किया जा रहा है। आखिर ये कैसा किसान आंदोलन है?

किसान आंदोलन के नेताओं के मंसूबे शुरू से ही संदिग्ध हैं केवल अपनी ही बात को सही मानना यह आंदोलन को सही दिशा में ले जाने की मानसिकता नहीं कहलाती। नेताओं में कोई एकजुटता नहीं।आंदोलन का कोई एक नेता नहीं,सभी स्वयंभू नेता है। सबकी अपनी अपनी डफली अपना अपना राग। हां आंदोलन आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध है। हर प्रकार की सुविधाएं आंदोलन स्थल पर प्रारम्भ से मुहैया कराई गई हैं।

आज आंदोलन के नेताओं पर प्रश्न चिन्ह तो खड़ा होता है कि जब उन्होंने आंदोलन में महिलाओं, बुजुर्गों को सम्मिलित किया, तो उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी आखिर किसकी है? ऐसी गड़बड़ियां पूर्व में जाट आरक्षण के नाम पर हुए हरियाणा के आंदोलन में भी हुई थी।जिसमें महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, बलात्कार, लूटपाट की घटनाएं हुई थी,कुछ सामने आ पाई थी और कुछ दबा दी गई थी।

दैनिक जागरण की टीम के इस साहसिक कार्य के लिए बहुत-बहुत आभार जिसने किसान आंदोलन के बैनर तले हो रहे कुकृत्य को आम जनता के सामने प्रारंभिक रूप में विस्तार से रखा। अभी तो बहुत कुछ आना बाकी है।बंगाल की बेटी कहलाने वाली ममता बनर्जी शायद ही इस बंगाल की बेटी की हत्या पर न्याय दिलाने के लिए सामने आए। सहज भाव से आंदोलन में शामिल होने वाली एक युवती के साथ इस तरह का कृत्य घोर निंदनीय है। इस अमानवीय निकृष्ट कृत्य में सम्मिलित सभी अपराधियों को कठोर से कठोर सजा फास्टट्रैक के द्वारा शीघ्र से शीघ्र मिलनी चाहिए तथा ऐसी घटनाओं को दबाने वाले आंदोलन जीवी नेताओं पर भी एफआईआर होनी चाहिए। जिनकी सरपरस्ती में अपराधी आंदोलन शब्द की गरिमा को तार-तार कर रहे हैं और किसान आंदोलन की छत्रछाया में बेखौफ अपराधों को अंजाम दे रहे हैं।

 

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