संजय स्वामी की पुस्तक ‘जीवन-पथ’ का विमोचन

दिल्ली. ‘जीवन-पथ’ पुस्तक जन-मानस में देशभक्ति की भावना के साथ भारतीय परिद्रश्य में सामाजिक विकास का संचार करेगी। यह बात रविवार को सरस्वती वंदना और दीप प्रज्वलन के उपरांत शाहदरा स्थित श्री राम सत्संग भवन में आयोजित पुस्तक विमोचन समारोह की अध्यक्षता कर रहे प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय, कुलपति, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली ने कही। प्रो पाण्डेय ने कहा कि इंदिरा पुरस्कार और डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन सम्मान से सम्मानित राष्ट्रवादी चिंतक-विचारक श्री संजय स्वामी, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, के साथ मिलकर संपूर्ण भारत राष्ट्र में पर्यावरण के प्रति संचेतना का संचार कर रहे हैं.

कुलपति महोदय ने पुस्तक की चर्चा करते हुए बताया कि हमारी जीवन यात्रा हमारे पूर्वजों द्वारा, हमारी भारतीय संस्कृति के द्वारा और इस महान देश की ऋषि मुनियों की परम्परा द्वारा प्रदर्शित की गयी है। मानव होना कर्म है और कवि होना सौभाग्य और इन दोनों में भाषा का अभिन्न महत्व है। हर भारतीय तप और त्याग से भरा हुआ है। पुस्तके ही इंगित करती हैं और पुस्तके ही बताती हैं कि कैसे हम अपने जीवन चरित्र को उज्जवल रखे।

प्रो.अवनीश कुमार अध्यक्ष वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग भारत सरकार ने बताया कि किस प्रकार गुरुकुल से हम संस्कारों की शिक्षा ग्रहण करते रहे हैं। भारतीय जीवन मूल्यों के साथ भविष्य की किसी भी चुनौती का सामना सुगमता से और सरलता से साथ किया जा सकता है पुस्तक में विद्यार्थियों के लिए संस्कार एवं अनुशासन की बातें सहजता से कहीं गई है। शिक्षा समाज एवं राष्ट्र की सेवा के लिए होनी चाहिए।

पूर्वी दिल्ली नगर निगम के नेता सदन  प्रवेश शर्मा ने बताया कि यह पुस्तक संजय स्वामी जी की जीवन कथा का वृतांत प्रस्तुत करती है। यह सामाजिक कार्यों का एक ऐसा विवरण है जो प्रारंभ से ही हमें निरंतर प्रेरित करता है। संजय जैसा व्यक्ति जीवन में जब संघर्ष की राह चलता है, वह ही संसार को बदलता है।साहित्य प्रेमी मंडल के तत्वावधान में पुस्तक विमोचन का यह कार्यक्रम आयोजित किया गया.

डॉ. महेश कौशिक द्वारा लेखक परिचय दिया गया। लेखक श्री संजय स्वामी जी अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में 22 वर्षों में अनेक दायित्वों का निर्वहन करते हुए प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं एवम वर्तमान में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के पर्यावरण शिक्षा के राष्ट्रीय संयोजक हैं और पर्यावरण चिंतन के साथ शिक्षा को आगे बढ़ा रहे हैं। इस कार्यक्रम के दौरान डॉ. प्रवीण शुक्ला जी ने बताया कि पुस्तके बच्चों के लिए एक अर्थ का काम करती हैं. हम गीता या रामचरितमानस के साथ-साथ संजय स्वामी जी को इस पुस्तक को भी अपने घर के मंदिर में रख सकते हैं. डॉ. प्रवीण शुक्ला जी ने कहा कि संजय भाई पर्यावरण की सिर्फ बातें नहीं करते, अपितु पर्यावरणमयी जीवन जीते हैं। संजय स्वामी जी की यह पुस्तक विद्यार्थी की दिनचर्या पर केंद्रित है। डॉ.प्रवीण शुल्क ने बताया कि भारतवर्ष में रहकर भाषा और शब्दों की ताकत को नकारा नहीं जा सकता है। अगर हम रुक जाएंगे तो फिर आगे न बढ़ पाएंगे।

पुस्तक लोकार्पण के अवसर पर लेखक संजय स्वामी ने सिद्धांत व व्यवहार को प्रत्यक्ष प्रयोग से अनुभव कराया। उन्होंने कहा कि बच्चों को टॉफी बिस्कुट के स्थान पर अच्छी पुस्तकें उपहार स्वरूप दें। विद्यार्थियों को पुरस्कार के रूप में दें।अच्छी पुस्तकें अभिभावक स्वयं भी पढ़ें विचार- मंथन करें फिर बच्चों को पढ़ने के लिए दें। आज हमारे बच्चे सामान्य हिंदी भी नहीं समझ पा रहे यह निश्चित रूप से चिंता की बात है। स्वामी विवेकानंद ने कहा है की शिक्षा का मूल उद्देश्य व्यक्ति में चारित्रिक गुणों और नैतिक मूल्यों का विकास करना है। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो बालक के जीवन से अवगुणों का परिमार्जन कर उसके मस्तिष्क में निरंतर जीवन मूल्यों का रोपण करती रहे। निश्चित रूप से आज जिस पुस्तक का विमोचन हो रहा है वह हमारी युवा पीढ़ी को संस्कारित करेगी।

पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम में छात्रों गोपाल और कार्तिकेय द्वारा पुस्तकके प्रारूप की विवेचना प्रस्तुत की गई। गोपाल ने बताया कि यह पुस्तक जीवन के आधार को बताती है, साथ ही मातृभाषा को हमेशा सुधारने की आवश्यकता पर बल के साथ-साथ, अनुशासन और यज्ञ का महत्व भी यह पुस्तक बताती है। कार्तिकेय ने बताया कि इस पुस्तक के माध्यम से हमने यह सीखा कि किस प्रकार स्वामी विवेकानंद जी के चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास के साथ-साथ हम भारतीय शिक्षा के मूल में जा सकते हैं और समाज के हित में कार्य कर सकते है।नैतिक मूल्यों का प्रदर्शन करती यह पुस्तक चाणक्य नीति से भी प्रेरित है, स्वच्छता की ओर भी इंगित करती है और अभिभावक संतान का पालन पोषण कैसे करें यह भी बताती है।

कार्यक्रम का समापन वक्तव्य राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नवीन शाहदरा विभाग के सह संघचालक श्री अरुण शर्मा जी द्वारा हुआ। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री निर्मल जैन, महापौर पूर्वी दिल्ली नगर निगम, विशिष्ठ अतिथि श्री जितेंद्र महाजन, विधायक, मुख्य वक्ता डॉ. प्रवीण शुक्ला, प्रसिद्ध साहित्यकार, विशिष्ट वक्ता प्रो. अवनीश कुमार, डॉ. महेश कौशिक, अजय शर्मा, डॉ. संदीप कुमार उपाध्याय,सुभाष शर्मा, डॉ. इंद्र जीत सिंह डॉ. महेश कौशिक, आदेश शर्मा जी,वी. के जैन, अर्जुन जैन, दिनेश वत्स, मुकेश बाबू, आदेश शर्मा, पीके आजाद, साहित्य प्रेमी मंडल की तरफ से निर्दोष, अनिल शर्मा आदि उपस्थित रहे। समारोह का कुशल संचालन कवि प्रवेश शर्मा ‘दिवाकर’ ने किया।

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