बिहार चुनाव डायरी- 5 जुलाई- किसने कहा तेजस्वी को फेलस्वी और जेडीयू को जनादेश का डाका अनलिमिटेड?

 रवि पाराशर

पांच जुलाई को राष्ट्रीय जनता दल का स्थापना दिवस होता है। बिहार की राजधानी पटना में लगाए गए एक पोस्टर से साफ़ हो गया है कि आरजेडी के विरोधियों ने अब लालू यादव के युग को पूरी तरह से समाप्त मान लिया है। पटना में आरजेडी के 24वें स्थापना दिवस पर सुबह-सुबह लोगों ने पोस्टर देखे, जिनमें तेजस्वी यादव की बड़ी तस्वीर है और उस पर बड़े अक्षरों में आरजेडी के लिए लिखा गया है- राष्ट्रीय जालसाज़ दल और तेजस्वी के लिए लिखा गया है- धनकुबेर फेलस्वी यादव। लालू यादव ने 23 साल पहले राष्ट्रीय जनता दल बनाया था, इस लिहाज़ से प्रतीक के तौर पर पोस्टर में तेजस्वी की 24 कथित काली संपत्तियों का ब्यौरा भी दिया गया है। बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी सरगर्मियां तेज़ हैं। आरजेडी और तेजस्वी के ख़िलाफ़ ये पोस्टर भी चुनावी गहमा-गहमी की वजह से लगाया गया है। इससे एक बात और साफ़ हो रही है कि सत्ताधारी गठबंधन बिहार चुनाव में भ्रष्टाचार को ही मुख्य मुद्दा बनाएगा। नीतीश कुमार ने इसी मुद्दे पर आरजेडी को सरकार निकाला देकर बीजेपी से हाथ मिलाया था।

आख़िर किसने लगाए पोस्टर?
पोस्टर का तल्ख़ जवाब आरजेडी ने भी दिया। आरजेडी की तरफ़ से जेडीयू के लिए नया नाम जनादेश का डाका अनलिमिटेड जारी किया गया। पार्टी ने नरेंद्र मोदी का बयान भी नीतीश को याद दिलाया कि किस तरह उन्होंने अपनी एक रैली में जेडीयू को जनता का दमन, उत्पीड़न कहा था। पोस्टर वॉर पर कांग्रेस ने भी जेडीयू पर संस्कार विहीन होने का आरोप लगाया है। वहीं सत्तारूढ़ गठबंधन की ओर से बयान आया है कि जिसने भी तेजस्वी को फेलस्वी घोषित किया है, वो उसके आभारी हैं। ज़ाहिर है कि जेडीयू कहना चाहती है कि तेजस्वी के पोस्टरों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। जो भी हो, इस पोस्टर हमले से तेजस्वी का मूड ख़राब हुआ होगा और महंगाई के मसले पर केंद्र सरकार के विरोध में साइकल चलाते वक़्त उनके मन में इस बात को लेकर ख़ासी उथल-पुथल रही होगी कि उन्होंने लालू-राबड़ी के 15 वर्ष के शासन काल के लिए माफ़ी भले ही मांग ली हो, लेकिन विपक्षियों को ये बात अब भी याद है कि लालू यादव की आरजेडी की सालगिरह 5 जुलाई को होती है। वैसे ये भी हो सकता है कि जनता दल यूनाइटेड, भारतीय जनता पार्टी और लोक जनशक्ति पार्टी को शायद ये बात याद नहीं होगी, लेकिन जेडीयू में शामिल होने वाले आरजेडी के नेताओं ने उन्हें ये याद दिलाया हो। तथ्य ये भी है कि 5 जुलाई, 1997 को आरजेडी के उदय में तत्कालीन लोकसभा सांसद रघुवंश प्रसाद सिंह का भी महत्वपूर्ण हाथ था और आज वे आरजेडी से इस्तीफ़ा देकर अपने अगले क़दम की उधेड़बुन में लगे हुए हैं। एक अनुमान ये भी हवा में तैर रहा है कि हो सकता है कि आरजेडी और तेजस्वी के ख़िलाफ़ पोस्टर उनके ही बग़ावतियों की सोच का नतीजा हो। बहरहाल, रविवार की सुबह-सुबह पटना में सियासी चस्का रखने वालों में चाय की चुस्की के साथ-साथ पोस्टर की अच्छी-ख़ासी चर्चा हुई। उसके बाद केंद्र सरकार के विरोध में पूरे बिहार में पांच किलोमीटर साइकल चलाने वाले आरजेडी के हर कार्यकर्ता के मन में भी यही सवाल था कि आख़िर तेजस्वी के ख़िलाफ़ पोस्टर लगाए किसने हैं?
आरजेडी का सियासी सफ़र


आरजेडी के स्थापना दिवस पर आइए संक्षेप में जान लेते हैं पार्टी के सियासी सफ़र के बारे में। 5 जुलाई, 1997 को जनता दल तोड़ने वाले लालू यादव ने आरजेडी का गठन करते वक़्त कहा था कि उनकी पार्टी समाजवाद का नारा बुलंद करेगी। लेकिन अब हम जानते हैं कि उनकी पार्टी ने ‘पारिवारिक समाजवाद’ में ही यक़ीन किया। रघुवंश प्रसाद समेत लोकसभा के सात तत्कालीन सांसदों ने लालू यादव का नेतृत्व स्वीकार कर हाथों में लालटेन थामी थी। अगले साल यानी 1998 में आरजेडी ने बिहार में लोकसभा की 17 सीटें जीतीं, लेकिन 1999 में कुछ ख़ास कमाल नहीं किया। तभी साफ़ हो गया था कि आरजेडी बिहार राज्य तक ही सिमट कर रह जाने वाली है। अगले आम चुनाव 2004 में हुए, तो लालू चमक गए। आरजेडी को 24 लोकसभा सीटों पर जीत मिली और लालू यादव देश के रेलमंत्री बन गए। 15वीं लोकसभा में वे बिहार की सारण सीट से जीत कर पहुंचे। उसी दौरान उन्हें चारा घोटाले में पांच साल की सज़ा सुनाई गई। अक्टूबर, 2013 में उन्हें जेल जाना पड़ा। दो महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें ज़मानत दे दी। वर्ष 2018 में उन्हें चारा घोटाले के एक और मामले में फिर 3.5 साल की सज़ा सुनाई गई। सज़ा मिलने की वजह से उनके नाम एक रिकॉर्ड भी बना। लोकसभा की सदस्यता बीच में ही गंवाने वाले वे पहले सांसद बने।
5 जुलाई, 1997 में आरजेडी के गठन से पहले क़रीब सात साल तक लालू बिहार के मुख्यमंत्री रहे। 1990 में पहली बार उन्होंने सीएम पद संभाला। 1995 में भी आरजेडी जीती और वे दूसरी बार सीएम बने। लेकिन चारा घोटाले में फंसने के बाद जेल जाने से पहले उन्होंने आरजेडी बनाकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी के हाथ सत्ता की चाबी सौंपने का इंतज़ाम कर दिया। राबड़ी 26 जुलाई, 1997 को सीएम की कुर्सी पर बैठीं। वे 9 मार्च, 1999 को दोबारा मुख्यमंत्री बनीं और उनका तीसरा कार्यकाल 11 मार्च, 2000 में शुरू हुआ, जो पूरे पांच साल यानी 6 मार्च, 2005 तक चला।

साल 2015 में आरजेडी ने जेडीयू से गठबंधन में चुनाव लड़ा और 80 सीटें जीती। जेडीयू को 71 और गठबंधन की तीसरी पार्टी कांग्रेस को 27 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई। लालू के छोटे बेटे उप-मुख्यमंत्री बनाए गए और बड़े बेटे को राज्य की सेहत सुधारने का ज़िम्मा मिला। लेकिन 2017 की जुलाई में गठबंधन टूट गया और नीतीश ने बीजेपी के साथ सरकार बना ली। अब 2020 के आख़िर में बिहार में फिर चुनावी रणभेरी बजने वाली है।

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