भारतीयता के नायक : वीर सावरकर-डॉ.आशीष कंधवे

डॉ.आशीष कंधवे कवि एवं सामाजिक चिंतक

डॉ.आशीष कंधवे, कवि एवं सामाजिक चिंतक
वीर सावरकर जयंती पर विशेष
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लेखक एवं इतिहासकार वीर सावरकर की आज जयंती है । हमेशा से भारतीय ऐतिहासिक परिदृश्य में वीर सावरकर को एक विवादास्पद व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया । पूर्व की सरकारों ने तो उन्हें देशद्रोही तक कहने से नहीं बच पाई परंतु ऐसा नहीं है और न ही था ।
भारत का इतिहास 90% असत्य पर आधारित है जो नहीं हुआ उसे लिखा गया और जो हुआ उससे भारत के समृद्ध समाज को दूर रखा । चाहे वह महाराणा प्रताप की गाथा लिखनी हो या फिर शिवाजी की । चाहे भगत सिंह की गाथा लिखनी हो या फिर चंद्रशेखर की । विशेषकर अगर किसी हिंदू नायक की गाथा लिखनी हो तो इतिहासकारों ने घोर अन्याय किया है । इतिहासकारों ने भारत के एक और नायक सुभाष चंद्र बोस के साथ क्या व्यवहार किया है यह बताने की जरूरत नहीं है ।
एक आम भारतीय अपने नायकों पर, अपने विचारों पर अपने धर्म पर, अपने संस्कृतिक विरासत पर, अपनी बौद्धिकता पर, अपने अध्यात्मिक उत्कर्ष पर गर्व न कर सके एक सुनियोजित षड्यंत्रों के अंतर्गत इसे अंजाम दिया गया। इस बात से तो आप सभी लोग सहमत होंगे कि झूठ को अगर हजार बार बोला जाए लाख बार पढ़ाया जाए और करोड़ों बार लिखा जाए तो वह सत्य से भी ज्यादा महत्वपूर्ण और ऑथेंटिक हो जाता है ।
इसी कड़ी में आधुनिक इतिहास में अगर किसी व्यक्ति को इतिहासकारों ने बुरी तरह से कुचल दिया या जीते जी उसके व्यक्तित्व की हत्या कर दी उनमें से एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में वीर सावरकर को देखा जा सकता है।
बुद्धिजीवियों के बुद्धिजीवी, तर्कशास्त्री विज्ञान एवं संस्कृति के सम्मिलित संतुलित व्यवहार सम्मत व्यक्तित्व जिसने भारतीय गौरव की, भारतीय सनातन प्रवृत्तियों की चिंता की, भारतीय स्वतंत्रता की चिंता की और भारत के बौद्धिक स्तर को वैश्विक स्तर पर ले जाने का सार्थक प्रयास किया का नाम सावरकर है ।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले लेखक एवं इतिहासकार वीर सावरकर की आज जयंती है. वह एक महान ऐतिहासिक क्रांतिकारी थे. उनका असली नाम विनायक दामोदर सावरकर था. उनका जन्म 28 मई 1883 के नासिक के पार भागरपुर गांव में हुआ था. आज उनके जन्मदिन के मौके पर जानिए उनके महान विचार-
कभी भी महान लक्ष्य के लिए किया गया कोई भी बलिदान व्यर्थ नहीं जाता है और अपने देश की, राष्ट्र की, समाज की स्वतंत्रता- हेतु प्रभु से की गई मूक प्रार्थना भी सबसे बड़ी अहिंसा का द्योतक है ।
सावरकर कहा करते थे कि देश-हित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊँचा आदर्श है, क्योंकि – ‘वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति’ शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है। उन्हें शिवाजी को मनाने का अधिकार है, जो शिवाजी की तरह अपनी मातृभूमि को आजाद कराने के लिए लड़ने के लिए समर्पित है । वीर सावरकर बिना किसी संकोच के अपने विचारों से और अपने सपनों से समाज को प्रेरित किया करते थे उनके अनुसार वर्तमान परिस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इस तथ्य की चिंता किये बिना ही इतिहास लेखक को इतिहास लिखना चाहिए और समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए । काश तत्कालीन इतिहासकारों ने या वर्तमान में भी जो इतिहासकार काले इतिहास को लिखने का कार्य कर रहे हैं उनको सावरकर की इतनी सी बात समझ में आ गई होती तो आज देश का सांस्कृतिक और राष्ट्रीय परिदृश्य कुछ और होता ।
वीर सावरकर के बारे में अनेक ऐसे तथ्य हैं जो भारत का भारत की आम जनता नहीं जानती है आइए आज उनके जयंती के अवसर पर कुछ ऐसे ही रोचक एवं आश्चर्यजनक तथ्यों से अवगत होते हैं –
विनायक दामोदर सावरकर दुनिया के अकेले स्वातंत्र्य-योद्धा थे जिन्हें दो बार आजीवन कारावास की सजा मिली । आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि उन्होंने दो बार अपनी आजीवन कारावास की सजा को पूरा ही नहीं किया बल्कि उसके पश्चात भी राष्ट्र के निर्माण की प्रक्रिया में जोर-शोर से भिड़ गए ।
लेखन के क्षेत्र में भी उनका योगदान इतना आंदोलित करने वाला था कि प्रकाशन से पहले ही उनके पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया गया । वे विश्व के ऐसे पहले लेखक थे जिनकी कृति 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम को दो- दो देशों ने प्रकाशन से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया।
वे पहले स्नातक थे जिनकी स्नातक की उपाधि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण अंग्रेज सरकार ने वापस ले लिया।
वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय विद्यार्थी थे जिन्होंने इंग्लैंड के राजा के प्रति वफादारी की शपथ लेने से मना कर दिया। फलस्वरूप उन्हें वकालत करने से रोक दिया गया।
वीर सावरकर ही ऐसे प्रथम व्यक्ति थे जिससे कहीं ना कहीं गांधी प्रेरित होकर स्वदेशी आंदोलन को हम सबके बीच लेकर आए । यह अलग बात है कि गांधीजी ने उसका श्रेय वीर सावरकर को न देकर के स्वयं ले लिया। यहां यह बताना अत्यंत आवश्यक है कि वीर सावरकर पहले ऐसे भारतीय राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने सर्वप्रथम विदेशी वस्त्रों की होली जलाई।
आज जो आप तिरंगे के बीच में चक्र देखते हैं इसकी परिकल्पना भी सावरकर ने ही प्रथम बार की थी और तत्कालीन राष्ट्रपति को यह सुझाव दिया था जिसे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद ने स्वीकार कर लिया था ।
यह सावरकर की ही प्रथम परिकल्पना थी कि सबसे पहले पूर्ण स्वतंत्रता को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का लक्ष्य घोषित किया। वे ऐसे प्रथम राजनीतिक बंदी थे जिन्हें विदेशी (फ्रांस) भूमि पर बंदी बनाने के कारण हेग के अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में मामला पहुंचा।
वीर सावरकर सामाजिक रुप से इतने चैतन्य और क्रियाशील थे कि वे प्रथम क्रांतिकारी के रूप में राष्ट्र के सर्वांगीण विकास का चिंतन किया तथा बंदी जीवन समाप्त होते ही जिन्होंने अस्पृश्यता आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया।
वीर सावरकर न सिर्फ एक क्रांतिकारी थे बल्कि एक उत्कृष्ट लेखक और कवि भी थे। वे दुनिया के ऐसे पहले कवि थे जिन्होंने अंडमान के एकांत कारावास में जेल की दीवारों पर कील और कोयले से कविताएं लिखीं और फिर उन्हें याद किया। इस प्रकार याद की हुई 10 हजार पंक्तियों को उन्होंने जेल से छूटने के बाद पुन: लिखा जो उनके विलक्षण बुद्धि और व्यक्तित्व का परिचायक है।
सावरकर द्वारा लिखित पुस्तक ‘द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस-1857 एक सनसनीखेज पुस्तक थी जिसने ब्रिटिश शासन व्यवस्था की चुलों को हिला कर रख दिया था और यह सिद्ध कर दिया था कि ब्रिटिश साम्राज्य अपने हित के सिवाय किसी और देश के हित के बारे में सोच भी नहीं सकता ।
समग्र रूप से अगर वीर सावरकर का मूल्यांकन आज भी किया जाए तो शायद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में वह सबसे अलग विलक्षण और भारी पड़ेंगे । यही कारण था कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनके ऊपर डाक टिकट तो जारी किया परंतु उनके चरित्र और उनकी सोच की चर्चा भारत के किसी पाठ्य पुस्तकों में शामिल नहीं होने दिया ताकि वीर सावरकर जैसे लोग गुमनामी के अंधेरे कोठरी में आजीवन कारावास को भोगते रहे ।
परंतु कहा जाता है न सत्य को और सूरज चाँद को कभी छुपाया नहीं जा सकता । बिल्कुल वैसे ही वह समय आ गया है जब भारत के गौरवशाली इतिहास में वीर सावरकर के इतिहास को भी पूरे सम्मान के साथ शामिल किया जाए और भारत की नई पीढ़ी को उनके योगदान बुद्धि, कौशल और विलक्षण प्रतिभा के बारे में बताया जाए । भारतीयता के नायक के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी ।

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