क्या नीतीश की होगी वापसी या लोजपा से कलह ले डूबेगी एनडीए को…

मनीष वत्स

बिहार में चुनावी माहौल अपने चरम पर आने लगा है, चौक-चौराहे, पान और हजाम के दुकानों पर चर्चाओं का बाजार गर्म है। हालांकि कोविड-19 के कारण ये चर्चाएं पिछले चुनावों की माफिक बहुत ज्यादा सक्रियता और समय देकर नहीं हो रही फिर भी जितना भी वक्त लोगों को मिल रहा है, लोग चर्चाओं को छेड़ तो रहे ही हैं। ये चर्चाएं स्थानीय विधायक के कार्यों की समीक्षाओं से लेकर मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश के 15 साल के कार्यकाल की समीक्षा तक जाती हैं।
क्या नीतीश फिर से चौथी बार वापसी करेंगे या फिर तेजस्वी के नेतृत्व में राजद सरकार बनाएगी ? क्या सत्ता विरोधी लहर नीतीश कुमार को रोक देगी ? क्या बिहार में तीसरे मोर्चे की कोई गुंजाइश है ? क्या एनडीए में रहकर भी चिराग जदयू को नुकसान पहुचाएंगे ? ऐसे तमाम सवालों पर बिहार अपडेट से अतुल गंगवार ने वरिष्ठ पत्रकार रवि पाराशर और सोशल मीडिया एक्सपर्ट मनीष वत्स से चर्चा की।

बिहार में अभी चिट्ठियों का दौर है, स्मार्ट फोन के इस जमाने में चिट्ठियों की महत्ता अलग है। चिट्ठियों का ये दौर चिराग पासवान ने विकास संबंधी कार्यों से लेकर कोविड-19 से जुड़ी परेशानियों को इंगित करते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखी थी। हालिया घटनाक्रम में उन्होंने एक चिट्ठी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी लिखी है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि बिहार के लोग एनडीए के कामों से खुश नहीं हैं और आने वाले विधानसभा चुनाव में इसका खामयाजा गठबंधन को भुगतना पड़ेगा।

चिट्ठियों की बात हो तो राजद के वरिष्ठ नेता स्व. रघुवंश प्रसाद सिंह द्वारा आईसीयू से लिखी गई चिट्ठियों पर भी बवाल मचा हुआ है, कांग्रेस नेता अखिलेश प्रसाद सिंह जहां दावा किया है कि रघुवंश बाबू से जबरन चिट्ठी लिखवाई गई थी। अखिलेश प्रसाद ने कहा कि वे रघुवंश बाबू को लंबे वक्त से जानते हैं, वो जहां थे, काफी मजबूती से थे और उस वक्त भी नरेंद्र मोदी सरकार और नीतीश कुमार की ‘बुराई’ कर रहे थे।

राज्यसभा सांसद अखिलेश सिंह ने कहा कि वे रघुवंश बाबू से एक सप्ताह पहले मिले थे लेकिन उस वक्त भी ऐसी कोई बात नहीं थी। रघुवंश बाबू उस समय भी लालू प्रसाद की ही तरफदारी कर रहे थे। उन्होंने दावा किया कि यह चिट्ठी जबर्दस्ती लिखवाई गई है। अखिलेश ने कहा कि रघुवंश बाबू अपनी लड़ाई पार्टी में रहकर लड़ते थे, ऐसे में इस प्रकरण की घोर निंदा होनी चाहिए।

वहीं राजद के विधायक भाई वीरेंद्र ने आरोप लगाया कि रघुवंश सिंह के पत्र में सरकार ने साजिश की है। कोई भी व्यक्ति आईसीयू से पत्र नहीं लिख सकता है? आरजेडी एमएलसी सुबोध राय ने भी पूछा कि भला आईसीयू में भर्ती इंसान चिट्ठी कैसे लिख सकता है? सुबोध ने कहा कि कोविड के बाद रघुवंश बाबू से मेरी मुलाकात हुई थी। उन्होंने कहा था कि आरजेडी छोड़ने का सवाल ही नहीं है, बावजूद इसके ऐसी चिट्ठी पर सवाल खड़ा होता है। सरकार चिट्ठी पर सियासत कर रही है।

बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने महागठबंधन के नेताओं के आरोपों का जवाब देते हुए कहा कि प्रदेश सरकार रघुवंश प्रसाद सिंह की अंतिम इच्छा पूरी कर उन्हें सार्थक श्रद्धांजलि देगी। वे हमें अपने सपने सौंप कर गए हैं। उन्होंने लालू परिवार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि रघुवंश बाबू वैशाली के गौरव, लोकतंत्र की गरिमा, किसानों के खेत और गरीबों के पेट की चिंता करने वाले राजनेता थे, लेकिन आखिरी वक्त में वे दम्भी, परिवारवादी और निजी सम्पत्ति बनाने के लिए राजनीति का दुरुपयोग करने वालों से इस कदर घिर गए थे कि उन्हें मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखनी पड़ी। उनका पत्र जनहित के मुद्दे लिए एनडीए सरकार की विश्वसनीयता का प्रमाणपत्र है।

सुशील मोदी ने ट्वीट कर आरोप लगाया कि आरजेडी और कांग्रेस ने रघुवंश प्रसाद सिंह के जीवनकाल में उनका इतना अपमान किया कि वे मौत से संघर्ष नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि अब उनके जिस पत्र पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार सरकार बिंदुवार संज्ञान लेकर उनकी इच्छा पूरी करने में लगी है, उस पत्र को कोई फर्जी बता रहा है, तो कोई साजिश बता रहा है। बिहार सरकार के मंत्री और जेडीयू नेता नीरज कुमार ने भी आरजेडी पर हमला बोलते हुए कहा कि ऐसे बयान देते हुए भी उसके नेताओं को शर्म आनी चाहिए। आरजेडी नेताओं ने जीते जी उनका ख्याल नहीं रखा। अब उनके निधन के बाद ऐसे सवाल उठाकर और छोटा कर रहे हैं।

इन आरोपों के बीच सवाल ये उठता है कि यदि रघुवंश बाबू से जबरदस्ती पत्र लिखवाया गया था तो लालू ने उनके इस्तीफे वाले पत्र का जवाब क्यों दिया? यदि उनसे कोई जबर्दस्ती पत्र लिखवा रहा था या उनके नाम से कोई पत्र मीडिया में उछाल रहा था तो वो और उनके परिजन चुप क्यों थे ? कुल मिलाकर बिहार चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप का दौर इतना बदसूरत हो गया है कि एक व्यक्ति के मृत्यु के उपरांत उनकी लाश पर राजनीति की जा रही है। स्व. रघुवंश बाबू ने जनहित में अपनी राजनीति की पर चुनाव जीतने की लिप्सा में दल ने उनकी मृत्यु को अपने चुनाव जीतने का जरिया बना रहे हैं।

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